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वधमान जीवन-कोश पर भी घर में पड़े रहेंगे। महा दुःखी स्थिति अथवा परचक का भय उत्पन्न होगा-तो भी दीक्षा ग्रहण नहीं करेंगे। यदि कदाचित् दीक्षा ग्रहण करेंगे तो उन्हें भी कुसंग होने के कारण छोड़ देंगे।
फलस्वरूप कुसंग होने के कारण लिए हुए व्रतों को पालने वाले विरले होंगे-इस प्रकार प्रथम देखे हुए हाथी-स्वप्न का फल है।
२-दूसरे कपि के स्वप्न का फल यह है-बहुधा गच्छ के स्वामीभूत आचार्य कपि की तरह चपल परिणामी, अल्प सत्त्ववाले और व्रत में प्रमादी होंगे। इतना ही पर्याप्त नहीं है-परन्तु धर्म में स्थित दूसरों को भी विपर्यास भाव करायेंगे। धर्म के उद्योग में तत्पर तो कोई विरले ही निकलेंगे।
जो प्रमादी होते हुए धर्म में शिथिल अन्यों को शिक्षा देंगे। उनकी गांवों में रहे हुए-शहरों की तरह ग्राम्यजन भी हांसी करेंगे।
हे राजन् ! इस रीति से आगामी काल में प्रवचन के अज्ञात पुरुष होंगे। यह कपि के देखे गये स्वप्न का फल है।
३-जो क्षीर वृक्ष का स्वप्न देखा- इससे सातों क्षेत्र में द्रव्य देनेवाले दातार और शासन पूजक क्षीर वृक्ष तुल्य श्रावक वर्ग होंगे। उनको ठगी लिंगधारी लोग रोक देंगे। ऐसे पासत्थों की संगति से सिंह जैसे सत्त्ववाले महर्षि गण भी उनको श्वान की तरह सार बिना लगेंगे। __ सुविहित मुनियों की विहार भूमि में लिंगधारी शुली जैसे होकर उपद्रव करेंगे।
क्षीर वृक्ष जैसे श्रावक ऐसे मुनियों की संगति नहीं करने देंगे। इस प्रकार क्षीर वृक्ष के स्वप्न का फल है।
४-चौथे स्वप्न का फल इस प्रकार है-वृष्ट स्वभावो मुनिगण धर्मार्थी होने पर काकपक्षी की तरह विहारवापिका में रमण नहीं करते हैं। वे प्रायः स्वयं के गच्छ में नहीं रहेंगे। इस कारण अन्य गच्छ के सूरिगण की तरह वंचना करने में तत्पर और मृग-तृष्णिका की तरह मिथ्याभाव दिखाने वाले होंगे। उनके साथ में जड़ाशय की तरह चलेंगे। उनके साथ गमन करना उपयुक्त नहीं है।
ऐसे उपदेश करने वालों को वे सम्मुख होकर विपरीत बंधन करेंगे। इस प्रकार काक पक्षी के स्वप्न का फल है।
५-श्री जिनमत के जो सिंह जैसा है-वह जाति-स्मरण आदि से रहित-ऐसा धर्मज्ञ रहित-ऐसा भरत क्षेत्ररूपी वन देखने में आयेंगे। उस पर तीर्थीरूपी तिथंच तो पराभव कर नहीं सकेंगे। परन्तु सिंह के कलेवर में जैसे कीड़े पड़ते हैं और वे उपद्रव करते हैं उसी तरह वे लिंगी कृमि की तरह स्वयं में ही उत्पन्न हुए वे उपद्रव करेंगे और शासन की हीलना करायेंगे। कितनेक लिंगधारी तो जैन शासन के पूर्व के प्रभाव को लिये हुए श्वापदों की तरह अन्य दर्शनियों से कभी भी पराभव को प्राप्त नहीं होंगे। .... इस प्रकार सिंह के स्वप्न का फल है।
- ६-जैसे कमलाकर में कमल सुगंध को प्राप्त होता है वैसे ही उत्तम कुल में उत्पन्न हुए सर्व प्राणी धार्मिक होने चाहिए। परन्तु वर्तमान में वैसे नहीं होते हैं।
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