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वर्धमान जीवन - कोश
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वीर भगवान के समवसरण में पीठ की मेखला का विस्तार दो से भाजित एक सौ पच्चीस धनुष प्रमाण था । •१४ पास जिणे पणदंडा बारसभजिदा य वीरणाहम्मि । एक्कोचिय तियभजिदा णाणावर रयणणिलयइला || -तिलोप० अधि ४ / गा ८७६
पार्श्वनाथ तीर्थंकर के समवसरण में प्रथम पीठ का विस्तार बारह से भाजित पाँच धनुष और वीरनाथ के तीन से भाजित एक धनुष मात्र था। ये द्वितीय पीठिकायें नाना प्रकार के उत्तम रत्नों से खचित भूमियुक्त होती है। एकसयं पणवीसब्भहियं वीरम्मि दोहिहिदं || -तिलोप० अधि ४ / गा ८७८
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वीरनाथ स्वामी के समवसरण में द्वितीय पीठ की मेखला का विस्तार दो से भाजित एक सौ पच्चीस धनुष
प्रमाण था ।
पंचश्चि वीर जिणे पवित्ता अट्ठता लेहिं ||
-तिलोप० अधि ४ /गा ८८३
वीरजिनेन्द्र के समवसरण में द्वितीय पीठ का विस्तार अड़तालीस से भाजित पाँच कोस मात्र था । * १५ ताणोवरि दिया पीढाई विविहरयणरइदाइ । नियणियदुइज्जपी दुच्छेधसमा ताण उच्छेधा ॥ आदिमपीढाणं वित्थारचउत्थ भागसारिच्छा । एदाणं वित्थारा तिउणकदे तत्थ समधिए परिधी ॥ -तिलोप० अधि ४ / गा ८८४-८८५ द्वितीय पीठों के ऊपर विविध प्रकार के रत्नों से रचित तीसरी पीठिकायें होती है । इन तीसरी पीठिकाओं की ऊँचाई अपनी-अपनी पीठिकाओं को ऊंचाई के समान होती है ।
इनका विस्तार अपनी प्रथम पीठिकाओं के विस्तार के चतुर्थ भाग प्रमाण होता है । और तिगुणे विस्तार से कुछ अधिक इनकी परिधि होती है ।
* १६ गंधकुटी
विगुणियपणवीसाई तित्थयरे वड्ढमाणम्मि ।
भगवान वर्धमान के समवसरण में गंधकुटी की चौड़ाई और लंबाई पचास धनुष प्रमाण थी । पणुवीसोणं च सयं जिणप वरे वीरणाहम्मि |
वर्धमान जिनेन्द्र के समवसरण में गंधकुटी की ऊँचाई पश्चीस कम सौ धनुष प्रमाण थी ।
-तिलोप० अधि ४ / गा ८६०
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• १७ सिंहासनाणि मज्झे गंधउडोणं सपादपीढाणि । वरफलि हणिम्मिदार्णि घंटा जालादिरम्माणि ॥ रयणख चिदाणि ताणि जिनिंदउच्छे हनोग्गउदयाणि । इत्थ तित्थयराणं कहिदाइ समवसरणाई ॥ - तिलोप० अधि ४/ गा ८६३-६४ गंध कुटियों के मध्य में पादपीठ सहित उत्तम स्फटिक मणियों से निर्मित और घंटाओं के समूहादिक से रमणीय सिहासन होते हैं ।
रत्नों से खचित उन सिंहासनों की ऊंचाई तीर्थंकरों के ही योग्य हुआ करती है । • १८ एत्यंतरे हरिणा भणिउ जाम, किउ समवसरणु जक्खेण ताम । पविल वारह - जोयण-पम णीलमउ गयणउलु भासमाणु ।
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-तिलोप० अधि ४ /गा ८६२
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