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८ पणवण्णासा कोसा पासजिणे अट्ठसीदिदुसयहिदा ।
-तिलोप• अधि ४ / गा ७५५
वीरनाथ भगवान के समवसरण में प्रथम पृथिवी का विस्तार बारह के वर्ग अर्थात् एक सौ चवालीस भाजित बाईस कोस प्रमाण था ।
६ पासे पंचच्छहिदा तिदयहिदा दोण्णि वडमाणजिणे । सेसाण अद्धमाणा आदिमपीढस्स उदद्याओ || ७७० ।। -तिलोप० अधि ४ / गा ७७०
वर्धमान जिन के समवसरण में प्रथमपीठ की ऊंचाई तीन से भाजित दो धनुष प्रमाण थी । शेष दो पीठों की ऊंचाई प्रथम पीठ की ऊंचाई से आधी थी ।
दंडाणं पंचसदा छक्कहिदा वीरणाहम्मि । ॥ ७७४ ||
-तिलोप• अधि ४
वीरनाथ के समवसरण में तृतीय पीठ का विस्तार छह से भाजित पांच सौ धनुष प्रमाण था । १० पंचसया रूऊणा छक्कहिदा वडमाणदेवम्मि । णियणिय जिणउदयेहिं बारसगुणिदेहि थंभउच्छे हो || -तिलोप० अधि० ४ / गा ७७७ वर्धमान तीर्थंकर के समवसरण में मानस्तभों का बाहुल्य छह से भाजित एक कम पांच सौ धनुष प्रमाण था । इन मान स्तम्भों की ऊँचाई अपने-अपने तीर्थ करा के शरीर की ऊँचाई से बारह गुणी होती है ।
वर्धमान जीवन कोश
* ११ चउदालच्छक्कहिदा णिदिट्ठा वडूमाणम्मि |
-तिलोप० अधि ४ / गा ८२३
वर्धमान स्वामी के समवसरण में मान स्तम्भों का विस्तार छह से भाजित चवालोस अंगुल प्रमाण बतलाया
गया है ।
धयदंडाणं अंतरमुसहजिगे छस्सयाणिचावाणि ।। ८२४ ।। वीरजिणे एक्कसय तेत्तियमेत्तेहि अवहरिदं ।। ८२५ ।।
-तिलोप, अधि ४ / गा ८२४,८२५ वीर - जिनेन्द्र के समवसरण में ध्वज दंडों का अन्तर अड़तालीस से भाजित एक सौ धनुष प्रमाण था । '१२ पणवीसाधियछस्सयदंडा छत्तीस संविभत्ताय । पासम्मि वडमाणे णवहिदपणवीस अधियसयं ॥ -तिलोप० अधि- ४ / गा ८५१
भगवान् वर्धमान स्वामी के समवसरण में कोट का विस्तार नौ से भाजित एक सौ पचोस धनुष प्रमाण था ।
* १३ कोठों का विस्तार
वीरजिणि दंडा पंचघणा दसहदा य णवभजिदद्य
-तिलोप० अधि ४ / गा ८५५
वीराजिनेन्द्र के समवसरण में कोठों का विस्तार पांच के धनको दशसे गुणा करके नौका भाग देने पर जो लब्ध हो उतने धनुष प्रमाण था ।
एकोच्चि छक्aहिदे देवेसिश्विड्डूमाणम्मि ।
वर्धमान के समवसरण में प्रथम पीठ का विस्तार छह से भाजित एक कोस प्रमाण था । एक्कसयं पणवी सम्भहियं वीरम्मि दोहि हिदं ।
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-तिलोप• अधि ४ / गा ८६८
-तिलोप० अधि ४ /गा ८७
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