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वर्षमान जीवन-कोश
१४३ नवचे कोठे में चन्द्र-सूर्यादि ज्योतिषी देष बठे थे। दसवे कोठे में कल्पवासी देव बैठे थे। ग्यारह कोठे में विद्याधर आदि मनुष्य बठे थे और बारह कोठे में सर्प, सिंह, मृगादि तियञ्च बठे थे। इस प्रकार बारह कोठों में बारह गणवाले जीव भक्ति से हाथों की अंजलि बाँधे हुए, संसार ताप की
अग्नि से पीड़ित होने से उसकी शांति के लिए भगवान के वचनामृत का पान करने के इच्छुक होकर त्रिजगद्-गुरू को घेरकर बैठे हुए थे।
उक्त बारह गणों से वेष्ठित, अत्यन्त सुन्दर, जगभर्ता श्री वर्धमान भगवान् सर्व धर्मीजनों के मध्य में उन्नत धर्ममूर्ति के समान शोभायमान हो रहे थे।
'६ चउभागेण विरहिदा पासस्स य वड्डमाणस्त
-तिलोप. अधि ४/गा ७१७ वर्धमान तीर्थकर के समवसरण की सामान्य भूमि योजन के चतुर्थ भाग से कम थी। इह केई आइरिया पण्णारसकम्मभूमिजादाणं । तित्थयराणं बारसजोयणपरिमाणमिच्छति ॥ ७१६ ।।
-तिलोप० अधि ४ । गा ७१६ यहां कोई आचार्य पन्द्रह कर्मभूमियों में उत्पन्न हुए तीर्थ करों की समवसरण भूमि को बारह योजन प्रमाण मानते हैं। पासम्मि पंच कोसा चउ वीरे अट्ठताल हरिदा। इगिहत्थुच्छेहा ते सोवाणा एकहत्थवासाय ॥७२२॥
-तिलोप अधि ४/ गा ७२२ भगवान पार्श्वनाथ के समवसरण में सीढ़ियों को लम्बाई अड़तालीस से भाजित पाँच कोश और वीरनाथ के अड़तालीस से भाजित चार कोश प्रमाण थी। वे सीढ़ियां एक हाथ ऊँची और एक हाथ ही विस्तार वाली थी।
पण्णारसेहि अहियं कोसाण सयं च पासणाहम्मि । देवम्मि पड्डमाणे बाणउदी अतालहिदा ॥७२७ वीहीदोयासेसु णिम्मलपलिहोवलेहि रइदाओ। दो बेदोओ वीहीदीहत्तसमाणदीहत्ता ।। ७२८
-तिलोप० अधि ४ । गा ७२७, २८ वर्धमान के समवसरण में वीथियों की दीर्घता अडतालीस से भाजित वानवे कोश प्रमाण थी। वीथियों के दोनों पाश्र्व भागों में वीथियों की दीर्घता के समान दीर्घता से युक्त और निर्मल स्फटिकपाषाण से रचित दो वेदियां होती है। कोदंडछस्सयाई पणवीसजुदाई अट्ठहरिदाई। पासम्मि वड्डमाणे पणघणदंडाणि दलिदाणि ।। ७३०
-तिलोप० अधि४ वर्धमान स्वामी के समवसरण में वेदियों का विस्तार दो से भाजित पांच के धन अर्थात् एक सौ पच्चीस धनुष प्रमाण था। ७ एक्को य वड्डमाणे कोसो बाहत्तरीहरिदो।
-तिलोप० अधि ४ । ७४६ भगवान वर्धमान के समवसरण में धूलिसालका मूल विस्तार बहतर से भाजित एक कोस प्रमाण था ।
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