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वर्धमान जोवन-कोश
१२६ टीका-xxx। ‘अनुत्तरं प्रधान ध्यानवरं' ध्यानश्रेष्ठ ध्यायति, तथाहि-उत्पन्नज्ञानो भगवान् योगनिरोधकाले सूक्ष्म काययोगं निरुन्धन् शुक्लध्यानस्य तृतीयं भेदं सूक्ष्म क्रियमप्रतिपाताख्यं तथा निरुद्धयोगश्चतुर्थ शुक्लध्यानभेदं व्युपरतक्रियमनिवृत्ताख्यं ध्यायति, xxx शुक्लं-शुक्लध्यानोत्तरं भेदद्वयं ध्यायति ।
श्री महावीर प्रभु सर्वोत्तम धर्म को प्ररुपित कर सर्वोत्तम शुक्लध्यान ध्याते थे। वह शुक्लध्यान श्रेष्ठ-शुक्ल तु के समान सफेद दोष रहित-सुवर्ण के समान प्रकाशमान, जल के फेन के समान उपलब, शंख और चन्द्र के समान त अवदांत ( स्वच्छ ) शुक्लध्यान है।
भगवान् महावीर योगनिरोधकाल में सूक्ष्मकाययोग के निरोध के समय में शुक्लध्यान का तीसरा भेद -क्रिया-अप्रतिपाति नामक शुक्ल ध्यान ध्याते थे।
योग निरोध होने के बाद शुक्लष्यान का चतुर्थ भेद-न्युपरातक्रियाअनिवृति ध्यान व्याते थे । अणुत्तरगं परमं महेसी, असेसकम्मं स विसोहइत्ता। सिद्धि गति साइमणंत पत्ते, गाणेण सीलेण य दंसणेण ।।
-सूय० श्रु १ / अ६ / गा० १७ समस्त ज्ञानावरणीय कर्म आदि अष्ट कर्मों का क्षय कर महर्षि महावीर प्रभु ज्ञान, दर्शन और शील नवाचार ) से सर्वोत्तम और लोक के अग्रभाग में स्थित आदि-अंत-रहित मुक्ति में गये । ४) 'रुक्खेसु णाते जह सामली वा, जंसी रति वेययंती सुवण्णा । वणेसु या गंदणमाहु सेढ, णाणेण सीलेण य भूतिपण्णे ।।
-सूय० श्रु १ । अ६ । गा १८ टोका-xxx । वनेषु च मध्ये यथा नन्दनं वनं देवानां क्रीडास्थानं प्रधानं एवं भगवानपि 'ज्ञानेन' केवलाख्येन समस्तपदार्थाविर्भावकेन 'शीलेन' च चारित्रण - यथाख्यातेन 'श्रेष्ठः' प्रधानः, “भूतिप्रज्ञः' प्रवृद्धज्ञानो भगवानिति ।
सर्ववृक्षों में देवकुरु-उत्तरकुरु में स्थित सामली वृक्ष बड़ा है क्योंकि वहां सुवर्णकुमारादि देव आकर का अनुभव करते है।
और वनों में नन्दनवन श्रेष्ठ है-वैसे ही ज्ञान, दर्शन और शील से श्री महावीर प्रभु श्रेष्ठ थे । ) थणितं व सह ण अणुत्तरं उ, चंदेव ताराण महाणुभावे । गंधेसु वा चंदणमाहु सेट, एवं मुणोणं अपडिण्णमाहु ।।
सूय० श्रु १ । अ६ । गा १६ टोका-यथा शब्दानां मध्ये 'स्तनितं' मेघगजितं तद् 'अणु त्तर' प्रधानं, xxx। तारकाणां च' नक्षत्राणां मध्ये यथाचंद्रो महानुभावः सकलजननिर्वृत्तिकारिण्या कान्स्या मनोरमः श्रेष्ठः 'गन्धेषु' इति गुणगुणिनोरभेदान्मुतुबलोपाद्वा गंधवत्सु मध्ये यथा 'चन्दनं' गोशीर्षकाख्यं मलयजं वा तज्ज्ञाः श्रेष्ठमाहुः, एवं 'मुनीनां' महर्षीणां मध्ये भगवन्तंतास्य प्रतिज्ञा इहलोकपरलोकाशंसिनी विद्यते इत्यप्रतिज्ञस्तमेवम्भूतं श्रेष्ठमाहुरिति ।
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