________________
वर्धमान जीवन-कोश
१११ '२ अह सत्तमम्मि मासे गन्भत्थो चेवऽभिग्गहं गेण्हे । नाहं समणो होहं अम्मापियरंमि जीवंते ।। ५६ ।।
-आव० निगा• ४५८ पर भाष्य गा० ५६ मलयटीका- xxx अथ गर्भादारभ्य सप्तमे मासे तयोर्मातापित्रोर्गर्भप्रयत्नकरणेनात्यन्तं स्नेहमवबुद्ध्य
अहो ममोपर्यतीवानयोः स्नेहो, यद्यहमनयोर्जीवितोः प्रव्रज्यां गृह णामि नूनं न भवत एवैतावित्यतो गर्भस्थ एवाभिग्रहं गृह णाति, ज्ञानत्रयोपेतत्वात्, किंविशिष्टमित्याह-नाहं श्रमणो भविष्यामि
मातापित्रो जीवतोरिति ३ तए णं समणे भगवं महावीरे गब्भत्थे चेव इमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हा नो खलु मे कप्पइ अम्मापिएहिं जीवतेहिं मुडे भवित्ता अगारवासाओ अणगारि पव्वइत्तए
-कप्प० सूहा तोन ज्ञान के धारक (गर्भ में स्थित ) वर्धमान ने माता-पिताको दुःखित जानकर गर्भज्ञापन कराने के लिए एक अंगुली को चलायमान किया। इससे माता ने जाना कि मेरा गर्भ क्षति को प्राप्त नहीं हुआ है। हर्षित हुई । गर्भ की स्फरणा को जानकर सिद्धार्थ राजा भी बहुत खुशी हुआ। फलस्वरूप बर्धमान ने विचार किया कि में अदृष्ट हूं फिर भी माता-पिता का मेरे पर कितना स्नेह है। यदि मैं माता पिता के जीवित रहते हुए दीक्षा ग्रहण करू गा तो वे स्नेह के मोह से अति आतंध्यान को प्राप्त होंगे।-अशुभ कर्म उपार्जन करेंगे। अतः मुझे उचित है कि मैं उनके जीवित काल में दीक्षा ग्रहण नहीं करूगा-यह अभिग्रह भगवान् ने सात मास में ग्रहण किया।
४ वर्धमान का वंश इक्ष्वाकवः सुखक्षेत्र संभवंति दिवश्च्युताः। वीरेऽवतरति त्रातु धरित्रीमसुधारिणः ॥
-हरि० खंड १ । सर्ग २/श्लो ४'उत्तरार्ध/२० पूर्वार्ध वर्धकान का इक्ष्वाकु वंश था। '५ वर्धमान भगवान का शरीर
( समणे भगवं महावीरे ) सत्त हत्थूस्सेहे समचउरंस-संठाण - संठिए वज्ज - रिसह-नारायसंघयणे अणुलोम - वाउवेगे कंकग्गणी कवोय - परिणामे सउणि - पोस - पितरोरु - परिणए पउमुप्पल गंध - सरिस - निस्सास - सुरभिवयणे, छवो निरायंक - उत्तम - पसत्थ - अइसेय - निरुवय - पले जल्ल-मल्ल - कलंक - सेय - रय - दोस - वज्जिय - सरीर - निरुवलेवे छाया - उज्जोइयंग - मंगे।
-ओव० सू० १६ श्रमण भगवान महावीर की ऊँचाई सात हाय को थी। आकार समचौरस (उचित एवं श्रेष्ठ माप से युक्त सुन्दर) था। उनकी हड्डियों की संयोजना अत्यन्त मजबूत थी। शरीरस्थित बायु का वेग अनुकूल था। कंकपक्षो के समान गुदाशय था। कबूतर के आहार परिणमन की शक्ति के समान पाचन शक्ति थी। पक्षियों के समान अपान-देश निर्लेप रहता था। पीठ, अन्तर (पीठ और पेट के बीच के दोनों तरफ के हिस्से पाश्र्व और जंघाए विशिष्ट परिणाम
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org