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वर्धमान जीवन कोश त्रिशला के गर्भ को अदल-बदल किया। उस समय शय्या में सोई हुई देवानन्दा ब्राह्मणी ने पूर्व देखे हुए चौदह महास्वप्नों को स्वयं के मुख से निकलते हुए देखा। वह तुरन्त बैठी परन्तु शरीर निबल और ज्वर से जर्जरित हो गया और छाती कटती-"किसी ने हमारे गर्भ का हनन किया है।" इस प्रकार बारम्वार पुकार करने लगी। आश्विन कृष्णा त्रयोदशी, चन्द्र हस्तोतरा नक्षत्र के आवागमन होने पर उस देव ने भगवान को त्रिशला के गर्भ में स्थापित किया।
२ गर्भ का प्रभाव-त्रिशला के गर्भ के समय धन-वर्षों १ ज रयणि भयवं तिसलाए गब्भे साहरिते तं रयणि सक्कवयणेणं तिरियजंभगा देवा विविहाई मणि
निहाणाई सिद्धस्थरायभवणंसि साहरंति, तं च नायकुलं हिरणेणं सुवण्ण्णं धन्नेणं रज्जेणं बडले वाहणेणं कोठागारेणं पुरेण अंतेउरेणं जणवयपुत्तेहिं पसूहि सावइज्जण य अतीव अतीव अभिवणइ । सिद्धत्थरायस्सविय सामंतरायाणो सव्वे वसमागया।
-श्राव.निगा ४५८/मलयटीका
२ गर्भस्थेऽथ प्रभौ शक्राऽऽज्ञया जभकनाकिनः । भूयो भूयो निधानानिन्यधुः सिद्धार्थवेश्मनि ॥ ३४ ।।
सवं ज्ञातकुलं भूरिधनधान्यादिऋद्धिभिः । गर्भावतीर्णभगवत्प्रभावावृधेतराम् ॥ ३५ ।। सिद्धार्थस्यापि नृपतेर्दादप्रणताः पुरा । प्रणेमुभूभुजोऽभ्येत्य स्वयं प्राभूतपाणयः ॥ ३६ ।।
-त्रिशलाका० पर्व १० । सर्ग २ भगवान जब त्रिशला के गर्भ में आये तब शकेन्द्र को आज्ञा से जभक देवों ने सिद्धार्थ राजा के गृह में
बारंबार धन का समूह ला लाकर स्थापित किया। गभ में अवतरित भगवान के प्रभाव से उसका समूचा कुल धनधान्य की समृद्धि से वृद्धि को प्राप्त हुआ।
जो राजा गर्ष के कारण पहले सिद्धार्थ राजा की नमन नहीं करते थे-वे हस्त में स्वयं भेंट लेकर वहां आकर नमने लगे।
'३ त्रिशला के गर्भ में अभिग्रह
पित्रोविज्ञाय तद् दुःखं ज्ञानत्रयधरः प्रभुः । अंगुलिं चालयामास गर्भज्ञापनहेतवे ।। ४४ ।। मद्गर्भोऽक्षत एवेति ज्ञात्वा स्वाभिन्यमोदत। अमोदयच्च सिद्धार्थ गर्भस्पन्दनशंसनात ॥ ४५ ।। अचिन्तयच्च भगवान्मय्यदृष्टेऽपि कोऽप्यहो। मातापित्रोर्महान् स्नेहो जीवतोरनयोर्यदि ॥ ४६ ।। प्रव्रजिष्याम्यहं स्नेहमोहादेतौ तदा ध्वम् । आर्तध्यानगतौ कर्माशुभं बह्वर्जयिष्यतः ।। ४७ ।। अथैवं सप्तमे 'मासि जग्राहाभिग्रहं प्रभुः। उपादास्ये परिव्रज्यां न पित्रोर्जीवतोरहम् ।। ४८ ।।
-त्रिशलाका पर्व १०/सर्ग २
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