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वर्धमान जीवन-कोश
.... जिस प्रकार वर्षा ऋतु के नव ( आषाड ) मास में मेघ बरसते हैं, उसी प्रकार पनपति -कुबेर भी पुनः नौमास तक रत्मवृष्टि करता रहा ।
गर्भ में स्थित रहने पर भी वे भगवान् मति श्रुत एवं अवधि कप तीन ज्ञानों से मुक्त न थे।
२ प्रियकारिणी ( त्रिशला ) के गर्भ के समय धन - वर्षा(क) घत्ता-घरपंगणि तासु रायहु सुह-पब्भारहिं । बुट्टउ धणणाहु अविहंडिय-धण-धारहि ।
-वीरजि० संधि १ । कड८। पृ० १६ (ख) आसाढ - मासि ससियर - पयासी पक्खंतरालि हय - तिमिर - जालि।
दिस - णिम्मलम्मि छट्ठो - दिणम्मि । संसार - सेउ थिउ • गम्भि देउ । संपण्ण - हिट्टि कय कणय - विट्ठि। जक्खेण ताम णव - मास जाम ।
-वीरजि० संधि १ । कड६ । पृ० १८ (ग) धणवइ वसु वरिसिउ पुणुवि तेम व मासु सुपाउसे मेहु जेम
__-वड्ढमाणच० संधि है । कड ८ (घ) यस्यावतारतः पूर्वं पित्रोः सौधे धनाधिपः। मासान् षण्णवसंपूर्णाश्चक्र रत्नादिवर्षणम् ।।
-वीरवर्धच. संधि १ । श्लो २ भगवान महावीर के जीव के रानी प्रियकारिणी के गर्भ में आने के पश्चात् नव मास तक धनपति-कुबेर या यक्ष ने राजा सिद्धाथ' के प्रसाद के प्रांगण में प्रचुर रत्नादि की वृष्टि की।
३३ क-भगवान् महावीर-देवानंदा गर्भ १. समणे भगवं महावीरेxxx तस्सणं आषाढ़सुद्धस्स छट्ठीपखेणं हत्युत्तराहि नक्खखत्तणं जोगमुवागएणं,
महाविजय - सिद्धत्थ - पुप्फुत्तर - पवर - पुण्डरीय · दिसासोवस्थिय वद्धमाणाओ महाविमाणाओ
वीसं सागरोवमाई आउयं पालयित्ता आउक्खएणंभवक्खणं ठिइक्खएणं चुए चइत्ता इह खलु ... जंबुहीवे दीवे, भारहे वासे, दाहिणड्ढभरहे दाहिणमाहणकुण्डपुरसन्निवेसंसि उसभदत्तम्स .. माणस्स कोडाल-सगोत्तस्स देवाणंदाए माहणीए जालंधरायण-सगोत्ताए सीहोभूवभूरण ... . अप्पाणेणं कुच्छिसि गब्भं वक्ते ।
-आया० १२ । अ १५ । सू३ । पृ० २३१ २ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरेxxx तस्सणं आसाढसुद्धस्स छट्ठीपक्खेणं महा
विजयपुप्फुत्तरपवरपुंडरीयाओ महाविमाणाओ वीसं सागरोवमट्टिईयाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतर चई चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे xxx समगे भगवं महावीरे चरिमे तिस्थकरे पुव्वतित्थकरनिहिढे माहणकुण्डग्गामे नगरे उसभदत्तस्स माहणस्स
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