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वर्धमान जीवन-कोश उसी समय आषाढ मास के शुक्ल पक्ष की पवित्र षष्ठी के दिन उत्तराषाढ़ नक्षत्र में शुभ लग्नादिक होने पर मा देवेन्द्र धर्मध्यान के साथ अच्युत स्वर्ग से च्युत होकर पुण्योदय से प्रियकारिणी के पवित्र गर्भ में मतfa
पण्णदसदिवसेहि अहहि मासेहि य अहियपंचहत्तरिवासासेसे पउत्थकाले ७५-८-१५ पुष्पचर. विमाणादो आसाढ-जोण्हपक्ख छट्ठीए महावीरो वाहत्तरवासासो तिण्णाणहरो गम्भमोइण्णो। xxx । एत्थुवउज्जंतीओ गाहाओसुर महिदोच्चुदकप्पे भोगं दिव्वाणुभागमणुभूदो । पुप्फुत्तरणामादो विमाणदो जो चुदो संतो।
-कसापा० भाग १/गा १, २/ टीका सव्वसिद्धिठाणा अवइण्णा उसहधम्मपहुदितिया। xxx पुप्फोत्तराभिधाणा अणंतसेयंसंवड्माणजिणा।
-तिलोप० अधि गा ५२२ पूर्वार्ध, ५२४ उत्तराध सा तं षोडशसुस्वप्नदर्शनोत्सवपूर्वकं । दध्र गर्भेश्वरं गर्भ श्रीवीरं प्रियकारिणी॥
-हरिपु० खंड १ । सर्ग २ । श्लो २१ y xxx इह भारहवरे संतरे xxx णिवसइ विदेहु णामेण देसु खयरामरेहिं सुहयर-पयसु xxx तहिं णिवसइ कुण्डपुराहिहाणु
-वड्डमाणच० संधि । कड १ ___ उसी भारतवर्ष में विद्यापों एवं अमरों से सुशोभित प्रदेशवाला विदेह नामक एक सुप्रसिद्ध देश है। विदेह देश में कुण्डपुर नामक एक नगर है। ) सुणेऊण एयं कमेणं मुहाओ स - कंतस्स धारेवि साणंदभाओ। गया सुन्दरे मंदिरे जाम देवी तुरंती तिलोए गणासार सेवी। तो सो सुराहीसु पुप्फुत्तराओ विमाणाय भावेवि सोक्खायराओ। पत्ता-सिविणए पवरु गय-रूव-धरु णिसि पविठ्ठ, देवी-मुहे। मुणिषर भणिया सावण तणिया सिय छहिहे जिय-सररहे॥
-पडमाणच० संधि/कड ७ राजा सिद्धार्थ के मुख से स्वप्नों के फल को क्रमशः सुनकर उसकी कान्ता प्रियकारिणी बानन्दलही से भर है। त्रिलोक में महिला गणों की सारभूत महिलाओं द्वारा सेवित वह देवी शीघ्र ही जब अपने सुन्दर भवन में
भी वह सुराधीश सुखकारी पुष्पोत्तय विमान से चयकर रात्रि के समय प्रवर स्वप्न में देवी प्रियकारिणी के में गज के रूप में प्रवेश हुआ। ( उसे ) मुनिवरों ने कमलों को जीतने वाली श्रावण संबन्धी शुक्ल षष्ठी (विधि)
धणवइ वसु परिसिउ पुणुवि तेम णव मासु सुपाउसे मेहु जेम। गम्भडिओवि णाणत्तएण सोमुक्कु ण मुणिय-जयत्तएण।
--बड्डमाणच० संधि/माड ८
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