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________________ १०८ पुद्गल-कोश विस्रसापरिणामेन पिण्डितरूतन्यायेन घनीभवनभःप्रदेशपंचकेऽपिण्डितरूतन्यायेन स्फारीभवन्नभःप्रदेशपंचदशके वा यावत्तिष्ठति, तावद्व्यस्थानायुरित्युच्यते । यदातु स एव पुद्गलस्कन्धः स्वपरमाणुवियोजनेन अपरपरमाणुसंयोजनेन वा द्रव्यान्तरत्वमापन्नोऽपि यावत्पूर्वपर्यायान् कृष्णत्वादोन मुञ्चति, तावद्भावस्थानायुरित्युच्यते। तेषां क्षेत्रावगाहनाद्रव्यभावस्थानायुषां परस्परेण यदल्पबहुत्वं तस्मिन् विचार्य पुद्गलानां क्षेत्रावस्थानायुः सर्वस्तोकं, शेषाण्यवगाहनास्थानायुःप्रभृतीनि त्रीणि यथोत्तरमसंख्यगुणानीति कथमिति शिष्यप्रश्नः। __क्षेत्रस्थानायु, अवगाहनास्थानायु, द्रव्यस्थानायु और भावस्थानायु- इन सब में क्षेत्रस्थानायु सबसे अल्प है और बाकी के तीन स्थान (उत्तरोत्तर) असंख्य गुण है। यहाँ पुद्गलों के क्षेत्र, अवगाहना, द्रव्य और भाव में स्थितिकाल की अपेक्षा अल्पबहुत्व का विचार करने पर क्षेत्र की स्थिति अल्प होती है तथा अवगाहना, द्रव्य और भाव इन तीनों में प्रत्येक की स्थिति को क्रमशः असंख्यगुण कैसे माना जाय ? स्थानायु--यह पद क्षेत्रादि सभी के साथ संबद्ध होता है जिससे कहना होगाक्षेत्रस्थानायु, अवगाहनास्थानायु, द्रव्यस्थानायु और भावस्थानायु । एक प्रदेशादि क्षेत्र में पुद्गलों के अवस्थान को क्षेत्रस्थानायु कहते हैं। नियत परिमाण आकाशप्रदेश में पुद्गलों का जो अवगाहन होता है उसे अवगाहनास्थानायु कहते हैं अर्थात् पुद्गलों की एक अवगाहना में जो काल व्याप्त होता है वह अवगाहनास्थानायु होती है। पुद्गल द्रव्य का परमाणु, द्विप्रदेशी आदि स्कंध रूप से रहना-द्रव्यस्थानायु कहलाता है अर्थात् पुद्गलों का एक स्कंधपरिणाम में अवस्थानकाल । पुद्गलों के भाव-कृष्णत्वादि गुणों का जो अवस्थान है वह भावस्थानायु है अर्थात् पुद्गलों का श्यामत्वादि किसी एक गुण में विद्यमानता का समय भावस्थानायु कहलाती हैपुद्गलों में विवक्षित कृष्णत्वादि गुणों का अवस्थानकाल। प्रश्न होता है कि क्षेत्र और अवगाहना में क्या भेद है ? क्षेत्र तो अवगाढ है ही अर्थात् पुदगलों से अवगाढ स्थान क्षेत्र कहलाता है। विवक्षित क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भी पुद्गलों का नियत क्षेत्र में रहना अवगाहना कहलाती है अर्थात् पुद्गलों का आधार स्थल रूप एक प्रकार का आकार अवगाहना कहलाती है और पुद्गल जहाँ रहता है, वह 'क्षेत्र' कहलाता है। अभिप्राय यह है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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