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पुद्गल-कोश जो चतुरस्र संस्थान वाले पुद्गल हैं उनमें वर्ण, गंध, रस और स्पर्श की भजना है। अर्थात् जो पुद्गल संस्थान से चतुरस्र संस्थान रूप में परिणत होते हैं वे वर्ण से काले वर्ण रूप में, नील वर्ण रूप में, लोहित वर्ण रूप में, हारिद्र वर्ण रूप में और शुक्ल वर्ण रूप में भी परिणत होते हैं। गंध से सुरभिगंध रूप में तथा दुरभिगंध रूप में भी परिणत होते हैं। रस से तिक्त रस रूप में, कटु रस रूप में, कषाय रस रूप में, आम्ल रस रूप में और मधुररस रूप में भी परिणत होते हैं। स्पर्श से कर्कश स्पर्श रूप में, मृदु स्पर्श रूप में, गुरु स्पर्श रूप में, लघु स्पर्श रूप में, स्निग्ध स्पर्श रूप में, रूक्ष स्पर्श रूप में शीत स्पर्श रूप में और उष्ण स्पर्श रूप में भी परिणत होते हैं। [२ ]
जो आयत संस्थान वाले पुद्गल हैं उनमें वर्ण, गंध, रस और स्पर्श की भजना है। अर्थात् जो पुदगल संस्थान से आयत संस्थान रूप में परिणत होते हैं वे वर्ण से काले वणं रूप में, नील वर्ण रूप में, लोहित वर्ण रूप में, हारिद्र वर्ण रूप में और शुक्ल वर्ण रूप में भी परिणत होते हैं। गंध से सुरभिगंध रूप में तथा दुरभिगध रूप में भी परिणत होते हैं। रस से तिक्त रस रूप में, कटु रस रूप में, कषाय रस रूप में, आम्ल रस रूप में और मधुररस रूप में भी परिणत होते हैं। स्पर्श से कर्कश स्पर्श रूप में, मृदु स्पर्श रूप में, गुरु स्पर्श रूप में, लघु स्पर्श रूप में, स्निग्ध स्पर्श रूप में, रूक्ष स्पर्श रूप में, शीत स्पर्श रूप में और उष्ण स्पर्श रूप में भी परिणत होते हैं। [२०]
नोट-जो संस्थान से परिमण्डल संस्थान रूप में परिणत होते हैं उनके ५ वर्ण, २ गंध, ५ रस और ८ स्पर्श की अपेक्षा-सर्व मिलकर २० भेद होते हैं। जिस प्रकार परिमण्डल संस्थान रूप में परिणत हुए स्कन्धों के बीस भंग होते हैं उसी प्रकार २० भंग वृत्त संस्थान- वर्तुलकार रूप में परिणत हुए पुद्गलों के, २० भंग सत्र संस्थान रूप में परिणत हुए पुदगलों के, २० भंग, चतुरस्र संस्थान रूप में परिणत हुए पुद्गलों के और २० भंग आयत संस्थान रूप में परिणत हुए पुद्गलों के भी होते हैं। सर्व मिलकर सौ भंग होते हैं।
इसी प्रकार वर्ण, गंध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा- सर्व मिलकर ५३० ( पाँच सौ तीस ) भंग पुद्गल के होते हैं ।
'०७.११ अनेक भेद रूवी अजोवरासी अणेगविहा पन्नत्ता ।
-सम• पइ सम । सू १३७ । पृ० २१३
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