________________
८५
पुद्गल-कोश अंबिलरसपरिणया वि महुररसपरिणया वि, फासओ कक्खडफासपरिणया वि मउयफासपरिणया वि गरुयफासपरिणया वि लहुयफासपरिणया वि सोयफासपरिणया वि उसिणफासपरिणया वि णिद्धफासपरिणया वि लुक्खफासपरिणया वि ।२०११००।
-पण्ण० प १। सू १३ । पृ० ११-१२ जो परिमंडल संस्थान वाले पुद्गल हैं उनमें वर्णं, गंध, रस और स्पर्श की भजना है । अर्थात् जो पुद्गल संस्थान से परिमंडल संस्थान रूप में परिणत होते हैं वे वर्ण से काले वर्ण रूप में, नील वर्ण रूप में, लोहित वर्ण रूप में, हारिद्र वर्ण रूप में और शुक्ल वर्ण रूप में भी परिणत होते हैं। गंध से सुरभि गंध रूप में तथा दुरभिगंध रूप में भी परिणत होते हैं। रस से तिक्त रस रूप में, कटु रस रूप में, कषाय रस रूप में, आम्ल रस रूप में और मधुर रस रूप में भी परिणत होते हैं। स्पर्श से कर्कश स्पर्श मृदु स्पर्श रूप में, गुरु स्पर्श रूप में, लघु स्पर्श रूप में, स्निग्ध स्पर्श रूप में, रूक्ष स्पर्श रूप में, शीतल स्पर्श रूप में तथा उष्ण स्पर्श रूप में भी परिणत होते हैं। [२०]
जो वृत्त संस्थान वाले पुद्गल हैं उनमें वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श की भजना है । अर्थात् जो पुद्गल संस्थान से वृत्त संस्थान रूप में परिणत होते हैं वे वर्ण से काले वर्ण रूप में, नौल वर्ण रूप में, लोहित वर्ण रूप में, हारिद्र वर्ण रूप में और शुक्ल वर्ण रूप में भी परिणत होते हैं। गन्ध से सुरभिगन्ध रूप में तथा दुरभिगन्ध रूप में भी परिणत होते हैं। रस से तिक्त रस रूप में, कटु रस रूप में, कषाय रस रूप में, आम्ल रस रूप में और मधुर रस रूप में भी परिणत होते हैं। स्पर्श से कर्कश स्पर्श रूप में, मृदु स्पर्श रूप में, गुरु स्पर्श रूप में, लघु स्पर्श रूप में, स्निग्ध स्पर्श रूप में, रूक्ष स्पर्श रूप में, शीत स्पर्श रूप में और उष्ण स्पर्श में भी परिणत होते हैं । [२०]
जो व्यस्र संस्थान वाले पुद्गल हैं उनमें वर्ण, गंध, रस और स्पर्श की भजना है। अर्थात् जो पुद्गल संस्थान से वृत्त संस्थान रूप में परिणत होते हैं वे वर्ण से काले वर्ण रूप में, नील वर्ण रूप में, लोहित वर्ण रूप में, हारिद्र वर्ण रूप में और शुक्ल वर्ण रूप में भी परिणत होते हैं। गंध से सुरभिगंध रूप में तथा दुरभिगंध रूप में भी परिणत होते हैं। रस से तिक्त रस रूप में, कटु रस रूप में, कषाय रस रूप में, आम्ल रस रूप में
और मधुररस रूप में भी परिणत होते हैं। स्पर्श से कर्कश स्पर्श रूप में, मृदु स्पर्श रूप में, गुरु स्पर्श रूप में, लघु स्पर्श रूप में, स्निग्ध स्पर्श रूप में, रूक्ष स्पर्श रूप में, शीत स्पर्श रूप में और उष्ण स्पर्श रूप में भी परिणत होते हैं। [२०]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org