SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुद्गल-कोश ८७ टोका-रूप्यजीवराशिश्चतुर्धा-स्कन्धा देशाः प्रदेशाः परमाणवश्चेति, ते च वर्णगन्धरसस्पर्शसंस्थानभेदतः पञ्चविधाः संयोगतोऽनेकविधाः । ___रूपी अजीवराशि अर्थात् अजीव पुद्गलों के संयोग की अपेक्षा अनेक भेद होते हैं। .०७.१२ अनंत भेद 'अणवः स्कंधाश्च'। टीका-उभयत्र जात्यपे बहुवचनं-अनन्तभेदा अपि पुद्गला अणुजात्या स्कंधजात्या च । -राज• अ५ । सू २५ । पृ० ४९१ पुद्गल के अणु जाति तथा स्कंध जाति की अपेक्षा अनंत भेद भी होते हैं। 'पुद्गल पर विवेचन गाथा .०८.१ वोच्छं अप्पा-बहुयं दव्य-खेत्त-द्ध-भावओ वा वि । अपएस-सपएसाणं पोग्गलाणं समासेणं॥ रत्नसिंहसूरि टोका-द्रव्यतः सप्रदेशानामप्रदेशानां च, क्षेत्रतः सप्रदेशानामप्रवेशानां च, 'अद्धा' इति कालत: सप्रदेशानामप्रदेशानां च, भावतः सप्रदेशानामप्रदेशानां च, पुद्गलानामेकाणुकादिद्रव्याणामल्पबहुत्वं संक्षेपेण वक्ष्य इति। द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से तथा भाव से पुद्गल सप्रदेशी भी होते हैं, अप्रदेशी भी होते हैं। इन सप्रदेशी तथा अप्रदेशी दोनों प्रकार के पुद्गलों का-परमाणु पुद्गल से आरंभ करके सभी पुद्गलों का सप्रदेशत्व तथा अप्रदेशत्व की अपेक्षा अल्पबहुत्व संक्षेप में वर्णन किया जाता है। दव्वेणं परमाणू खेत्तेणेगपएसमोगाढा। कालेणेगसमइया अपएसा पोग्गला होंति ॥२॥ रत्नसिंहसूरि टीका-अप्रदेशाः पुद्गला भवन्तीति सर्वत्र योज्यम् । तत्र द्रव्यतः परस्परासंपृक्ताः परमाणवोऽप्रदेशाः पुद्गला भवन्ति १ क्षेत्रत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy