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पुद्गल-कोश (१०) पोग्गलत्थिकाए गं भंते ! कि गरुए, लहुए, गरुयलहुए, अगरुयलहुए ? गोयमा! णो गरुए, णो लहुए, गरुयलहुए वि, अगरुयलहुए वि। से केण?णं ? गोयमा! गरुयलहुयदव्याई पडुच्च णो गरुए, णो लहुए, गरुयलहुए, णो अगरुयलहुए। अगरुयलहुयदव्वाइपडुच्च णो गरुए, णो लहुए, णो गरुयलहुए, अगरुयलहुए।
-भग० श १ । उ ९ । प्र २८७-८८ । पृ. ४११ (११) से कि तं पारिणामिए ? पारिणामिए दुविहे पन्नत्ते, तंजहासाइपारिणामिए य १ अणाइपरिणामिए य २४ x x। से कि तं मणाइपारिणामिए ? अणाइपारिणामिए-धम्मत्थिकाए, अधम्मस्थिकाए, आगासस्थिकाए, जीवस्थिकाए, पोग्गलत्थिकाए, अद्धासमए, लोए, अलोए, भवसिद्धिया, अभवसिद्धिया।
-अणुओ• । सू २४८, २५० । पृ० १११२-१३ (१२) दव्वादेसेण वि मे अज्जो । सन्वे पोग्गला सपएसा वि, अपएसा वि, अणंता, खेत्तादेसेण वि एवं चेव, कालादेसेण वि, भावादेसेण वि एवं चेव।
-भग० श ५ । उ ८ । प्र २ । पृ. ४८७ (१३) एगपएसोगाढा णं भंते ! पोग्गला कि संखेज्जा, असंखेज्जा, अणंता? एवं चेव । (गोयमा! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अणंता) एवं जाव–असंखेज्जपएसोगाढा ।
-भग० श २५ । उ ४ । प्र ३९ । पृ० ८६४ (१४) दुविहा पोग्गला पन्नसा, तंजहा-सुहुमा चेव बायरा चेव ।
-ठाण० स्था २ । उ ३ । सू ८२ । पृ० १९२
पुद्गल की एक परिभाषा पुद्गल अजीव, रूपी, अस्तिकाय द्रव्य है ।
द्रव्य की अपेक्षा पुद्गल अनन्त है ; क्षेत्र की अपेक्षा पुद्गल लोक प्रमाण है ; काल की अपेक्षा कभी नहीं था, कभी नहीं है, कभी नहीं रहेगा, ऐसा नहीं है। सदा
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