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कृतयुग ]
काउ विषयं करेइ । ( दशवं. चू. १, पृ. २८) । २. कृतप्रतिकृतिर्नान- प्रसन्ना श्राचार्याः सूत्रादि दास्यन्ति, न नाम निर्जरेति मन्यमानस्याहारादिदानम् । ( समवा. अभय वृ. ६१ ) ।
२ श्राचार्य प्रसन्न होकर सूत्र श्रादि ( श्रर्थ व उभय ) देंगे, उससे कुछ निर्जरा होने वाली नहीं है । इस प्रकार मानने वाले का जो श्राहारादि दान है उसे कृतप्रतिकृति नामक औपचारिक विनय चाहिए ।
जानना
कृतयुग - जेण य जुगं निविट्ठ पुहईए सयलसत्तसुहजणणं । तेण उ जगम्मि घुट्ठ तं कालं कयजुगं णाम || ( पउमच. ३- ११८ ) । ऋषभ जिनेन्द्र के समय में चूंकि समस्त प्राणियों को सुखोत्पादक युग प्रविष्ट हुआ, प्रतः उस काल को 'कृतयुग' के नाम से घोषित किया गया । कृतयुग्म १. चदुहि अवहिरिज्जमाणे जम्हि
सिम्हि चत्तारिट्ठांति तं कदजुम्मं । ( धव. पु. ३, पू. २४६); जो रासी चदुहि श्रविहिरिज्जदि सो कदजुम्मो । (धव. पु. १०, पृ. २२); चदुहि श्रवरिज्जमाणे XXX जत्थ चत्तारि एंति तं कदजुम्मं । ( धव. पु. १४, पू. १४७ ) । चार का भाग देने पर जिस संख्या में चार प्रवस्थित रहें, अर्थात् चार से जो प्रपहृत हो जाती है व शेष कुछ नहीं रहता, उसे कृतयुग्म राशि कहते हैं । कृतयुग्मकल्योज - जेणं रासी चउक्कएणं श्रवहारेण अवहीरमाणे एगपज्जवसिए जे णं तस्स रसिस्स अवहारसमया कडजुम्मा, से तं कडजुम्मकलिश्रोगे । ( भगवती ४, ३५, १,२ ) ।
जिस राशि को चार से भाजित करने पर एक शेष रहे और अपहार के समय कृतयुग्म हों, वह कृतयुग्मकल्यो जराशि कहलाती है । जैसे – १७÷ ४=४, शेष १) । कृतयुग्मकृतयुग्न राशि - जेणं रासी चउक्कएवं अवहारेण प्रवहीरमाणे चउपज्जवसिए, जेणं तस्स रासिस्स अवहारसमया ते वि कडजुम्मा, से तं कडजुम्मकडजुम्मे । (भगवती ४, ३५, १, २, पृ. ३३८ । जिस राशि को चार भागहार से भाजित करने पर चार शेष रहें और जिसके अपहारसमय कृतयुग्म हों, वह कृतयुग्मकृतयुग्म राशि कहलाती है। जैसे— १६÷ ४=४.
३६५, जैन - लक्षणावली
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[कृतिकर्म
कृतयुग्मत्रयोज - जेणं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे तिपज्जवसिए जेणं तस्स रासिस्स श्रवहारसमया कडजुम्मा, से तं कडजुम्मतेयोए । (भगवती. ४, ३५, १, २. पू. ३३८ ) ।
जिस राशि को चार भागहार से भाजित करने पर तीन शेष रहें और अपहारसमय कृतयुग्म हों, वह कृतयुग्मज्योज राशि कहलाती है । जैसे - १६÷ ४=४, शेष ३.
कृतयुग्मद्वापरयुग्म — जेणं रासी चउक्कएणं श्रवहारेण प्रवहीरमाणे दुपज्जवसिए जेणं तस्स रासि - स्स अवहारसमया कडजुम्मा, से तं कडजुम्मदावरजुम्मे । ( भगवती ३५, १, १, पृ. ३३९ ) । जिस राशि को चार भागहार से भाजित करने पर दो शेष रहें, और अपहारसमय कृतयुग्म हों, वह कृतयुग्मद्वापरयुग्म राशि कही जाती है । जैसे - १८ ÷ ४=४, शेष २ ।
कृति - १. एष कृतिशब्दः कर्तृवर्जितेषु त्रिकाल - गोचराशेषकारकेषु वर्तते × × ×। (ध. पु. ε, पू. २३८ ) ; जो रासी बग्गिदो संतो बड्ढदि, सगवग्गादो सगवग्गमूलमवणिय वग्गिज्जमाणो बुड्ढमल्लियइ, सो कदी णाम । (धव. पु. ६, पृ. २७४ ); तिणि आदि कादूण जा उक्कस्साणंते त्ति गणणा कदित्ति भण्णदे । वृत्तं च- एयादीया गणणा दो
दीया विजाण संखेत्ति । तीयादीणं णियमा कदि त्ति सण्णा दुबोद्धव्वा ॥ ( धव. पु. ६, पृ. २७६ ) । २. तीयादीणं णियमा कदित्ति सण्णा मुणेदव्वा । ( त्रि. सा. १६) ।
कर्ता को छोड़कर शेष सभी कारकों को कृति कहा जाता है । जो राशि वर्गित होकर वृद्धिंगत होती है और अपने वर्ग में से वर्गमूल को कम करके वर्गित करने पर वृद्धि को प्राप्त होती है वह कृति कहलाती है । इस लक्षण के अनुसार ३ को श्रादि लेकर श्रागे की सभी संख्याओं को कृति के अन्तर्गत समझना चाहिए । १ का वर्ग करने पर चूंकि वृद्धि नहीं होती है तथा २ का वर्ग करके व उसमें से वर्गमूल को कम करके पुन: वर्ग करने पर वृद्धि नहीं होती है ( २x२= ४; ४-२=२) । अतः १ व २ संख्या को कृति नहीं कहा जा सकता है । कृतिकर्म - - १. किदियम्मं अरहंत सिद्ध श्राइरियबहुसुदसाहूणं पूजाविहाणं वण्णेइ । ( धव. पु. १,
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