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निक्षेप] ६०६, जन-लक्षणावली
[निगमन ५२, पृ. ६५७); तदधिगतानाम्-श्रुत नयाधि. पुस्तक या कमण्डल प्रादि कोई भी वस्तु जब कहीं गतानां द्रव्य-पर्यायरूपाणां जीवादीनाम्, वाच्यतामा- पर रखी जाती है तब उसके रखने के स्थान को पन्नानाम्-साधारणस्वरूपाणाम्-xxxवाच- देखकर उसका मयूरपिच्छी से प्रतिलेखन करना केष जीवादिशब्देष भेदेन संकर-व्यतिकरव्यतिरेके. (झाड़ना), अथवा उसके पास में न रहने पर णोपन्यासो जीव'द्यर्थानां प्ररूपणं न्यासो निक्षेपः कोमल वस्त्र से प्रतिलेखन करना, इसका नाम इति यावत् । (न्यायकु. ७४, पु. ८०४)। १०. निक्षेपणासमिति है। धमिणि क्वचिद् धर्माणां नयाधिगतानां निक्षेपणं निक्षेपणी कथा-ततो निक्षेपणी तत्त्वमत निक्षेप. योजनम् अध्यारोपणं निक्षेपः । (सिद्धिवि.व. १२-१, कोविदाम् । (पपपु. १०६-६२)। पृ. ७३८)। ११. नियतं निश्चितं वा नामादि- यथार्थ मत के निक्षेप-प्रतिष्ठापन- में दक्ष (समर्थ) सम्भवत्पक्षरचनात्मक क्षेपणं न्यसनं निक्षेपः ।x कथा निक्षेपणी कथा कहलाती है। xx प्रत्र संग्रहश्लोकाः-xxx निक्षेपणं तु निक्षोदिम (निक्खोदिम)- पोक्खरणी-वावीनिक्षेपो नामादिन्यसनात्मकः॥ xxx (उत्तरा. कूव-तलाय-लेण-सूरंगादिदव्वं णिक्खोदणकिरिया. नि. शा. व. २८, पृ.१०); नियतं निश्चितं वा णिप्फण्णं णिक्खोदिमं णाम । णिक्खोदण खणणमिदि ऽऽसनम्-नामादिरचनात्मक क्षेपण न्यासः, निक्षेप वृत्तं होदि । (धव, पु. ६, पृ. २७३)।
या (उत्तरा. नि. शा.व. ६५, पृ. ७२)। पुष्करिणी, बावड़ी, मां तालाब, लयन (पर्वतीय १२. निक्षेपो नाम-स्थापना-द्रव्य-भावर्वस्तुनो न्यासः । पाषाणगह) और सुरंग प्रादि द्रव्य जो खोदने रूप (समवा. अभय. व. १४०)। १३. निक्षेपणं निक्षेपो क्रिया से सिद्ध होते हैं उनका नाम निक्षोदिम या नामादिन्यासः। (व्यव. भा. मलय.व. १, पृ १)। णिक्खोदिम है। १४. निक्षेपणं निक्षेपो नामादिभेदैः शास्त्रस्य न्यस- निगडदोष-१. निगडपीडित इव पादयोर्महदन्तनम् । (प्राव. नि. मलय. .७९)। १५. निक्षेपणं रालं कृत्वा यस्तिष्ठति कायोत्सर्गेण तस्य , निगाह. निक्षिप्यतेऽनेनास्मिन्नस्मादिति वा निक्षेपः--उप- दोषः। (मला. व. ७-१७१)। २. निगडितस्येव क्रमानीतव्याचिख्यासितशास्त्रस्य नामादिभियंसन- विवृतपादस्य मिलि तपादस्य वा स्थानं निगडदोषः । मित्यर्थः, निक्षेपो न्यासः स्थापनेति पर्यायाः। (योगशा. स्वो. विव. ३-१३०, पृ. २५०)। (जम्बूद्वी. शा. वृ. पृ. ५)।
१सांकल के बन्धन से पीडित व्यक्ति के समान १ जिसे रखा जाता है उसे निक्षेप कहा जाता है। दोनों पैरों में भारी अन्तर कर जो कायोत्सर्ग से यह जीवाधिकरण का एक भेद है। २ लक्षण स्थित होता है वह निगड नामक कायोत्सर्ग दोष
(भेद) पूर्वक विस्तार से जीवादि से लिप्त होता है। मूलाचार के अनुसार यह कायोतत्त्वों के जानने के लिए जो न्यास-नाम-स्थाप- त्सर्ग का सातवां और योगशास्त्र के अनुसार पाठवां नादि के भेद से विरचना या निक्षेप किया जाता दोष है। है उसे निक्षेप कहते हैं। ६ द्रव्याथिक व पर्याया- निगम-१. निगमो वणिग्जन निवास: । (प्रश्नध्या. थिक इन दोनों नयों का विषयभूत जो तत्त्वार्थ के अभय. व. १७५)। २. निगमः प्रभूततन्वणिग्वर्गाज्ञान का हेतु है वह निक्षेप कहलाता है। उसका वासः । (जीवाजी. मलय.बु. १-३६, पृ. ४०)। प्रयोजन प्रस्तुत की व्याख्या करके संशय को दूर १ जहां पर व्यापारी जन निवास करते हैं उसे करना है।
निगम कहते हैं। निक्षेपरणासमिति-देखो मादान-निक्षेपणसमिति। निगमन-१. निगमणं नाम जत्थ पसाहिए प्रत्ये यत्किचिद वस्त पुस्तक-कमण्डलूमुख्यं क्वचिन्निक्षि- प्रज्झत्थ हेऊणं पुणो कहणं कज्जइ एयं निगम प्यते मुच्यते ध्रियते तन्निक्षेपस्थानं दृष्ट्वा तथैव (दशवै. चू. १, पृ. ३९) । २. प्रतिज्ञायास्तु (उपप्रतिलिख्य च ध्रियते मयूरपिच्छस्यासन्निधाने मृदु- संहारः) निगमनम् । (परीक्षाम. ३-५१)।
याचित्तथा क्रियते निक्षेपणानाम्नी पञ्चमी ३. प्रतिज्ञाया उपसंहारः साध्यधर्मविशिष्टत्वेन . समितिः । (चा. प्रा. टी.३६)।
प्रदर्शनं निगमनम् । (प्र. र. मा. ३-५१)।
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