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नारी]
रहित केवल मर्कटबन्ध ही होता है । नारी - १. तारिसनो णत्थि श्ररी णरस्स प्रण्णेत्ति उच्चदे णारी । (भ. प्रा. ६७८ ) । २. स्तन-योनिमती नारी XX X 1 (पंचसं श्रमित. १- १६५ ) । १ जिसके समान नर (मनुष्य) का दूसरा श्ररि (शत्र) नहीं है उसे नारी कहा जाता है । २. जो स्तन और योनि से सहित होती है उसे नारी कहते हैं
नालिका - १. ते (लवा: ) ष्टा त्रिशदधं च नालिका ॥ ( त. भा. ४-१५) । २. सत्तत्तरिदलिदलवा णाली XXX ॥ ( ति प ४ - २८७ ) । ३. श्रट्ठत्तीसं तुलवा अद्धलवो चेव नालिया होइ। (ज्योतिष्क. १ - १० ) । ४. अठतीस लवे अद्धलवं च घेत्तूण एगा गालिया हवदि । ( धव. पु. ३, पू. ६५ ); श्रट्ठत्तीसद्धलवा णाली XX X 1 ( घव. पु. ३,८६ उदु.; भावसं. वे. ३१३, गो. जो. ५७५; जं. दी. प. १३ - ६ ) ; साद्धप्रवृत्ती सलवेहि णाली णाम कालो होदि । ( धव. पु. ४, पृ. ३१८ ) ।
१ साढ़े अड़तीस (३८३) लव प्रमाण काल को नालिका या नाली कहते हैं । नालो-देखो नालिका |
नावागति - १. जण्णं णावा पुब्ववेतालीप्रो दाहिणवेयालि जलपणं गच्छति, दाहिणवेतालियो वा प्रवरवेतालि जलपहेणं गच्छति से तं णावागती । (प्रज्ञाप. सू. २०५, पु. ३२७) । २. नावागतिर्यन्नावा महानद्यादो गमनम् । (प्रज्ञाप. मलय. वृ. २०५, पृ. ३२९) ।
१ नाव के द्वारा पूर्व वेताली से दक्षिण बेताली और दक्षिण वेताली से अपर वेताली को जलमार्ग से जाना, इसका नाम नावागति है । नाश - नाशः पुनः स्वभावप्रच्यवनम् । (सिद्धिवि. वृ. ८- २०, पृ. ५५४) ।
स्वभाव की युति का नाम नाश है । नासा संस्कार - प्रन्तर्मल - रोमापनोदादिको नासासंस्कार: । (भ. प्रा. मूला. ६३ ) । नासिका के भीतर के मल और रोमों के दूर करने आदि को नासासंस्कार कहते हैं । नास्ति वक्तव्य - १. आइट्ठोऽसब्भावे देसो देसो य उभयहा जस्स । तं णत्थि प्रवत्तव्वं च होइ दवियं वियप्पवता || (सन्मति १-३६, पू. ४७४ ) ।
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६०.३, जैन - लक्षणावली
[निकाचनां
२. परद्रव्य-क्षेत्र काल- भावैश्च युगपत्स्व-परद्रव्यक्षेत्र काल- भावश्चादिष्टं नास्ति चावत्तव्यं द्रव्यम् । (पंचा. का. अमृत. वृ. १४ ) ।
१ द्रव्य के एक अंश या धर्म के असद्भाव में श्रीर दूसरे श्रंश के दोनों में- सदभाव श्रसद्भाव मेंयुगपत् विवक्षित होने पर 'नास्ति श्रवक्तव्य द्रव्य' नाम का छठा भंग होता है । २ परद्रव्य-क्षेत्र कालभाव से तथा युगपत् स्द और पर द्रव्य क्षेत्र- कालभाव से विवक्षित द्रव्य को नास्ति श्रवक्तव्यद्रव्य कहा जाता है ।
नास्तिक - देव गुरु धर्मरहिते पुसि नास्तिप्रत्ययः । ( नीतिवा २५- ६५, पृ. २५५) ।
देव, गुरु और धर्म से रहित उनके ऊपर श्रद्धा न रखने वाले - पुरुष के विषय में जो नास्ति' प्रत्यय होता है उसे नास्तिक कहा जाता है । नास्तिद्रव्य - १ प्रत्यंतर भू एहि णियएहि य XXX । ( सम्मति. १- ३६, पृ. ४४१) । २. परद्रव्य-क्षेत्र - काल-भावेरादिष्टं नास्तिद्रव्यम् । (पंचा. का. अमृत. वृ. १४) ।
१ अर्थान्तरभूत-घट से भिन्न पट श्रादि की विवक्षा में 'नास्ति घट : ' ऐसा दूसरा भंग होता है । २ पर द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से द्रव्य का कथन करने पर 'नास्ति द्रव्य' कहा जाता है ।
निकाच-निकाचो निकाचनं च्छंदनं निमन्त्रणमित्यकार्थाः । ( व्यव. भा. मलय. वृ. ५-४६ ) 1 निकाच, निकाचन, छंदन और निमंत्रण ये समानार्थक हैं ।
निकाचना - देखो निकाचिता । ९. तस्सेव ( पुष्वपुट्ठस्स कम्मस्सेव ) तत्तसंकोट्टियलोहसलागासंबंधसरिसकिरिता निकायणा । ( कर्मप्र. चू. बं. क. २, पू. १८) । २. तथा 'कच बन्धने' नितरां कच्यतेस्वयमेव बन्घमायाति कर्म जीवस्य तथाविधसंक्लि - ष्टाध्यवसाय परिणतस्य तत्प्रयुङ्क्ते जीव एव, तथानुकूल्येन भवनात् ततः प्रयोक्तृव्यापारे णिज्, ततो निकाच्यते अवश्यं वेद्यतया व्यवस्थाप्यते जीवेन यया सानिकाचना । अथवा 'कच बन्धने' इति चौरादिकोsप्यस्ति ततो निकाच्यते श्रवश्यं वेद्यतया निबध्यते यया कर्म सा निकाचना जीववीर्यशेषपरिणतिः । ( कर्मप्र. मलय. वृ. ब. क. २, पृ. १६; पंचसं
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