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द्रव्यप्रतिसेवना]
वा निरसनं द्रव्यप्रतिक्रमणम् । (भ. प्रा. विजयो. ११६, पृ. २७५); सचित्तमचित्त मिश्रमिति त्रिवि कल्पं द्रव्यं तस्य परिहरणं द्रव्यप्रतिक्रमणम् । ( भ. प्रा. विजयो. ४२१) । २. सावद्यद्रव्यसेवायाः परिणामस्य निवर्तनं द्रव्यप्रतिक्रमणम् । (मूला. वू. ७- ११५) ।
१ वास्तु क्षेत्र प्रादि दस प्रकार के परिग्रह; उद्गम, उत्पादन श्रोर एषणा दोष से दूषित वसतियों; उपकरणों और भिक्षात्रों का परित्याग करना; तथा लोलुपता व अभिमान के कारणभूत प्रथवा संक्लेश के हेतुभूत प्रयोग्य प्राहारादि का छोड़ना, इसका नाम द्रव्यप्रतिक्रमण है । २ पापयुक्त द्रव्य के सेवन विषयक परिणाम के छोड़ने को द्रव्यप्रतिक्रमण कहा जाता है।
द्रव्यप्रतिसेवना -- तत्र या तस्य तस्य वस्तुनः प्रतिषेव्यमानता सा द्रव्यरूपा प्रतिषेवणा । ( व्यव. भा. मलय. वृ. १-३६, पृ. १६) । विवक्षित वस्तु की प्रतिसेव्यमानता - प्रतिसेवन की योग्यता या कल्प्यताको द्रव्यप्रतिसेवना कहा जाता है।
५५२, जैन-लक्षणावली
द्रव्य प्रत्याख्यान - १. दव्त्रम्मि निण्हगाई XX X | ( श्राव. नि. १०५३) । २. द्रव्यमिति द्वारपरामर्शः, निण्हगाइत्ति निह्नवादिप्रत्याख्यानम् । श्रादिशब्दाद् द्रव्ययोर्द्रव्याणां द्रव्यभूतस्य द्रव्यहेतोर्वा यत् प्रत्याख्यानं तद् द्रव्यप्रत्याख्यानमिति । ( श्राव. नि. हरि वृ. १०४०)। ३. द्रव्यतो भावतश्चैव प्रत्याख्यानं द्विधा मतम् । अपेक्षादिकृतं ह्याद्यमतोऽन्यच्चरमं मतम् । अपेक्षाचाविधिश्चैवापरिणामस्तथैव च । प्रत्याख्यानस्य विघ्नास्तु वीर्याभावस्तथापरः । उदग्रवीर्यविरहात् क्लिष्टकर्मोदयेन यत् । बाघते तदपि द्रव्यप्रत्याख्यानं प्रकीर्तितम् ॥ (अष्टक. ८, १-२ व ६ ) । ४. अयोग्याहारोपकरणद्रव्याणि न ग्रहीष्यामीति चिन्ताप्रबन्धो द्रव्यप्रत्यास्थानम् । (म. प्रा. विजयो. ११६, पृ. २७६) । ५. द्रव्य प्रत्याख्यानं तु द्रव्यस्य द्रव्येण द्रव्याद् द्रव्ये द्रव्यभूतस्य वा प्रत्याख्यानं द्रव्यप्रत्याख्यानम्, तत्र सचित्ताचित्तमिश्रभेदस्य द्रव्यस्य प्रत्याख्यानं द्रव्यप्रत्याख्यानम्, द्रव्यनिमित्तं वा प्रत्याख्यानम् यथा घम्मिलस्स (सुत्रकृ. नि. शी. वृ. २, ४, १७६ )। ६. पापबन्धकारणद्रव्यं सावद्यं निरवद्यममि तपोनिमित्तं त्यक्तं
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[द्रव्यप्रमाणानुगम
न भोक्तव्यं न भोजयितव्यं नानुमन्तव्यमिति द्रव्यप्रत्याख्यानम् । ( मूला. वृ. ७- १३५ ) । ७. द्रव्ये द्रव्यविषयं प्रत्याख्यानं निह्नवः, द्रव्यस्य द्रव्ययोर्द्रव्याणां द्रव्यभूतस्य द्रव्यहेतोर्वा प्रत्याख्यानम् । (श्राव. नि. मलय. वू. १०५३, पृ. ५७६) ।
१ द्रव्यविषयक प्रत्याख्यान व निह्नव - सत्यके अपलाप - श्रादि के प्रत्याख्यान का नाम द्रव्यप्रत्याख्यान है । ४ मैं प्रयोग्य आहार व उपकरण द्रव्य को ग्रहण नहीं करूँगा, इस प्रकार के विचार की निरन्तरता को द्रव्यप्रत्याख्यान कहते हैं । ५ द्रव्यका, द्रव्यके द्वारा, द्रव्य से, द्रव्य के विषय में अथवा द्रव्यस्वरूप वस्तु प्रत्याख्यानको द्रव्य प्रत्याख्यान कहते हैं । सचित्त, प्रचित्त व सचित्त प्रचित्त द्रव्य के प्रत्याख्यान का अथवा द्रव्य के निमित्त किये जाने वाले प्रत्याख्यानको द्रव्य प्रत्याख्यान कहा जाता है । जैसेधम्मिल्ल ( बद्धकेश) का प्रत्याख्यान । द्रव्यप्रमारण- प्रमिनो[णो]ति प्रमीयते वा परिच्छिद्यते येनार्थस्तत्प्रमाणम्, तत्र द्रव्यमेव प्रमाणं दण्डादिद्रव्येण वा धनुरादिना शरीरादेर्द्रव्यर्वा दण्ड- हस्तागुलादिभिः द्रव्यस्य वा जीवादेः द्रव्याणां वा जीवघ
धर्मादीनां द्रव्ये वा परमाण्वादी पर्यायाणां द्रव्येषु वा तेष्वेव तेषामेव प्रमाणं द्रव्यप्रमाणम् । ( स्थाना. अभय. वृ. ४, १, २५८ ) ।
'जो मापता है' इस विग्रह के अनुसार द्रव्य ही प्रमाण होता है अथवा जिसके द्वारा पदार्थ जाना जाता है उसका नाम प्रमाण है । तदनुसार धनुष श्रादि द्रव्य के द्वारा शरीरादि को ऊँचाई का प्रमाण जाना जाता है; दण्ड, हाथ व अंगुल आदि द्रव्यों के द्वारा एक जीवादि द्रव्यका श्रथवा जीव, धर्म व अधर्म श्रादि अनेक द्रव्यों का प्रमाण जाना जाता है; इसी प्रकार परमाणु श्रादि द्रव्यगत पर्यायों का प्रमाण जाना जाता है। इस क्रमसे द्रव्यप्रमाण अनेक प्रकार का सम्भव है ।
वा ।
द्रव्यप्रमारणानुगम - यथावस्त्ववबोधः अनुगमः, केवलि श्रुतकेवलिभिरनुगतानुरूवेणावगमो द्रव्यप्रमाणस्य द्रव्यप्रमाणयोर्वा अनुगमः द्रव्यप्रमाणानुगमः । (घव. पु. ३, पृ. ८) ।
वस्तु के यथार्थ श्रवबोध का नाम अनुगम है । अथवा केवली और श्रुतकेवली के परम्परागत उपदेश के अनुसार जो वस्तु का बोध होता है वह अनुगम
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