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दत्ति]
५०८, जैन-लक्षणावली
[दयादत्ति के प्रभाव को बतलाना, इसे दंडुक्कल (दण्डोत्कल) (श्रा. प्र. टी. २८८)। २. दन्त-केश-नखास्थिकहा जाता है। यह पांच उत्कलभेदों में प्रथम है। त्वग्रोम्णो ग्रहणमाकरे । सांगस्य वाणिज्याथं दन्तदत्ति-तत्र करस्थालादिभ्यो ऽव्यवच्छिन्नघारया बाणिज्यमुच्यते । (योगशा. ३-१०७, पृ. ५६९%3 या पतति भिक्षा सा दत्तिरभिधीयते, भिक्षाविच्छेदे त्रि. श. पु. च. ६, ३, ३४१) । ३. दन्तवाणिज्यं च द्वितीया दत्तिः, सिक्थमात्रेऽपि पात्रे पतिते भिन्नैव यत्पूर्वमेव पुलिन्दाणां मूल्यं ददाति दन्तान् मे यूयं दत्तिरिति । (प्रव. सारो. व. १९७)।
दद्याते ति, ततस्ते हस्तिनो घ्नन्ति अचिरादसौ हाथ के थाल प्रादि से प्रखण्ड धारापूर्वक जो भिक्षा वाणिजक एष्यतीति कृत्वा। (धर्मबिन्दु व. ३-२६)। गिरती है उसे दत्ति कहते हैं, भिक्षा का विच्छेद ४. दन्तवाणिज्यं हस्त्यादिदन्ताद्यवयवानां पुलिन्दाहोने पर दूसरी दत्ति कहलाती है, पात्र में सीथ दिषु द्रव्यदानेन तदुत्पत्तिस्थाने वाणिज्याथं ग्रहमात्र के भी गिरने पर भिन्न ही दत्ति मानी जाती णम् । (सा. ध. स्वो. टी. ५-२२)। है। इस प्रकार एक-दो प्रादि दत्तियों की संख्या के दांतों को देने के लिए जो पहिले ही भीलों को अनुसार जो भोजन ग्रहण किया जाता है वह दस मूल्य दे दिया जाता है उसके लिए भील पीछे 'वह प्रकार के प्रत्याख्यान में परिमाणकृत प्रत्याख्यान शीघ्र ही प्राने वाला होगा' इस विचार से हाथी माना जाता है।
का घात करते हैं, यह दन्तवाणिज्य कहलाता है। दत्ति-ग्रासपरिमारण---१. दत्ति घासपरिमाणं एके- दन्तसंस्कार-दन्तमलापकर्षणं तद्रंजनं वा दन्तनैव दीयमानं द्वाभ्यामेवेति दानक्रियापरिमाणम्, संस्कारः। (भ. प्रा. विजयो. टी.९३)। पानीतायामपि भिक्षायाम् इयत एवं ग्रासान् गृह्णामि दांतों के मैल के निकालने तथा उनके रंगने को इति वा परिमाणम् । (भ. प्रा. विजयो. २१६)। दन्तसंस्कार कहते हैं। २. दत्ति-घासपरिमाणं एके नैव दायकेन द्वाभ्यां वा दम-१. मनोज्ञामनोजेन्द्रियविषयेषु राग द्वेषविरदीयमानस्य ग्रहणं दत्तिपरिमाणम्, पानीतायामपि तिर्दमः संयमः। (युक्त्यनु. टी. ६)। २. दम इन्द्रिभिक्षायां इयत इव ग्रासान् ग्रहीष्यामि इति धास- यजयः । (योगशा. स्वो. विव. २-३१, पृ. २७५)। परिमाणम् । (भ. प्रा. मूला. २१६) ।
१ इष्ट-अनिष्ट इन्द्रियविषयों में राग-द्वेष के छोडने एक ही दाता के द्वारा अथवा दो ही दाताओं के द्वारा का नाम दम-संयम है। २ इन्द्रियों पर विजय दिये जाने वाले भोजन को ग्रहण करूंगा, इस प्रकार प्राप्त करना, इसे दम कहते हैं। के दानक्रिया के प्रमाण को दत्तिपरिमाण कहते हैं। दम्भ-दम्भनं दम्भो वेष-वचनाद्यनुमेयः । (त. भा. लाई गई भिक्षा में भी इतने ही ग्रासोंको ग्रहण करूंगा, सिद्ध. व.८-१०)। इस प्रकार ग्रासों का प्रमाण करने को प्रासपरि- वेष और वचन प्रादि से जिस छल-कपट का अनमाण कहा जाता है। .
मान किया जा सकता है उसे दम्भ कहते हैं। यह दस्तकर्म-हत्थिदंतेसु किण्णपडिमानो दंतकम्म। माया कषाय का पर्याय नाम है। (धव. पु. ६, पृ. २५०); हत्थिदंतुक्किण्णपडिमानो दया-१.xxx दया प्राण्यनुकम्पनम् । (म. दंतकम्माणि णाम। (धव. पु. १३, पृ. १०); पु. ५-२१)। २. दया भूतानुकम्पा। (योगशा.
तविकणजिणिदपडिमानो दंतकम्माणि स्वो. विव. २-४); दया करुणा । (योगशा. स्वो. मामा (धव. पु. १३, पृ. २०२); दंतिदंतादिसु विव. ३-१६)। ३. दया दुःखार्तजन्तुत्राणाभिलाषः । घडिदरूवाणि दंतकम्माणि णाम । (धव. पु.१४, (अन. घ. स्वो. टी.४-१) ।
१प्राणियों के प्रति अनुकम्पा करने को-उनके मामी के दांतों पर उकेरी गई प्रतिमानों को दन्तकम दुःख को देखकर स्वयं दुख के अनुभव करने कोकहते हैं।
दया कहते हैं। दन्तवाणिज्य-१. दन्तवाणिजं-पुचि चेव दयादत्ति- १. सानुकम्पमनुग्राह्य प्राणिवन्टेपूलिदाणं मुल्ल देइ दंते देज्जाहित्ति, पच्छा पुलिंदा भयप्रदा । त्रिशुद्धयनुगता सेयं दयादत्तिर्मता बुधः। हत्थि पाएति अचिरा सो वाणियनो एतित्ति काउं। (म. पु. ३८-३६) । २. दयादत्तिरनुकम्पयाऽनु
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