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गलि ]
मछली पकड़ने के लिए लोहे के जिस कांटे के प्रन्त में मांस का टुकड़ा लगा कर पानी में फेंकते हैं उसे गल कहते हैं ।
गलि -- गिलत्येव केवलं न तु वहति गच्छति वेतिगलि: । (उत्तरा. नि. शा. वृ. १-६४, पृ. ४६ ) । जो केवल निगलता है, परन्तु न बोझा ढोता है और न चलता है उस दुष्ट घोड़े का नाम गलि है । अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार गलि ( अविनीत ) घोड़ा बार-बार चाबुक के मारने पर चलता व लौटता है, उसी प्रकार जो शिष्य पुनः पुनः गुरु के वचन की अपेक्षा करके प्रवृत्ति-निवृत्ति करता है, वह गलि शिष्य कहलाता है । गवादिसंख्यातिक्रम - गौरनड्वाननड्वाही च, स श्रादिर्यस्य द्विपद् चतुष्पदवर्गस्य स गवादिः । श्रादिशब्दान्महिष-मेषाऽविक करभ - रासभ तुरग हस्त्यादिचतुष्पदानां हंस-मयूर कुर्कुट शुकसारिका पारावतचकोरादिपक्षिद्विपदानां पत्नी - उपरुद्ध दासी दासकर्मकरपादात्यादिमनुष्याणां च संग्रहः, तस्य संख्या व्रतकाले यावज्जीवं चतुर्मासादिकालावधि वा यत्परिमाणं गृहीतं तस्या प्रतिक्रम उल्लङ्घनं संख्यातिक्रमोऽतिचारः । (योगशा. स्वो विव. ३-६५) । परिग्रहपरिमाण करते समय जो प्रमाण द्विपद व चतुष्पदादितियंचों का तथा दासी दास श्रादि मनुष्यों का ग्रहण किया गया है, उसके उल्लंघन करने को - बढ़ा लेने को — गवादिसंख्यातिक्रम कहते हैं । गवानृत -- देखो गवालीक | गवानृतं अल्पक्षी रामेव बहुक्षीरां वक्ति विपर्ययो वा । (श्रा. प्र. टी. २६०)। थोड़े दूध वाली गाय को बहुत दूध वाली अथवा इससे विपरीत भाषण करना, यह गवानृत कहलाता है । गवालीक - गवालीकमल्पक्षीरां बहुक्षीरां विपर्यय वा वदतः, इदमपि सर्वचतुष्पदविषयस्यालीकस्योपलक्षणम् । (योगशा. स्वो विव. २- ५४; सा. ध. ४–३ε)।
४११, जैन-लक्षणावली
गाय सम्बन्धी प्रसत्य वचन के बोलने को गवालीक कहते हैं । जैसे-कम दूध देने वाली गाय को अधिक 'देने वाली कहना और अधिक दूध देने दूध वाली को कम दूध देने वाली कहना । इससे गाय श्रादि सभी चतुष्पदों को ग्रहण करना चाहिए । गवेषरणा - १. गवेषणा व्यतिरेकधर्मस्वरूपालोचना । (नन्दी, हरि वू. पू. ७८ ) । २. व्यतिरेक
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[गायक
धर्मालोचना गवेषणा । (श्राव. नि. हरि. व मलय. वृ. १२) । ३. गवेष्यते श्रनया इर्ति गवेषणा । ( घव. पु.१३, पृ. २४२) ।
१ व्यतिरेक धर्म के स्वरूप की श्रालोचना का नाम गवेषणा है । ३ जिसके द्वारा श्रवग्रह से गृहीत अर्थ का अन्वेषण किया जाता है उसे गवेषणा कहते हैं । यह ईहा मतिज्ञान का पर्याय नाम है ।
गव्यूत ( गाउम्र ) - १. एएणं घणुप्पमाणेणं दो घणुसहस्साइं गाउयं । ( भगवती ६, ७, १, पृ. ८२) । २. दो घणुसहस्साइं गाउ । ( श्रनुयो. सू. १३३, पृ. १५७) । ३. द्वे दण्डसहस्र गव्यूतम् । (त. वा. ३, ३८, ६) । ४. वेहि दंडसहस्सेहि एवं गाउ
होदि । ( धव. पु. १३, पू. ३३६ ) । ५. वेदंडसहस्सेहि य गाउदमेगं तु होइ णिद्दिट्ठा | (जं. दी. प. १३-३४) ।
१ दो हजार धनुष को गव्यूत (कोश) कहते हैं । गव्यूत पृथक्त्व - तं (गाउ ) अट्ठहि गुणिदे गाउअधत्तं । ( धव. पु. १३, पृ. ३३९ ) । दो हजार धनुष प्रमाण गव्यूत को श्राठ से गुणित करने पर व्यूतपृथक्त्व कहलाता है ।
गव्यूति - देखो गव्यूत । द्विसहस्रदण्डैर्गव्यूतिः । (त. वृत्ति श्रुत. ३ - ३८ ) ।
दो हजार धनुष प्रमाण माप को गव्यूति कहते हैं । गान्धर्व - देखो गन्धर्व । १. गान्धर्वा रक्तावदाता गम्भीराः प्रियदर्शनाः सुरूपाः सुमुखाकाराः सुस्वरा मौलिघरा हारविभूषणास्तुम्बुरुवृक्षध्वजाः । ( त. भा. ४ - १२ ) । २. मातुः पितुर्बन्धूनां चाप्रामाण्यात् परस्परानुरागेण मिथः समवायाद् गान्धर्वः । ( नीतिवा. ३१-६; योगशा. स्वो विव. १-४७ ) । ३. परस्परानुरागेण मिथः समवायाद् गान्धर्वः । (ध. वि. मु. वृ. १ - १२) |
१ जो देव रक्त प्रवदात, गम्भीर, प्रियदर्शन, सुन्दर, उत्तम मुखाकृति से सम्पन्न, सुन्दर स्वरवाले, मुकुट के धारक और हार से विभूषित होते हैं वे गान्धवं कहलाते हैं । २ माता-पिता और बन्धुजनों की अनुमति के बिना श्रापस के अनुराग से वर-कन्या के परस्पर सम्मिलन को गान्धर्व विवाह कहते हैं । गायक - रूपाजीवावृत्त्युपदेष्टा गायक: । (नीतिवा. १४-२४) ।
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