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७७८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
स-स स देखो सं = सम् ।
सगा। आत्मीय लोग । 'तंत वि ["तन्त्र] स पुं [श्वन्]श्वान । पाग पु[ पाक चाण्डाल । स्वाधीन । न. स्वकीय सिद्धान्त । त्थ घि "मुहि पुंस्त्री [मुखि] कुत्ते की तरह | [स्थ] तंदुरुस्त । सुख से अवस्थित । आचरण । 'वच पुं[°पच]चाण्डाल । वाग, __°पक्ख पुं [°पक्ष] साधर्मिक । तरफदार । 'वाय देखो °पाग।
अपना पक्ष । °पाय न [°पात्र ] निज का स अ [स्वर्] स्वर्ग।
नाम । °प्पभ वि [ प्रभ ] निज से ही स वि [सत् श्रेष्ठ । विद्यमान । "उरिस पुं शोभनेवाला । ब्भाव, °भाव पुं. प्रकृति, [°पुरुष] श्रेष्ठ पुरुष, सज्जन । °क्कय वि | निसर्ग । °भावन्न वि [ भावज्ञ] स्वभाव का [कृत] सम्मानित । देखो क्किअ । कह जानकार । °यण देखो जण । रूय, रूव वि [कथ] सत्य-वक्ता । "क्किअ न [कृत] न [°रूप] स्वभाव । 'संवेयण न [संवेदन] सत्कार, सम्मान । देखो °क्कय । गइ स्त्री स्वप्रत्यक्षज्ञान ! °हाअ, हाव देखो °भाव । [°गति] उत्तम गति- स्वर्ग । मुक्ति । °जण हाववाद [ भाववाद] स्वभाव से ही पंज्जन] सत्परुष । त्तम वि. सज्जनों में सब कुछ होता है ऐसा माननेवाला मत ।
अतिश्रेष्ठ । 'त्थाम न [°स्थामन्] प्रशस्त हिअ न [°हित] निज का भला। वि. बल । धम्मिअ वि ['धार्मिक] श्रेष्ठ
स्वहितकर । धार्मिक । °न्नाण न [°ज्ज्ञान] उत्तम ज्ञान । प्पभ वि [°प्रभ ] सुन्दर प्रभावाला ।
स वि. सहित । समान । °अण्ह वि [तृष्ण] प्पुरिस पुं [पुरुष] सज्जन, किंपुरुष-निकाय
उत्कण्ठित । °अर वि [°कर] कर-सहित । के दक्षिण दिशा का इन्द्र । श्रीकृष्ण । °Cफल
अर वि [°गर] विष-युक्त । इण्ह देखो वि [°फल] श्रेष्ठ फलवाला । भाव पुं
अण्ह। °उण वि [°गुण] गुण-युक्त । [°भाव] सम्भव, उत्पत्ति । सत्व, अस्तित्व ।
°उण्ण वि [ पुण्य] पुण्य-शाली। °ओस चित्त का अच्छा अभिप्राय । भावार्थ । विद्य
वि ["तोष सन्तुष्ट । °ओस वि [°दोष]
दोष-यक्त । काम वि. मनोरथ-युक्त । मान पदार्थ । °ब्भावदायणा स्त्री [°भाव
°कामणिज्जरा स्त्री ["कामनिर्जरा] कर्मदर्शन] प्रायश्चित्त के लिए निज दोष का
निर्जरा का एक भेद । काममरण न. पण्डितगुर्वादि के समक्ष प्रकटीकरण । 'ब्भाविअ
मरण । °केय वि [°केत] गृहस्थ । प्रत्यावि [°भावित] सद्भाव-युक्त । भूअ वि
ख्यान-विशेष । 'क्खर वि [°ाक्षर] विद्वान् । [°भूत] सत्य, वास्तविक । विद्यमान । याचार
°गार वि [°गार] गृहस्थ । 'गार वि पुं [°आचार] प्रशस्त आचरण । °रूव वि
[°कार] आकार-युक्त । °गुण वि. गुणी । [ रूप] प्रशस्त रूपवाला । ल्लग पुं [°लग]
ग्ग वि [°ग्र] श्रेष्ठ । 'ग्गह वि [°ग्रह] प्रशस्त संवरण, इन्द्रिय-संयम । °वाय पुं
उपरक्त, ग्रहण-युक्त, दुष्ट ग्रह से आक्रान्त । [°वाद] प्रशस्त वाद । °वाया स्त्री [°वाच्]
°घिण वि [°घृण] दयालु । °चक्खु, प्रशस्त वाणी।
°चक्कुअ वि [°चक्षुष, °चक्षुष्क] नेत्रवाला, स पुं [स्व] आत्मा, खुद । ज्ञाति । वि. देखता । °चित्त, °चेयण वि ["चेतन] आत्मीय। न. धन । कर्म । कडब्भि, चेतनावाला, सजीव । चित्त देखो चित्त ।
गडब्भि वि [°कृतभिद्] निज के किये हुए | जिय देखो °जीअ । जोइ वि[ज्योतिष] कर्मों का विनाशक : जण पुं [°जन] ज्ञाति, । प्रकाश-युक्त । जोणिय वि [ योनिक]
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