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________________ ५३६ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पम्ह-पयंग देवविमान । °लेस, 'लेस्स न [°लेश्य] पम्हुस सक [प्र+मुष्] चोरी करना। ब्रह्मलोक-स्थित एक देव-विमान । °वण्ण न । पम्हुह सक [स्म] स्मरण करना । [°वर्ण] वही पूर्वोक्त अर्थ। °सिंग न | पम्हण वि [स्मर्तृ] स्मरण करनेवाला । [शृङ्ग] वही अर्थ । °सिट्ठ न [°सृष्ट] | पय सक [पच्] पकाना, पाक करना । वही पूर्वोक्त अर्थ । वित्त न [वर्त] वही | पय सक [पद्] जाना । जानना । विचारना । अर्थ । पय पुंन [पयस्] दूध । जल । हर देखो पम्ह देखो पउम। गंध वि [गन्ध] कमल | पओहर। की गन्ध । वि. कमल के समान गन्धवाला। पय पुं [प्रज] प्राणी, जन्तु । °लेस वि [°लेश्य] पद्मा नामक लेश्या- पय पुंन [पद] विभक्ति के साथ का शब्द । वाला । लेसा स्त्री[°लेश्या पांचवीं लेश्या, शब्द-समूह, वाक्य । पैर । पाद-चिह्न । पद्य आत्मा का शुभतर परिणाम-विशेष । "लेस्स | का चौथा हिस्सा । निमित्त, कारण । स्थान । देखो 'लेस। पदवी,अधिकार । शरण । प्रदेश । व्यवसाय । पम्हअ सक [प्र + स्मृ] विस्मरण होना । कूट, जाल-विशेष । खेम न [°क्षेम] शिव, पम्हगावई स्त्री [पक्ष्मकावती] महाविदेह कल्याण । 'त्थ पुं [°स्थ] पदाति, पैदल । वर्ष का एक विजय. प्रदेश-विशेष । °पास पुं [°पाश] वागुरा, जाल आदि पम्हट्ट वि [प्रस्मृत] विस्मृत । जिसको बन्धन । रक्ख पुं[°रक्ष] प्यादा । विग्गह विस्मरण हुआ हो। पुं [विग्रह] पदविच्छेद । विभाग पुं. उत्सर्ग पम्हट्ठ वि [दे] प्रभ्रष्ट, विलुप्त । प्रक्षिप्त ।। और अपवाद का यथा-स्थान निवेश, सामा. पम्हय वि [पक्ष्मज] पक्ष्म से उत्पन्न । न. एक चारी-विशेष । वीढ देखो पायवीढ । प्रकार का सूता। °समास पुं. पदों का समुदाय । Tणुसारि वि पम्हर पुं [दे] अपमृत्यु, अकाल मरण । [नुसारिन्] एक पद से अनेक अनुक्त पदों पम्हल वि [पक्ष्मल] सुन्दर पक्ष्म युक्त। का भी अनुसन्धान करने की शक्तिवाला । पम्हल पुं [दे] किंजल्क, पद्म आदि का °ाणुसारिणी स्त्री [°अनुसारिणी] एक पद के केसर । श्रवण से दूसरे अश्रुत पदों का स्वयं पता पम्हलिय वि [दे. पक्ष्मलित] धवलित ।। लगानेवाली बुद्धि । पम्हस सक [वि + स्मृ भूल जाना। पय (अप) देखो पत्त = प्राप्त । पम्हा स्त्री [पद्मा] पद्म लेश्या, आत्मा का पय देखो पया-प्रजा । °पाल वि. प्रजा का शुभतर परिणाम-विशेष । विजय क्षेत्र-विशेष । पालक । पुं. तूप-विशेप । पम्हार पुंदे] बेमौत मरण । °पय वि[प्रद] देनेवाला। पम्हावई स्त्री [पक्ष्मावती] विजय-विशेष को पयइ स्त्री [प्रकृति] संधि का अभाव । एक नगरी । पर्वत-विशेष । पयइ देखो पगइ। पम्हुट्ट वि [दे] नाश-प्राप्त । विस्मृत । पयइंद पुं [पतगेन्द्र, पदकेन्द्र] वानव्यन्तरपम्हत्तरवडिसग न [पक्ष्मोत्तरावतंसक] जातीय देवों का इन्द्र। ब्रह्मलोक में स्थित एक देव-विमान । पयई देखो पयवी। पम्हुस सक [वि + स्मृ] भूलना । पयंग पुं [पतङ्ग] सूर्य । रंग-विशेष, रञ्जनपम्हुस सक [प्र + मृश्] स्पर्श करना । । द्रव्य-विशेष । शलभ, फतिंगा । पयय = पतग, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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