SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 450
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र प्रायश्चित्त संग्रह / ९५३ दिने सुचन्त पञ्चभि: दश-द्वादशभिः पञ्चादश वा संख्याप्रयोगतः । १५३। ब्राह्मण पाँच दिनमें क्षत्रिय दश दिनमें, वैश्य बारह दिनमें, और शुद्र पन्द्रह दिनों में पातक के दोष से शुद्ध होते हैं। ४. व्यवहार गत सूतक पातक शुद्धिका काल प्रमाण अक्सर ३ पीढ़ी तक १० दिन १२ दिन १ महीने तक के बालक ४ 33 ८ वर्ष तकका बालक ५ ३ मास तकका गर्भपात 95 ११ 11 19 11 जन्म मरण 14 १० ६ ४ ३ " Jain Education International 3 २ 33 ६ 14 पुत्री, दासी, दास (अपने घर में ) गाय भैंस आदि (अपने घर में ) अनाचारी स्त्री सदा पुरुषके घर " १० ६ ४ "3 ३ पहर पहर गृह त्यागी, संन्यासी 13 २ गृहस्थी परदेशमै मरे तो ३ दिन "" १ 10 12 सदा इसके पश्चात् जितने मासका गर्भपात हो " अपघात मृत्यु - ४४३ मरण सूत्र -१, वे आगम / Pormula. (४/२/२०) सूत्रकृतांग ज्ञान / III | ३ उतने उतने दिन १ दिन १ दिनसूत्रोपसंयत समाचार । ३ 11 खबर आनेके ५. रजस्वला स्त्रीका स्पर्श करना योग्य नहीं अन. घ० / ५ / ३५ में उद्धृत - रक्ता वेश्या च लिङ्गिनी । जो मासिक धर्मसे युक्त हो, वेश्या तथा आर्थिक आदिके आहारको दायक दोषसे दुष्ट समझना चाहिए। (अन. ध. / ५ / ३४ ) - " त्रि, सा./ १२४...पु-फई...] कपदामा विकुरते जीवा कुमरे जायंते २४ पुष्पवती स्त्रीया संसर्ग कर जो कृपा में दान देता है, वह कुमानुषों में होता है। सा. ध. /४/३१--। स्पृष्ट्वा रजस्वलाशुष्कचर्मास्थिशुनकादिकम् । ती गृहस्थ रजस्वला स्त्री, सूखा चमड़ा, हड्डी. कुत्ता आदि के स्पर्श हो जानेपर भोजन छोड़ दें ।) पीछे शेष दिन ३ माह ६. रजस्वला स्त्रीकी शुद्धिका काल प्रमाण म.पू. /३० /०० आधानं नाम गर्भादौ संस्कारो मन्त्रपूर्वक पत्नी मृतुमत स्नातां पुरस्कृत्यार्ह दिज्यया । ७०| चतुर्थ स्नानके द्वारा शुद्ध हुई रजस्वला पत्नीको आगे कर गर्भाधान के पूर्व अर्हन्तदेव की पूजा के द्वारा मन्त्रपूर्वक जो संस्कार किया जाता है उसे आधान क्रिया कहते हैं । * अन्य सम्बन्धित विषय १. नीचादिका अथवा रजस्वलाका स्पर्श होनेपर साबु जल धारा से शुद्धि करते हैं। - दे. भिक्षा / ३ । सेनसंघ • सूत्रपाहुड़ा. कुकुन्द (ई. १२७-१७१) व शास्त्रज्ञान या सम्यग्ज्ञान विषयक २७ प्राकृत गाथाओंबद्ध ग्रन्थ है । इसपर आ. श्रुतसागर (ई. १४७३-१५३३ ) कृत संस्कृत टीका और पं. जयचन्द छाबड़ा (ई. १८६७ ) कृत भाषा वचनिका उपलब्ध है । सूत्रमणि - रुचक पर्वतके चक नित्योद्योत विद्य कुमारी देवी-दे. लोक /५/१३ । सूत्रसम द्रव्य निक्षेप - निक्षेप // टपर रहनेवाली सूत्र सम्यक्त्व ये सम्यग्दर्शन/१ "दे. सूना मू. आ. / ६२६ कंडणी पोसणी चुल्ली उदकुंभं - ओखीची, चूडि जल रखनेका स्थान, बुहारी दोष कहलाते हैं (अन ध /४/१२५) श्रुतके दृष्टिप्रवाद अंगका दूसरा भेद - दे. श्रुत - सूरसेन - भरत क्षेत्र मध्य आर्य खण्डका एक देश - दे. मनुष्य / ४ । सूर्पार भरतक्षेत्र पश्चिम आर्य खण्डका एक देश । —दे, मनुष्य ४ । सूर्य- १. इस सम्बन्धी विषय ज्योतिष/११. कृष्णका म पुत्र- इतिहास१०/१० १. अपर विदेहस्थ नागगिरि बक्षारका एक कूट व उसका रक्षक देव - दे. लोक /५/४ | सूर्यगिरि — सूर्यपतन- वर्तमान सूरत। (म. पु. / प्र, ४६ पं. पन्नालाल ) । सूर्यपुर- विजया की दक्षिण श्रेणीका नगर - दे. विद्याधर -- - जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश . सूर्यप्रज्ञप्ति - अंग श्रुतका एक भेद-दे, श्रुतज्ञान / III | सूर्यरज--म. पु./सर्ग / श्लोक सुग्रीवका पिता था (१/१) बालीको राज्य दे स्वयं दीक्षित हो गया था ( ६/१६) । पमज्जणी । पाँच सुना | अपरविदेहस्थ एक वक्षार । - दे. लोक / ५ / ३ | सूर्यवंश इतिहास१०/१६ । सूर्यह्रद - देव कुरु के दस द्रहों में से दोका नाम--दे. लोक/७ । सूर्याचरणपर्वतका अपर नाम-दे, सुमेरु । सूर्याभ—- १. लौकान्तिक . १. सौकान्तिक देका एक भेद-दे, लौकान्तिक; २. विजयार्ध की दक्षिण श्रेणीका एक नगर- दे, विद्याधर । सूर्यावर्त पर्वका अपर नाम सुमेरु । For Private & Personal Use Only सृष्टा - दे. कर्म / ३ /१ 1 सृष्टि १. अन्य मत मान्य सृष्टि व प्रलय-दे, वैशेषिक व सांख्य दर्शन दे. २. प्रलय । सेज्जाघर - १. भ. आ. / वि / ४२९/६१३/१३ सेप्जाधरशब्देन त्रयो भण्यन्ते वसति यः करोति । कृतां वा वसति परेण भग्नां पतिर्तक देशां वा संस्करोति । यदि वा न करोति न संस्कारयति केवलं प्रयच्छत्यत्रास्वेति । =जो वसतिकाको बनाता है वह बनायी हुई बसतिकाका संस्कार करनेवाला अथवा गिरी हुई वसतिकाको सुधारनेवाला, किवा उसका एक भाग गिर गया हो उसको सुधारनेवाला वह एक, जो बनवाता नहीं है, और संस्कार भी नहीं करता है परन्तु यहाँ आप निवास करो ऐसा कहता है वह ऐसे तीनोंको सेज्जाघर कहते हैं। २. नाघरके हाथका आहार ग्रहण करनेका निषेध-दे. भिक्षा/२३/२ सेनसंघ - दे. इतिहास /५/२८ www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy