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________________ सेना सोलसा सेना-१. सेनाका लक्षण प. पू./१६/३-८ अष्टाविमे गताः ख्याति प्रकारा गणनाकृताः। चतुर्णा भेदमङ्गानां कीर्यमान विबोध्यताम् ।३। पतिः प्रथमभेदोऽत्र तथा सेना प्रकीर्तिता। सेनामुखं ततो गुलमं वाहिनी पृतना चमूः।४। अष्टमोऽनीकनीसंज्ञस्तत्र भेदो बुधैः स्मृतः। यथा भवन्त्यमी भेदास्तथेदानी वदामि ते एको रथो गजश्चैकस्तथा पञ्च पदातयः। त्रयस्तुरङ्गमाः सैषा पत्तिरित्यभिधीयते। पत्तिस्त्रिगुणिता सेना तिस्रः सेनामुखं च ताः। सेनामुखानि च त्रीणि गुल्ममित्यनुकीय॑ते ।। बाहिनी त्रीणि गुल्मानि पृतना वाहिनीत्रयम् । चमूस्त्रिपृतना ज्ञेया चमूत्रयमनीकिनीम् ।८। -हाथी, घोड़ा, रथ और पयादे ये सेनाके चार अंग कहे गये हैं। इनकी गणना करने के नीचे लिखे आठ भेद प्रसिद्ध हैं ।३। प्रथम भेद पत्ति, दूसरा भेद सेना, तीसरा सेनामुख, चौथा गुल्म, पाँचवाँ वाहिनी, छठा पृतना, सातवाँ चमू और आठवाँ अनीकिनी। अब उक्त चार अंगों में ये जिस प्रकार होते हैं उनका कथन करता हूँ।४-५। जिसमें एक रथ, एक हाथी, पाँच पयादे और तीन घोड़े होते हैं वह पत्ति कहलाता है।६। तीन पत्तिकी सेना होती है, तीन सेनाऔंका एक सेनामुख होता है, तीन सेनामुखों का एक गुरुम कहलाता है। तीन गुग्मोंकी एक वाहिनी होती है, तीन वाहिनियोंकी एक पृतना होती है, तीन पृतनाओंकी एक चमू होती है और तीन चमूकी एक अनीकिनी होती है 1८1 वस अनीकिनीकी एक अक्षौहिणी होती है। कुल अक्षौहिणीका प्रमाण-दे. अक्षौहिणी। *सेनाकी १८ श्रेणियाँ-दे.श्रेणी/१/२ । सेनापति-१.सेनापति कहिए सेनाका नायक । (त्रि. सा./टी./ ६८३):२. चक्रवर्तीके चौदह रत्नोंमेंसे एक-दे. शलाकापुरुष/२ । सेनामुख-सेनाका एक अंग-दे. सेना। सेमर-नरकमें होनेवाला एक वृक्ष विशेष ( छहढाला/१। सेवा-प्र.सा./ता. वृ./२६२/३५४/१२ उपासनं शुद्धात्मभावना सहकारिकारणनिमित्तं सेवा। -शुद्धात्मभावनाकी सहकारीकारण उपासना सेवा है। संघव-भरत क्षेत्रका एक देश । अपर नाम सिन्धु ।-दे. मनुष्य/४। सैतव-भरत क्षेत्रके मध्य आर्य खण्डका एक देश-दे. मनुष्य/४। सैद्धांतिकदेव-नन्दिसंघके देशीय गण नं. २ की गुर्वावलीके अनुसार आप शुभचन्द्र नं. २ के शिष्य थे। समय-वि. १०७२११०३ ई. १०१५-१०४५ (पं.सं./प्रा./प्र./घ, H. L.Jain)-दे. इतिहास/१४। सोमदत्त-इन्होंने जिनदत्त सेठसे आकाशगामिनी विद्याको सिद्ध करनेका उपाय प्राप्त किया। परन्तु अस्थिर चित्तके कारण सिद्ध न कर सके। फिर उसको विद्य च्चर चोरने सिद्ध किया। (बृहद कथा कोश । कथा ४)। सोमदेव-१महातार्किक तथा राजनैतिक-धर्माचार्य । यशोदेव के प्रशिष्य, नेमिदेव के शिष्य और महेन्द्र देव के लघु सधर्मा । कर्णाटक देश में चालुक्य राज के पुत्र वाघराज से रक्षित । कृति-नौति वाक्यामृत, यशस्तिलक चम्पू, अध्यात्म तरंगिनी, स्याद्वोदोपनिषद षण्ण प्रतिप्रकरण, त्रिवर्ग महेन्द्र मालिजम्प, युक्तिचिन्तामणिस्तब योगमार्ग । समय-यशस्तिलक का रचनाकाल शक तदनुसार वि.१०००-१०२५ (ई..६४३-६६८)। (ती./३/७१-७३), (जै./१/४२७) । २. बृहद कथा सरित सागर के रचयिता एक भट्टारक । समयई. १०६१-१०८१ । (जीवन्धर चम्पू/प्र. १८/A.N.Up.)। ३. एक जिन निम्न प्रतिष्ठाचार्य गृहस्थ, कृति-श्रुतमुनि कृत आत्रब त्रिभंगी का गुजराती भाष्य । समय-वि.श. १५-१६ । (जै./१/४६९-४६३)। सोमनाथ-कल्याणकारक' के रचयिता एक कन्नड़ आयुर्वेदिक विद्वान् । समय-ई. १९५० । (ती./४/३११)। सोमप्रभ-म.पु./सर्ग./श्लोक...श्रेयान्स राजाका भाई था । भगवान् ऋषभदेवको सर्व प्रथम आहार दिया (२०/८८)। अन्तमें भगवान के समवशरणमें दीक्षा ग्रहणकर (२४/१७४) मुक्ति प्राप्त की (४३/८६)। सोमयश-बाहुबलीका पुत्र था। इसीसे सोमवंशकी उत्पत्ति हुई थी। (ह. पु./१३/१-२): (प. पु./५१४)।-दे. इतिहास/१०/२ । सोमवंश-दे.इतिहास/१०/१७। सोमशर्मा-१. जातिका ब्राह्मण था। जैन मुनिसे प्रभावित होकर दीक्षा ग्रहण कर ली। परन्तु वर्ण का ठीक उच्चारण न होनेसे अन्य किसी आचार्य के पास जाकर चार आराधनाओंका आराधन कर स्वर्गमें देव हुआ। (बृ.क.को कथा नं. २) २. पुष्पा भजलका पुत्र था। मित्र मुनि बारिषेणको आहार दानके पीछे उनको संघमें पहुँचाने गया। वहाँ अनिच्छक वृत्तिसे दीक्षा धारण कर ली। बहुत समय पश्चात् बारिषेण मुनिने इनको पदविचलित जान कर अपनी शुगारित १०० सौ रानियोंको दिखाकर इसका स्थितिकरण किया। (बृ.क. को./कथा १०)। ३. विष्णुशर्मा द्वारा व्यापारार्थ प्रदत्त धनको डाकुओं द्वारा लूट लिया जानेपर दीक्षा ग्रहण कर ली। विष्णुशर्माके धनके लिए जिद करनेपर तपके प्रभावसे उसका धन चुका दिया। तब विष्णुदत्त भी दीक्षित हो गया। (बृ. क.को/कथा १६)। सोमश्रेणी-राजा भोजके समय मालवा केआश्रमनगरमें सोम श्रेणी के लिए नेमिचन्द्र सैद्धान्तिक देवने द्रव्यसंग्रह रचा। समय_ वि. श. ११-१२ (ई.११ का उत्तरार्ध)-दे. नेमिचन्द्र । सोमसेन-सेनगणपुष्करगच्छ गुणभद्र भट्टारक के शिष्य, अभय पंडित के गुरु । कृति-राम पुराण, त्रिवर्णाचार (धर्म रसिक.), शब्द रश्न प्रदीप (संस्कृत कोष)। समय-ग्रन्थों का रचना काल वि. १६६१६६७ । (ती./३/४४३); (दे. इतिहास/१६) । सोमिल-भगवान् वीरके तीर्थ में अन्तकृत केवली हुए थे। दे. अन्तकृत। सोमेश्वर-धारवाडके राजा थे। इन्होंने धर्मगुरु गोवर्धन देवको सम्यक्त्व रत्नाकर चैत्यालय के लिए कुछ दान दिया था। समय ई. १०४५ (सि.वि./७५ शिलालेख) सोरठ-भरत क्षेत्रका एक देश । अपर नाम सौराष्ट्र-दे. मनुष्य/४। सोलसा-भगवान धर्मनाथको शासक यक्षिणी-दे.तीर्थ कर/५/३ । सोपक्रमकाल-दे. काल/१/६। साम-भद्रशाल वनस्थ पद्मोत्तर दिग्गजेन्द्रका स्वामी देव-दे, लोक/३/६.४ । सोमकायिक-१. लोकपाल देवौंका एक देव-दे. लोकपालः २. आकाशोपपन्न देव-दे. देव/11/१/३। सोमकीति-काष्ठासंघकी नन्दितट शाखा में भीससेनके शिष्य थे। कृति-प्रद्युम्न चरित्र, चारुदत्त चरित्र, यशोधर परित्र, सप्तव्यसन कथा। समय-वि. १५१८-१५४० (ई. १४६१-१४८३) । (ती/३/३४४)। जैनेन्द्र सिद्धान्तकोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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