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________________ सम्यग्दर्शन ३४७ सूचीपत्र गतियों व गुणस्थानों आदिमें तीनोंके स्वामित्व व शंकाएँ। -दे. वह वह नाम। तीनोंके स्वामित्वमें मार्गणास्थान व गुणस्थान आदि रूप २० प्ररूपणाएँ। -दे. सद। तीनों सम्बन्धी सत् , संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव व अल्पबहुत्वरूप आठ प्ररूपणाएँ। -दे, वह वह नाम । तीनोंके स्वामियोंको कोका बन्ध, उदय, सत्त्व । -दे..बह वह नाम । तीनों सम्यक्त्वोंमें यथासंभव मरण संबंधी। -दे. मरण/३। तीनों सम्यक्त्वोंमें यथासंभव जन्म संबंधी। -दे. जन्म/३। तीनों सम्यक्त्वोंके पश्चात् भव धारणकी सीमा । -दे. सम्य./I/४ | उपशम व वेदककी पुनः पुनः प्राप्तिकी सीमा। -दे. सम्य./I/१/७। प्रथमोपशम सम्यक्त्व निर्देश उपशम सामान्यका लक्षण। उपशम सम्यक्त्वकी अत्यन्त निर्मलता। -दे. सम्यग्दर्शन/IV/२/१॥ उपशम सम्यक्त्वका स्वामित्व। उपशम सम्यक्त्वके भेद व प्रथमोपशमका लक्षण । प्रथमोपशमका प्रतिष्ठापक। १. गति व जीव समासों की अपेक्षा। २. गुणस्थानोंकी अपेक्षा। ३. उपयोग योग व विशुद्धि आदिकी अपेक्षा । ४. कर्मों के स्थितिबन्ध व सत्त्वकी अपेक्षा। प्रथमोपशमका निष्ठापका -दे. सम्यग्दर्शन/IV/२/४/३। ५ | जन्मके पश्चात् सम्यक्त्व प्राप्ति योग्य सर्व लघु काल । अनादि व सादि मिथ्यादृष्टिमें सम्यक्त्वप्राप्ति सम्बन्धी कुछ विशेषता। प्रथमोपशमसे च्युति सम्बन्धी नियम । | गिरकर किस गुणस्थानमें जावे। * | प्रथमोपशमसे सासादनकी प्राप्ति सम्बन्धी। -दे, सासादन । प्रथमोपशममें अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजनाका कथंचित् विधि-निषेध। -दे. उपशम/२ । पंच लब्धिपूर्वक होता है। दर्शनमोहकी उपशम विधि। -दे, उपशम/२। गति व गुणस्थानोंका स्वामित्व, सत् , संख्या आदि प्ररूपणाएँ, कर्मोके बन्ध आदि, मरण व जन्म तथा संसार स्थिति व पुनः पुनः प्राप्तिकी सीमा सम्बन्धी नियम । -दे. सम्यग्दर्शन/IV|१| * प्रथमोपशमका मनःपर्यय आदिके साथ विरोध । -दे. परिहार विशुद्धि। | प्रारम्भ करनेके पश्चात् अवश्य प्राप्त करता है। द्वितीयोपशम सम्यक्त्व निर्देश द्वितीयोपशमका लक्षण। द्वितीयोपशमका स्वामित्व । * द्वितीयोपशम आरोहण क्रम। -दे. उपशम/३ । द्वितीयोपशमका अवरोहण क्रम । द्वितीयोपशमसे सासादनकी प्राप्ति संबंधी। -दे. सासादन । श्रेणीसे नीचे आकर भी कुछ देर द्वितीयोपशमके साथ ही रहता है। गति व गुणस्थानोंका स्वामित्व, सत् , संख्या आदि प्ररूपणाएँ, कर्मोके बन्ध आदि, भरण व जन्म, संसारस्थिति व पुनः पुनः प्राप्तिकी सीमा सम्बन्धी नियम । -दे. सम्यग्दर्शन/IV/RI वेदक सम्यक्त्व निर्देश बेदक सम्यक्त्व सामान्यका लक्षण । १. क्षयोपशमको अपेक्षा। २. वेदककी अपेक्षा। x दोनों लक्षणोंका समन्वय । -दे.क्षयोपशम/२। कृतकृत्यवेदकका लक्षण। वेदक सम्यक्त्वके बाह्य चिह्न । वेदक सम्यक्त्वको मलिनताका निर्देश । वेदक सम्यक्त्वका स्वामित्व । १. गति व पर्याप्तिकी अपेक्षा । २. गुणस्थानोंकी अपेक्षा। ३. उपशम सम्यग्दृष्टि व सादि मिथ्या दृष्टिकी अपेक्षा। अनादि मिथ्यादृष्टिको सीधा प्राप्त नहीं होता। वेदक सम्यक्त्व आरोहण विधि। -दे.क्षयोपशम/३। सम्यक्त्वसे च्युत होनेवाले बहुत कम हैं। च्युत होनेके पश्चात् अन्तर्मुहूर्तसे पहले सम्यक्त्व पुनः प्राप्त नहीं होता। ऊपरके गुणस्थानों में इसका अभाव क्यों ? कृतकृत्यवेदक सम्बन्धी कुछ नियम | गतियों व गुणस्थानोंमें इसका स्वामित्व, सत् , संख्या आदि प्ररूपणाएँ, कर्मोके बन्ध आदि, मरण व जन्म, तथा संसारस्थिति व पुनः पुनः प्राप्तिकी सीमा सम्बन्धी नियम । -दे. सम्यग्दर्शन/IV/RI * सायिक सम्यक्त्व निर्देश क्षायिक सम्यग्दर्शनका लक्षण । *क्षायिक सम्यक्त्वकी निर्मलता। -दे. सम्यग्दर्शन/IV/AN जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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