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सम्यग्दर्शन
सूचीपत्र
| निश्चय व व्यवहार सम्यग्दर्शन ही वीतराग व सराग
सम्यग्दर्शन है। -दे, सम्यग्दर्शन/118/२। लक्षणमें तत्त्व व अर्थ दोनों शब्द क्यों। व्यवहार लक्षणोंका समन्वय । निश्चय लक्षणोंका समन्वय । आत्मानुभूतिको सम्यग्दर्शन कहनेका कारण ।
-दे. सम्यग्दर्शन/I/४। | व्यवहार व निश्चय लक्षणोंका समन्वय ।
| निश्चय व्यवहार सम्यग्दर्शनोंकी कथंचित् मुख्यता गौणता
स्वभाव भान बिना सम्यक्त्व नहीं। | निश्चय नयके आश्रयसे ही सम्यक्त्व होता है।
-दे. नय/V/३/३॥ आत्माका जानना ही सर्व जिनशासनका जानना है।
-दे. श्रुतकेवलो/२/६ । आत्मदर्शन रहित श्रद्धान सम्यग्दर्शन नहीं।
-दे. अनुभव/३। आत्मानुभवीको ही आठों अंग होते हैं। आठों अंगोंमें निश्चय अंग ही प्रधान है। श्रद्धान आदि सब आत्माके परिणाम हैं। निश्चय सम्यक्त्वकी महिमा । श्रद्धानमात्र सम्यग्दर्शन नहीं है। | सम्यग्दृष्टिको अन्धश्रद्धानका विधि-निषेध ।
-दे. श्रद्धान/३ । | मिथ्यादृष्टिकी, श्रद्धा आदि यथार्थ नहीं।
इन दोनों सम्यक्त्वों सम्बन्धी २५ दोषोंके लक्षणोंमें विशेषता। दोनोंमें कथंचित् एकत्व। इन दोनोंमें तात्त्विक भेद मानना भूल है। सराग सम्यग्दृष्टि भी कथंचित् वीतराग है । सराग व वीतराग कहनेका कारण प्रयोजन । | सम्यग्दर्शनकी उत्पत्तिके निमित्त सम्यक्त्वके अन्तरंग व बाह्म निमित्तोंका निर्देश निसर्ग व अधिगम आदि। दर्शनमोहके उपशम आदि । लब्धि आदि। द्रव्य-क्षेत्र-काल भाव रूप निमित्त । जाति स्मरण आदि। उपर्युक्त निमित्तोंमें अन्तरंग व बाह्य विभाग । कारणोंमें कथंचित् मुख्यता-गौणता व भेदअभेद कारणोंकी कथंचित् मुख्यता। कारणोंकी कथंचित् गौणता। कारोंका परस्परमें अन्तर्भाव । कारणोंमें परस्पर अन्तर। कारणोंका स्वामित्व व शंकाएँ चारों गतियोंमें यथासम्भव कारण । जिनबिम्बदर्शन सम्यक्त्वका कारण कैसे ? ऋषियों व तीर्थक्षेत्रों के दर्शनोंका निर्देश क्यों नहीं। नरकमें जातिस्मरण व वेदना सम्बन्धी। नरकोंमें धर्मश्रवण सम्बन्धी। मनुष्योंमें जिनमहिमा दर्शनके अभाव सम्बन्धी। देवोंमें जिनबिंब दर्शन क्यों नहीं। आनत आदिमें देवद्धिदर्शन क्यों नहीं। नववेयकोंमें जिनमहिमा व देवद्धिदर्शन क्यों नहीं ? नवग्रेवेयकोंमें धर्मश्रवण क्यों नहीं।
| निश्चय व्यवहार सम्यक्त्व समन्वय | नवतत्वोंकी श्रद्धाका अर्थ शुद्धात्मतत्त्वकी श्रद्धा ही है। व्यवहार व निश्चय सम्यक्त्वमें केवल भाषाका भेद
-दे. पद्धतिा । | व्यवहार सम्यक्त्व निश्चयका साधक है। | तत्त्रार्थश्रद्धानको सम्यक्त्व कहनेका कारण व
प्रयोजन । | सम्यक्त्वके अंगोंको सम्यक्त्व कहनेका कारण ।
सराग वीतराग सम्यक्त्व निर्देश | सराग-वीतरागरूप मेद व लक्षण । | वीतराग व सराग सम्यक्त्वकी स्व-परगम्यता।
-दे. सम्यग-/1/३। व्यवहार व निश्चय सम्यक्त्वके साथ इन दोनोंकी एकार्थता। | सराग व वीतराग सम्यक्त्वका स्वामित्व ।
उपशमादि सम्यग्दर्शन उपशमादि सामान्य निर्देश सम्यक्त्व मार्गणाके उपशमादि भेद । मिथ्यात्वादिका सम्यक्त्व मार्गणामें ग्रहण क्यों।
-दे. मार्गणा ७॥ तीनों सम्यक्त्वोंमें कथंचित् एकत्व । तीनों में कथंचित् अधिगमन व निसर्गजपना।
-दे, सम्य/III/९/१।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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