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प्रकृति बंध
१. भेद व लक्षण
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* प्रत्येक प्रकृतिकी वर्गणा भिन्न है। -दे० वर्गणा/२। * | कर्म प्रकृतियोंके साकेतिक नाम। --दे० उदय/६/१ ।
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| प्रकृति बंध विषयक शंका समाधान
वध्यमान व उपशान्त कर्ममें 'प्रकृति' व्यपदेश कैसे। | प्रकृतियोंकी सख्या सम्बन्धी शका । | एक ही कम अनेक प्रकृति रूप कैसे हो जाता है। एक ही पुद्गल कर्ममें अनेक कार्य करनेकी शक्ति कैसे। आठों प्रकृतियों के निर्देशका यही बम क्यों।
ध्रुवबन्धी व निरन्तर बन्धी प्रकृतियोंमें अन्तर । ७ । प्रकृति व अनुभागमें अन्तर ।
सामान्य प्रकृति बन्धस्थान ओध प्ररूपणा। विशेष प्रकृति बन्धस्थान ओघ प्ररूपणा। आयु प्रकृति बन्ध सम्बन्धी प्ररूपणा। -दे० आयु । मोहनीय बन्ध स्थान ओघ प्ररूपणा। नामकर्म प्ररूपणा सम्बन्धी सकेत । नामकर्म बन्धके योग्य आठ स्थानोंका विवरण । नामकर्म बन्ध स्थान ओघ प्ररूपणा । जीव समासोंमें नामकर्म बन्धस्थान प्ररूपणा। नामकर्म बन्ध स्थान आदेश प्ररूपणा । बन्ध, उदय व सत्त्वकी संयोगी प्ररूपणाएँ ।
-दे० उदय/ | मूल उत्तर प्रकृतियोंमें जघन्योत्कृष्ट बन्ध तथा अन्य
सम्बन्धी प्ररूपणाओंकी सूची। मूल उत्तर प्रकृति बन्ध व बन्धको विषयक सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर व अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ।
-दे० बह-वह नाम।
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५ | प्रकृति बन्ध सम्बन्धी कुछ नियम
युगपत् बन्ध योग्य सम्बन्धी। सान्तर निरन्तर बन्धी प्रकृतियों सम्बन्धी। ध्रुव अध्रुव बन्धी प्रकृतियों सम्बन्धी । विशेष प्रकृतियोंके बन्ध सम्बन्धी कुछ नियम । सान्तर निरन्तर बन्धी प्रकृतियों सम्बन्धी नियम । मोह प्रकृति बन्ध सम्बन्धी कुछ नियम । १. क्रोधादि चतुष्ककी बन्ध व्युच्छित्ति सम्बन्धी
दृष्टिभेद ।
२. हास्यादिके बन्ध सम्बन्धी शंका-समाधान। ७ [नामकर्मकी प्रकृतियोंके बन्ध सम्बन्धी कुछ नियम ।
तीर्थकर प्रकृति बन्ध सम्बन्धी नियम । - दे० तीर्थंकर । आयु प्रकृतिबन्ध सम्बन्धी प्ररूपणा नियमादि ।
-दे० आयु। | प्रकृतियोंमें सर्वघाती देशघाती सम्बन्धी विचार ।
-दे० अनुभाग।
१. भेद व लक्षण
१. प्रकृतिका बक्षण-१. स्वभावके अर्थमें 4. सं./प्रा./४/५१४-११५ पयडी एत्थ सहावो....५१४। एकम्मि महुर
पयडी।...५१५॥ प्रकृति नाम स्वभावका है।...१५१४। जैसे-किसी एक वस्तुमें मधुरताका होना उसकी प्रकृति है ॥५१॥ (पं. सं/सं./ ३६६-३६७); (ध. १०/४,२,४,२१३/५१०/८)। स. सि./८/३/३७८/९ प्रकृति, स्वभावः। निम्बस्य का प्रकृति । तिक्तता। गुडस्य का प्रकृति'। मधुरता। तथा ज्ञानावरणस्य का प्रकृतिः । अर्थानवगम।...इत्यादि । = प्रकृतिका अर्थ स्वभाव है। जिस प्रकार नीमकी क्या प्रकृति है। कड आपन। गुडकी क्या प्रकृति है। मीठापन । उसी प्रकार ज्ञानावरण कर्मकी क्या प्रकृति है । अर्थका ज्ञान न होना । • इत्यादि। (रा. वा./८/३/४/५६७/१); (पं.ध/
प्रकृति बन्धके नियम सम्बन्धी शंकाएँ प्रकृति बन्धको व्युच्छित्तिका निश्चित कम क्यों। तिर्यग द्विकके निरन्तर बन्ध सम्बन्धी। | पंचेन्द्रिय जाति औदारिक शरीरादिके निरन्तर बन्ध
सम्बन्धी। तिर्यग्गतिके साथ साताके बन्ध सम्बन्धी। हास्यादि चारों उत्कृष्ट संक्लेशमें क्यों न बर्थे । विकलेन्द्रियोंमें हुण्डक संस्थानके बन्ध सम्बन्धी।
-दे० उदय/५
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ध, १२/४,२,१०,२/३०३/२ प्रक्रियते अज्ञानादिक फलमनया आत्मन. इति प्रकृतिशब्दव्युत्पत्ते ।. जो कम्मरखं धो जीवस्स वट्टमाणकाले फलं देह जो च देइस्सदि, एदेसिं दोण्णं पि कम्मक्खंधाण पडित सिद्ध।-१. जिसके द्वारा आत्माको अज्ञानादि रूप फल किया जाता है वह प्रकृति है, यह प्रकृति शब्दकी व्युत्पत्ति है । .. २.जो कर्म स्कन्ध वर्तमानकाल में फल देता है और जो भविष्यत्में फल देगा. इन दोनों ही कर्म स्कन्धोकी प्रकृति संज्ञा सिद्ध है। २. एकार्थवाची नाम गो. क./म./२/३ पयडी सोलसहावो. .....२॥ == प्रकृति, शील और
स्वभाव ये सब एकार्थ है। पं.ध./पू/४८ शक्तिलक्ष्म विशेषो धर्मो रूपं गुण, स्वभावश्च । प्रकृतिः
शीलं चाकृतिरेकार्थवाचका अमी शब्दा. १४८ -शक्ति, लक्षण, विशेष, धर्म, रूप, गुण तथा स्वभाव, प्रकृति, शील और आकृति ये सब एकार्थवाची है।
२. प्रकृति बन्धका लक्षण नि. सा./ता. वृ./४० ज्ञानाबरणाद्यष्टविधकर्मणां तत्तद्योग्यपुद्गलद्रव्यस्वीकार' प्रकृतिबन्धः। =ज्ञानावरणादि अष्टविध कर्मोके उस कर्मके योग्य ऐसा जो पुदगल द्रव्यका स्व-आकार वह प्रकृति बन्ध है।
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७ प्रकृति बन्ध विषयक प्ररूपणाएँ
सारणीमें प्रयुक्त संकेतोंका परिचय । २. बन्ध व्युच्छित्ति ओघ प्ररूपणा ।
सातिशय मिथ्यादृष्टिमें बन्ध योग्य प्रकृतियाँ। सातिशय मिथ्यादृष्टिमें प्रकृतियोंका अनुबन्ध । बन्ध व्युच्छित्ति आदेश प्ररूपणा।
जैनेन्द सिद्धान्त कोश
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