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________________ पर्याय 1 विट्ठा दुअआहसंघ से गला भगिया महावगुणपणा सव्वे | २४| = मति, श्रुत, अवधि व मन पर्यय ये चार ज्ञान तथा तीन अज्ञान जो कहे गये है ये सब जीव द्रव्यकी विभावगुण पर्याय है । (२४) द्वि अणुकादि स्कन्धोमें जो रूपादिक कहे गये है, अथवा देखे गये हैं वे सब पुद्गल द्रव्यकी विभाव गुण पर्याय है । (पंका / या वृ/२/१४/१२), ( का / न./९६/३६/४) (१.टी./२/५०) । प्र सा / त प्र / १३ विभाषपर्यायो नाम रूपादीनां ज्ञानादीनां वा स्वपरप्रत्ययवर्तमानपूर्वोत्तरावस्यावतीर्ण] तारतम्योपदशितस्य भावविशेषानेकत्वापत्ति | = रूपादिके वा ज्ञानादिके स्व परके कारण प्रवर्तमान पूर्वोत्तर अवस्थामे होनेवाले तारतम्यके कारण देखनेमे आनेवाले स्वभावविशेष रूप अनेक विभावगुणपर्याय है। - पं. का/ता.वृ / १६ / ३६ / १२ अशुद्धार्थ पर्याया जीवस्य षट्स्थानगतकषायानिवृद्धि विशुद्धिस क्लेशरूपशुभाशुभलेश्यास्थानेषु ज्ञातव्या । गलस्य विभावार्थपर्याया इत्रकादि चिरकाल स्थायिनो ज्ञातव्याः । =जीव द्रव्यकी विभाव अर्थ पर्याय, कषाय, तथा विशुद्धि सस्ते रूप शुभ व अशुभलेश्यास्थानों में पद स्थान गत हानि वृद्धि रूप जाननी चाहिए। द्वि-अणुक आदि स्कन्धोमें ही रहने वाली तथा चिर काल स्थायी रूप, रसादि रूप पुदगल द्रव्य की विभाव अर्थ पर्याय जाननी चाहिए । १३. स्वभाव व विभाव गुण व्यञ्जन पर्याय स्वभावगुणव्यञ्जन आप / ३ विभावगुणव्यञ्जनपर्याया मत्यादय । पर्याया अनन्तचतुष्टय स्वरूपा जीवस्य । रसरसान्तरगन्धगन्धान्तरादिविभावनपर्याया वर्णगन्धरसेकेका विरुद्धस्पर्शद्वयं स्वभाव गुणव्यञ्जनपर्याया ।मति आदि ज्ञान जीव द्रव्यकी विभाव गुण व्यजन पर्याय है. तथा केवलज्ञानादि अनंत चतुष्टय स्वरूप जीवकी स्वभाव गुण व्यजन पर्याय है। रससे रसान्तर तथा गध से गधान्तर पृद्गल द्रव्यकी विभाव गुण व्यंजन पर्याय है। तथा परमाणुसे रहने वाले एक वर्ण, एक गध, एक रस तथा अविरुद्ध दो स्पर्श पुद्गल द्रव्यकी स्वभाव गुण व्यंजनपर्याय है । १४. स्वभाव व विभाव पर्यायोंका स्वामित्व कावृ/२०/६/१४ परिणामिनी जीवपुद्गली स्वभावविभावपरिणामाभ्या शेपचारि द्रव्याणि विभावव्यञ्जनपर्यायाभावाद मुख्यवृत्त्या अपरिणामीनि । पका सा वृ/९६/६४/१० एते समानजातीया असमानजातीयाश्च अनेन्द्रध्यात्मिकरूपा पर्याया जीवगलयोरेव भवन्ति अखा एव भवन्ति । कस्मादिति चेत् । अनेकद्रव्याणां परस्परसश्लेषरूपेण सबन्धात् । धर्माद्यन्यद्रव्याणा परस्परमश्लेषसबन्धेन पर्यायो न घटते परस्पर सबन्धेनाशुद्धपर्यायोऽपि न घटते । १ स्वभाव तथा विभाव पर्यायो द्वारा जोब व पुद्गल द्रव्य परिणामी है । शेष चार द्रव्य निभाव व्यजन पर्यायके अभावको मुख्यतासे अपरिणामी है | २०७ २. ये समान जातीय और असमान जातीय अनेक द्रव्यात्मक एक रूप द्रव्य पर्याय जीव व पुद्गलमे ही होती है, तथा अशुद्ध ही होती है । क्योकि ये अनेक द्रव्योके परस्पर सश्लेश रूप सम्बन्धसे होती है। धर्मादिक द्रव्योकी परस्पर संश्लेषरूप सम्बन्धसे पर्याय घटित नहीं होती, इसलिए परस्पर सम्बन्धसे अशुद्ध पर्याय भी उनमे घटित नहीं होती। Jain Education International ५० पल्लव विधान व्रत प.प./टी./१/२० धर्माधर्माकाशकालाना विभाव पर्यायास्तुपचारेण घटाकाशमित्यादि । धर्म आकाश तथा काम द्रव्योके विभाग गुणपर्याय नही है । आकाशके घटाकाश, महाकाश इत्यादिकी जो कहावत है, वह उपचारमात्र है । पर्यायज्ञान - दे० ० श्रुतज्ञान / II । पर्यायनय - दे० नय / I/५/४१ पर्यायवत्त्व-रा. वा. / २ / ७ /१३/११२ /२२ पर्यायवत्त्वमपि साधारण सर्वद्रव्याणां प्रतिनियतपर्यायोत्पते । कर्मोदयाद्यपेक्षाभावादपि पारिणामिक प्रतिनियत पयोकी उत्पति होनेसे पर्यायत्त्व भी सभी द्रव्योमे पाया जाता है । तथा कर्मोदय आदिकी अपेक्षाका अभाव होनेसे यह भी पारिणामिक है । पर्याय समासज्ञान - दे० श्रुतज्ञान / II पर्यायार्थिक नय -१ ० नय / IV/१४ २ व्यार्थिक व पर्या यार्थिक कि नय नहीं है ० नय/1/९/६२. निक्षेपी का पर्यायार्थिक नयमे अन्तर्भाव-- दे० निक्षेप / २ । पर्युदासाभाव० पर्व प्रोषधका (१ स सि./०/२९/१६२/२ शब्द पर्वमाथी अर्थ पर्व है । २. कालका एक प्रमाण विशेष- दे० गणित / J / १ | पर्वत-लोकमे स्थित पर्यो को दे० लोक ३/२/८२. प. ५/११/ श्लोक हीरकदम्बक गुरुका पुत्र था 'अर्जेर्यष्टव्यम्' शब्दका राजा के द्वारा विपरीत समर्थन कराने पर लोगोंके द्वारा धिक्कारा गया। उससे दुखी होकर कुतर्क करने लगा (७५) । अन्त में मृत्यु के पश्चात् राक्षस बनकर इस पृथ्वीपर हिसायज्ञकी उत्पत्ति की (१०३ ) / ( म.पु / 67/942-8kk) 1 पल "कालका प्रमाण विशेष- दे० गणित // १/४२ तोलका एक प्रमाण विशेष - दे० गणित / 1 /१/२ । पलायमरण - दे० ० मरण /१ पलाशगिरिलोक / ७ । पलिकुंचन - सामान्य अतिचारका एक भेद-दे० अतिचार/१ । पल्य-१ रा. मा./३/२०/०/२००/११ पश्यामि कुशला इत्यर्थः । =पत्यका अर्थ गड्ढा । २ पत्य प्रमाण के भेद व लक्षण तथा उनकी प्रयोग विधि - दे० गणित / I / १ / ५२. A measure of Time. पल्लव दक्षिणमे काचीके समीपवर्ती प्रदेश । यहाँ इतिहास प्रसिद्ध पल्लव वशी राजाओका राज्य था । ( म पु / प्र ५०/५ पन्नालाल ) । पल्लव विधान व्रत की विधि दो प्रकारसे कही गयी - इस व्रतकी है-लघु व बृहद लघु विधि - क्रमश १.२. ३,४,५,४,३.२, १ इस प्रकार २५ उपवास एकान्तरा क्रमसे करें । नमस्कार मन्त्रका त्रिकाल जाप करे । ( व्रत विधान संग्रह / पृ ५० ) वर्द्धमान पुराण ) । -- 1 जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only "भद्रशालवनमें स्थित एक दिग्गजेन्द्र पर्वत - दे० ० ०० ००० ०००० www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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