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परीक्षा
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परोक्ष
८ परिहार विगुद्धि म-ममे कमाका अन्य, उदय व सत्व।
---दे०वह वह नाम । ९ ममी मार्गणाआमे आयके अनुसार व्यय होनेका नियम ।
- दे. मार्गशा।
परीक्ष-प्रमाग भेदामेसे परोक्ष भी एक है। इन्द्रियो व विचारणा द्वारा जो कुछ भी जाना जाता है वह सत्र परोक्ष प्रमाण है । छमस्थोको पदार्थ विज्ञानके लिए एकमात्र यही साधन है। स्मृति, तर्क, अनुमान आदि अनेको इसके रूप है। यद्यपि अविशद व इन्द्रियो आदिसे होनेके कारण इसे परोक्ष कहा गया है, परन्तु यह अप्रमाण नहीं है, क्योकि इसके द्वारा पदार्थ का निश्चय उतना ही दृढ होता है, जितना कि प्रत्यक्षके द्वारा ।
परीक्षा --
ग्या पू/टो /१:१/२/८/८ नतिम्य पालथणमुपाते न वेति प्रमाणैरव मारण परीक्षा । म उहिष्ट पदार्थ के जो लश्या कहे गये, वे टीक है या नहीं, इसका प्रमाण द्वारा निश्चग र धारण करनेको
परीक्षा कहते है। तत्त्वार्याधिगम भाष्य/२/१५ दहा ऊहा तक परीक्षा विचारणा जिज्ञासा
इत्यनन्तरम् । -ईहा, ऊहा, तक, परीक्षा, विचारणा और जिज्ञासा ये एकार्थवाची शब्द है। (और भी दे० विचय)। न्या. टी/१/६/८ विरुदनानायुक्तिप्राबल्दोबल्यावधारणाय प्रवर्लमानो विचार परीक्षा। सा खल्वेत्र चेदेव स्यादेव स्थादित्येव प्रवर्तते । - परस्पर विरुद्ध अनेक युक्तियोमेसे कौनसी युक्ति प्रबल है और कौनसी दुर्बल है इस बातके निश्चय करने के लिए 'यदि ऐसा माना जायेगा ता ऐमा होगा, और उसके विरुद्ध ऐसा माना जायेगा तो ऐसा होगा' इस प्रकार जो विचार किया जाता है उसको परीक्षा कहते है।
* अन्य सम्बन्धित विषय १ तचज्ञान परीक्षाको प्रधानता २ परोक्षामें हेतुका स्तन ३ श्रद्धानमे परीक्षाकी मुख्यता ४ देव, शास्त्र, गुरु आदिकी परीक्षा ५ साबुकी परीक्षाका विधि निषेध व उपाय ६ परीक्षामें अनुभवकी प्रधानता
-दे० न्याय/२।
-दे० हेतु। -दे० श्रद्धान/२। -दे० वह वह नाम ।
-दे० विनय/५ ॥ -दे० अनुभव/३।
१. पशेक्ष प्रमाणका लक्षण १ इन्द्रियसापेक्षशान प्र. सा /मू /५८ जं परदो विण्णाणं त 'तु परोक्ख त्ति भणिदमठेसु ।५८
= परके द्वारा होनेवाला जो पदार्थ सम्बन्धी विज्ञान है, वह परोक्ष कहा गया है । (प्र सा./म् /४०), (स. सि./१/११/१०१/५); (रा. वा./
१/११/७/५२/३०), (प्र.सा/ता. बृ./५८/७६/१२) रा. वा /१/११/६/१२/२४ उपात्तानुपात्तपरप्राधान्यादवगम' परोक्षम् ।। उपात्तानी न्द्रियाणि मनश्च, अनुपातं प्रकाशोपदेशादि पर तत्प्राधान्यादवगमः , परोक्षम्। तथा मतिश्रुतावरणक्षयोपशमे सति ज्ञस्वभावस्यात्मन स्वमेवार्थानुपलब्धुमसमर्थस्य पूर्वोक्तप्रत्ययप्रधान ज्ञान परायत्तत्वात्तदुभय परोक्षमित्युच्ये। उपात्त-इन्द्रियाँ और मन तथा अनुपात्त-प्रकाश उपदेशादि 'पर' है। परकी प्रधानतासे होनेवाला ज्ञान परोक्ष है। (स सा /आ /१३/क ८), (त. सा /१/१६) (ध.६/१,१,४५/१४३/३)(ध.१३/५,५,२१/२१२/१), (प्र सा/त प्र./ ५५), (गो जी/जी.प्र/३६६/७६५/८) तथा उसी प्रकार मतिज्ञानावरण और श्रुतज्ञानावरणका क्षयोपशम होनेपर ज्ञस्वभाव परन्तु स्वय पदार्थों को ग्रहण करनेके लिए असमर्थ हुए आत्माके पूर्वोक्त प्रत्ययोकी प्रधानतासे उत्पन्न होनेवाला ज्ञान पराधीन होनेसे
परोक्ष है । (म सि /१/११/१०१/५), (ध, १/४,१,४५/१४४/१)। प्र सा/त प्र/५८ यत्त खलु परद्रव्यभूतादन्त करणादिन्द्रियात्परोप
देशादुपलब्धे सस्कारादालोकादेर्वा निमित्ततामुपगमारस्व विषयमुपगतस्यास्त्र परिच्छेदन तत् परत प्रादुर्भवत्परोक्षमित्यालक्षाते । --निमित्तता प्राप्त जो परद्रगभूत अन्त करण (मन ) इन्द्रिय, पर पदेश, उपलब्ध (जाननेको शक्ति) सस्कार या प्रकाशादिक है, उन द्वारा होने वाला स्व विषयभून पदार्थ का ज्ञान पर के द्वारा प्रगट होता है इसलिए परोक्षके रूपमे जाना जाता है। (द स /टी1M २७/१२)
२. अविशदशान प मु/-/१ (विशद प्रत्यन प मु /२/१) परोक्षमितरत् ।१६ -विद अति रपट ज्ञान का प्रत्यक्ष कहते है। इससे भिन्न अर्थात् अविशद
को पर प्रमाण वदते है। न्या दी/३/१/५१/१ अविशदप्रतिभास परोक्षम् । यस्प ज्ञानस्य प्रतिभासो विशो न भनति तपरोक्षमित्यर्थ । अवैशद्यमस्पष्ट
। = अविशद प्रतिभासको परोक्ष कहते है। जिस ज्ञानका प्रतिमास विशद नही है वह परोक्षप्रमाण है। अविशदता अस्पष्टताको करते है। (म भ त /४७/१०)
परीक्षामूख-आ० माणिक्यनन्दि (ई०१००३) द्वारा सस्कृत भाषामे रचित सूत्रनिबद्ध न्यायविषयक ग्रन्थ है । इसमे छह अधिकार है, और कुल २०७ सूत्र हैं। इसपर दो टीकाएँ उपलब्ध है- प्रभाचन्द्र म०४ (ई०६५०- १०२०) कृत प्रमेयकमलमानण्ड नामकी सरक्त टीका और प जयचन्द छाबडा (ई० १८०६)'कृत भाषा टोका।
(ती./३/११) परीक्षित-१.अभिमन्यु का पुत्र था। कृष्णजोके द्वारा इस को राज्य मिना था। (पा पु./२२/३३) । २, कुरुवंशी राजा था। पाचाल देश (कुरुक्षेत्र ) मे राज्य करता था। (राजा जनमेजयका पिता था) समय-ई०पू० १४७०-१४५० (भारतीय इतिहास /२८६) विशेष
दे० इतिहास/३/३। परोत-Trams (ज प /प्र. १०७) (दे० 'गणित'/I/११) । परोतानंत-दे० अनन्त ।
परीतासंख्यात-दे० असंख्यात ।
परोलखा-भ आ/वि/६/११६ पडिलेहा आराधनाया व्याक्षेपेण बिना मिशिभ पति न वा राज्याय देशरय ग्रामनगरादेस्तत्र प्रधानस्य वा शोभनं वा नेति एव निरूपणम् । पडिलेहा-आराधनामे यदि विन्न उपस्थित हो तो आराधनाकी सिद्धि नहीं होती। अत उसको निर्विघ्नताके लिए राज्य, देश, गाँव, नगरका शुभ होगा या अशुभ होगा उसका पालोकन करना।
२. परोक्ष ज्ञानके भेद-१. मति श्रुतकी अपेक्षा त सू १/११ आय परोक्षम् ।११।। - आदिके दो ज्ञान अर्थात मति
और मुतज्ञान परोक्ष प्रमाण है । (ध १/४,१,४५/१४३/), (न च. वृ/ १७१), (ज प/१३/५३)। द्र स टी /१/१५/२ शेषचतुष्टय परोक्षमिति । = शेष कुमति, कुश्रुत,
मति और तज्ञान ये चार परोक्ष है।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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