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मोक्षपाहुड
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मोक्षमा
से कोई एक या दो आदि पृथक्-पृथक् रहकर मोक्षके कारण नहीं है, अषिक समुदित रूपसे एकरस होकर ही ये तीनो युगपत् मोक्षमार्ग है। क्योकि, किसी वस्तुको जानकर उसकी श्रद्धा या रुचि हो जाने पर उसे प्राप्त करनेके प्रति आचरण होना भी स्वाभाविक है। आचरणके बिना व ज्ञान, रुचि ब श्रद्धा यथार्थ नहीं कहे जा सकते। भले ही व्यवहारसे इन्हे तीन कह लो पर वास्तव में यह एक अखण्ड चेतनके ही सामान्य व विशेष अंश है। यहाँ भेद रत्नत्रयरूप व्यवहार मार्गको अभेद रत्नत्रयरूप निश्चयमार्गका साधन कहना भी ठीक हो है, क्योकि, कोई भी साधक अभ्यास दशामें पहले सविकल्प रहकर ही आगे जाकर निर्विकल्पताको प्राप्त कस्ता है।
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मोक्षमार्ग सामान्य निर्देश
मोक्षमार्गका लक्षण । २ | तीनोंकी युगपतता ही मोक्षमार्ग है।
सामायिक सयम व ज्ञानमात्रसे मुक्ति कहनेपर भी । तीनोंका ग्रहण हो जाता है। | वास्तवमें मार्ग तीन नहीं एक है। युगपत् होते हुए भी तीनोंका स्वरूप भिन्न है। तीनोंकी पूर्णता युगपत् नहीं होती। सयोगि गुणस्थानमें रत्नत्रयको पूर्णता हो जानेपर
भी मोक्ष क्यों नहीं होती। -दे० केवली/२/२॥ इन तीनोंमें सम्यग्दर्शन प्रधान है।
- दे० सम्यग्दर्शन/I/41 * मोक्षमार्गमें योग्य गति, लिंग, चारित्र आदिका निर्देश।
-दे० मोक्ष/४॥ * | मोक्षमार्गमें अधिक ज्ञानकी आवश्यकता नहीं।
- दे० ध्याता/१। मोक्षके अन्य कारणों ( प्रत्ययों ) का निर्देश ।
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उत्तर-नहीं होता है; क्योंकि, १. त्रस भावको नहीं प्राप्त हुए अनन्त निगोद जीव सम्भव है। (और भी दे० वनस्पति/२/३)।२ आयरहित जिन संख्याओं का व्यय होनेपर सत्त्वका विच्छेद होता है वे संख्याएँ संख्यात और असख्यात संज्ञागली होती है । आयसे रहित जिन संख्याओका सख्यात और असख्यात रूपसे व्यय होनेपर भी विच्छेद नहीं होता है, उनकी अनन्त संज्ञा है (और भी दे० अनन्त/ १/१)। और सब जीव राशि अनन्त है, इसलिए वह विच्छेदको प्राप्त नहीं होती। अन्यथा उसके अनन्त होनेमें विरोध आता है । (दे० अनन्त/२/१-३)। ३. सब अतीतकाल के द्वारा जो सिद्ध हुए है उनसे एक निगोदशरीरके जीव अनन्तगुणे है। (दे० वनस्पति/३/७) । ४. सिद्ध जीव अतीतकाल के प्रत्येक समयमें यदि असंख्यात लोक प्रमाण सिद्ध होवे तो भी अतीत कालसे असंख्यातगुणे ही होगे। परन्तु ऐसा है नहीं क्योकि, सिद्ध जीव अतीतकालके असंख्यातवें भाग प्रमाण ही उपलब्ध होते है। १. अतीत कालमे सपनेको प्राप्त हुए जीव यदि बहुत अधिक होते है तो अतीतकालसे असंख्यात गुणे ही होते है। स्या. मं/२९/३३१/१६ न च तावता तस्य काचित परिहाणिनिगोद
जीवानन्त्यस्याक्षयत्वात्। अनाद्यनन्तेऽपि काले ये के चिन्निवृता. निर्वान्ति निर्वास्यन्ति च ते निगोदानामनन्तभागेऽपि न वर्तन्ते नावतिषत न बय॑न्ति । ततश्च कथं मुक्तानां भवागमनप्रसङ्ग', क्थ च संसारस्य रिक्तताप्रसक्तिरिति । अभिप्रेतं चैतद अन्यथ्यानामपि। यथा चोक्तं वार्तिककारेण-अतएव च विद्वत्सु मुच्यमानेषु संततम् । ब्रह्माण्डलोकजीवानामनन्तत्वादशून्यता ।१। अत्यन्यूनातिरिक्तत्वै युज्यते परिमाणवत । वस्तुन्यपरिमेये तु नूनं तेषामसंभव' । ।२। -६, [जितने जीव मोक्ष जाते है उतने ही निगोद राशिसे निक्लकर व्यवहारराशिमें आ जाते है (दे० मोक्ष/२/२)1 अतएव निगोदराशिमें-से जीबोके निकलते रहनेके कारण संसारी जीवोका कभी क्षय नही हो सकता। जितने जीव अबतक मोक्ष गये है और आगे जानेवाले है वे निगोद जीवोके अनन्तचे भाग भी नहीं है, न हुए है और न हाँगे। अतएव हमारे मतमें न तो मुक्त जीव संसारमें लौटकर आते है और न यह स सार जीवोसे शून्य होता है। इसको दूसरे वादियोने भी माना है। वार्तिककारने भी कहा है, 'इस ब्रह्माण्डमे अनन्त संसारी जीव है, इस ससारसे ज्ञानी जीवोकी मुक्ति होते हुए यह संसार जीवोसे खाली नही होता। जिस वस्तुका परिमाण होता है, उसीका अन्त होता है, वहीं घटती और समाप्त होती है। अपरिमित वस्तुका न कभी अन्त होता है, न बह घटती है, और न समाप्त होती है। गो, जी/जी. प्र./१६६/४३७/१८ सर्वो भव्यसंसारिराशिरनन्तेनापि कालेन नक्षीयते अक्षयानन्तत्वात् । यो योऽक्षयानन्त' सो सोऽनन्तेनापि कालेन न क्षीयते यथा इयत्तया परिच्छिन्न कालसमयोध', सर्वद्रव्याणां पर्यायोऽविभागप्रतिच्छेदसमूहो वा इत्यनुमानाङ्गस्य तर्कस्य प्रामाण्यसुनिश्चयात् । ६. सर्व भव्य संसारी राशि अनन्त कालके द्वारा भी क्षयको प्राप्त नहीं होती है, क्योकि यह राशि अक्षयानन्त है। जो जो अक्षयानन्त होता है, वह-वह अनन्तकालके द्वारा भी क्षयको प्राप्त नहीं होता है, जैसे कि तीनो कालोके समयोका परिमाण या अविभाग प्रतिच्छेदोका समूह। इस प्रकार के अनुमानसे प्राप्त
तर्क प्रमाण है। मोक्ष पाहुड-आ० कुन्दकुन्द (ई०१२७-१७१) कृत मोक्ष प्राप्तिके क्रमका प्ररूपक, १०६ गाथा बद्ध एक ग्रन्थ । इसपर आ० श्रुतसागर ( ई०१४८१-१४६६) कृत संस्कृत टोका और पं. जयचन्द छाबडा ( ई० १८६७ ) कृत भाषा बचनिका उपलब्ध है । (ती०/२/११४) । मोक्षमागे-सम्यग्दर्शन, सभ्यरज्ञान व सम्यक्चारित्र, इन तीनों
को रत्नत्रय कहते हैं। यह ही मोक्षमार्ग है। परन्तु इन तीनोमे
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| निश्चय व्यवहार मोक्षमार्ग निर्देश मोक्षमार्गके दो मेद-निश्चय व व्यवहार । व्यवहार मोक्षमार्गका लक्षण भेदरत्नत्रय । निश्चय मोक्षमार्गका लक्षण अभेदरत्नत्रय । निश्चय मोक्षमार्गका लक्षण शुद्धात्मानुभूति । | निश्चय मोक्षमार्गके अपर नाम । | निश्चय व व्यवहार मोक्षमार्गके लक्षणोंका समन्वय । अभेद मार्गमें भेद करनेका कारण ! सविकल्प व निविकल्प निश्चय मोक्षमार्ग निर्देश।
-दे० मोक्षमार्ग/४/६।
दर्शन ज्ञान चारित्रमें कथंचित् एकत्व तीनों वास्तवमें एक आत्मा ही है। तीनोंको एक आत्मा कहनेका कारण । ज्ञानमात्र ही मोक्षमार्ग है। शानमात्र ही मोक्षमार्ग नहीं है।
-दे. मोक्षमार्ग/१/२।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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