________________
मोक्ष
३३१
परिणाम नामक निर्मल भावना विशेषरूप खड्ग से पौरुष करके कर्म शत्रुको नष्ट करता है। और जो अन्तःकोटाकोटिप्रमाण कर्मस्थितिरूप तथा लता का स्थानापन्न अनुभागरूपसे कर्मभार हलका हो जानेपर भी कमको नष्ट करनेकी बुद्धि किसी भी समय में नहीं करेगा तो यह अभव्यत्व गुणका लक्षण समझना चाहिए। ( मो. मा. प्र. /३. ४५१/२) ।
४. अनादि कमका नाश कैसे सम्भव है
रा. बा./१०/२/३/६४१/१ स्यान्मतम् कर्म भन्सतामस्याद्यभावादन्तेनाम्यस्य न भवितव्यम् दृष्टिविपरीतकल्पनाय प्रमाणाभावादिति तन्नः कि कारणम् इत्यादयभीजनत् यथा बीजाङ्कुरसतानेमावी प्रवर्तमाने अन्योलमोलाइ कुरा मिध्यतोऽस्य दृष्टस्तथा मिथ्यादर्शनादिप्रत्यय पिरामिकस रासायनादी ध्यानानल निर्दग्धकर्मीले भवात्पाभावान्मोक्ष इति म दमपोतुमशक्यम् - प्रश्न कर्म बन्धकी सन्दान जब अनादि है तो उसका अन्त नहीं होना चाहिए ? उत्तर- जैसे ब ज और अकुरकी सन्तान अनादि होनेपर भी अग्निसे अन्तिम बीजको जला देनेपर उससे अकुर उत्पन्न नहीं होता, उसी तरह मिथ्यादर्शनादि प्रत्यय तथा कर्मबन्ध सन्ततिके अनादि होनेपर भो ध्यानाग्निसे कर्मबीजों को जला देनेपर भवाकुरका उत्पाद नही होता, यही मोक्ष है । क. पा. १/१-९/३३८/६/१ कम सहेजतत्रासम्यानमतीदो raaदे । ण च कम्मविणासो असिद्ध; बाल जोठवणरायादिपज्जा या विषासम्णावतं वाससिद्ध दो जायदे । ण, अकट्टिमस्स विणामाणुववत्ती दो । तम्हा कम्मेण कट्टिमेण वेव होदव्वं । - कर्म भी सहेतुक है, अग्यथा उनका विनाश बन नहीं सकता। और कर्मोका विनाश afe भी नहीं है, क्योंकि, कमक कार्य माल पौवन और राजा आदि पर्यायका विनाश कमका विनाश हुए बिना नहीं हो सकता है प्रश्न कर्म अकृत्रिम को नहीं उत्तर नहीं कि अकृत्रिम पदार्थ विनाश नही बन सकता है, इसलिए कर्मको कृत्रिम ही होना चाहिए।
मा
क. पा. १ / १-१ / ६४२ / ६० / १ तं च कम्म सहेजअं, अण्णा णिव्वावाराण पिगंधप्पसंगादो। = कर्मोको सहेतुक ही मानना चाहिए, अन्यथा अयोगियोंमें कर्मबन्धका प्रसंग प्राप्त होता है। आम प/टी./१११/ ४२१९/१४३ / १०) |
क. पा. १/१-१/६४४/६१६ अकट्टिमत्तादो कम्मसताणे ण बोच्छिज्जदि सिबो जुतं मत्स वि बीजकुरसागरत मोच्छेदुव भादो। ण च कट्टिमसंताणिवदिरित्तो सताणो णाम अत्थि जस्स अट्टम चापखे सयलसवरे समुष्य विकम्मागमसता तुहृदि सिबो जुस खुवाहियत्तादौ । सम्मसंजम विरायजोगणिहाममेण पाच दिट्ठे अनवाणाम असणाणमकमची सद
चे; ण; अक्कमेण वट्टमाणानं सयलत्तकारणसाणिज्भे स ते तदविरोहादी संग सम्मका सो होदि मेचि वो गुन, यमाणे कस्स विक विजय सगसगुजरात्या दंसणादो । सवरो वि, वड्ढमाणो उबलब्भए तद' कत्थ वि संपुरण हो माहुजियालस्वीय आसयो वि कहि विम्लदो विजय हाणे तरतमभावावरती आयरनओलावलीणमलक्ल को व्व । प्रश्न - अकृत्रिम होनेसे कर्मकी सन्तान व्युच्छिन्न नहीं होती है उसर नही क्योंकि अकृत्रिम होते हुए भी बीज व अकुरकी सन्तानका विनाश पाया जाता है । २. कृत्रिम सतानीसे भिन्न, अकृत्रिम सन्तान नामकी कोई चीज नहीं है। प्रश्न- ३ आस्रवविरोधी सकलसवर के उत्पन्न हो जानेपर भी कर्मोंकी आस्रवपर परा विच्छिन्न नही होती । उत्तर-ऐसा कहना
Jain Education International
६. मोक्षके अस्तित्व सम्बन्धी शंकाऍ
युक्त बाधित है, अर्थात सत प्रतिपक्षी कारण होनेपर कर्मका विनाश अवश्य होता है । ( घ. ६/४, १/४४ /११७ /६ ) । प्रश्न- ४, सकल संवररूप सम्यक्त्व, सयम, वैराग्य और योगनिरोध इनका एक साथ स्वरूपलाभ नहीं होता है ? उत्तर- नहीं, क्योंकि, इन सबकी एक साथ अविरुद्धवृत्ति देखी जाती है। प्रश्न- ५. असम्पूर्ण कारणोकी वृत्ति भले एक साथ देखी जाये, पर सम्पूर्ण की सम्पादिकी नहीं उतर नहीं, क्योंकि, जो वर्द्धमान है ऐमे उन सम्यक्त्वादिमेसे कोई भी कही भी नियमसे अपनी-अपनी उत्कृष्ट अवस्थाको प्राप्त होता हुआ देखा जाता है । यतः सवर भी एक हाथ प्रमाण तालवृक्षके समान वृद्धिको प्राप्त होता हुआ पाया जाता है, इसलिए किसी भी आत्मामे उसे परिपूर्ण होना ही चाहिए। ( ध १ / ४,१.४४ /११ / १) और भी दे. अगला सन्दर्भ ) | ६. तथा जिस प्रकार खानसे निकले हुए स्वर्ण पाषाणका अन्तरग और बहिर ग मल निर्मूल नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार आसव भी कहीं पर निर्मूल विनाशको प्राप्त होता है, अन्यथा आसवको हानिमे तर तम भाव नहीं बन सकता है। (ध. ६/४.१, ४४/११८/२ ), ( स्या. मं / १७ / २३६ / २६ ) । ७ [ दूसरी बात यह भी है कि कर्म अकृत्रिम ई ही नहीं (दे० विभाव / २ ) ] | स्था. म / १० / २३६ / १ पर भूत-देशो नाशिनो भाषा निखिल नश्वरा' । मेघपक्त्यादयो यद्वत एव रागादयो मताः । जो पदार्थ एक देश से नाश होते है, उनका सर्वथा नाश भी होता है। जिस प्रकार मेघोके पटलोका आशिक नाश होनेसे उनका सर्वथा नाश भी होता है।
५. मुक्त जीवोंका परस्पर में उपरोध नहीं
1 -
रा. वा./१०/४/६/६४३/ १३ स्यान्मतम् - अल्प सिद्धावगाह्य आकाश प्रदेश आधार, आधेया सिद्धा अनन्ता तत' परस्परोपरोध इति तन्न' कि कारण अवगाहनशतियागात मित्स्वपि नामा नेकमणिप्रदीपप्रकाशेषु अम्पेऽप्यवकाशे न विरोधः किमङ्गपुनरमूर्तिष्ट अवगाहनशक्तियुक्तेषु मुक्तेषु प्रश्न- सिद्धोका अवगाह्य आकाश प्रदेश रूप आधार ता अन्प है और आधेयभूत सिद्ध अनन्त है, अत उनका परस्परमे उपराध होता होगा। उत्तर- नहीं, क्योकि आकाश मे. अवगाहन शक्ति है। मूर्तिमान् भी अनेक प्रदाप प्रकाशोक अल्प आकाश में अविरोधी अवगाह देखा गया है, तब अमूर्त सिद्धो की तो बात ही क्या है 1
६. मोक्ष जाते-जाते जीवराशिका अन्त हो जायेगा ? ६. १४/१६.१२८/२३३/७ जीवरासी आयवज्जिदो सम्मओ गच्छावाभादो उदो ससारिणीमाणमभाव हादिसि भणिदेण हादि असा भागोजी बागमत सभवा हादिति ।
१४/५.६,१२८/२१६/२ जासि खाणं आयविरहियाण वये बोच्वेो हादि ताओ संखाओ सखेज्यासलेस शिदाओ जार २ खाण आयविरहियाणं सखेज्जास खेज्जेहि वइज्जमाणाण वच्छेदो ण होदितासिमण तमिदि सण्गा । सव्व जीवरासी वात तण सोग वज्जिदि, जहा आणं तियविरोहादो। अङ्गीदक अदीक शेप में सिद्धा रोहितो एगमिगोदसरी रजीबागमण रा गुणत सिद्धा पुण अयोदकाते समय पछि दिवि असले लागता सिति तावकाला असाव
स
एम. अदिकालादा सिद्धाणमसंखे भागतु मत भादो ।... अदकाले पसजीवाद हुआ हो तो कालादो असरखेज्जगुण चैव । - प्रश्न- जोब राशि आयसे रहित और व्यय सहित है, क्योकि उसमेंसे मोक्षको जानेवाले जीव उपलब्ध होते है । इसलिए ससारी जावोका अभाव प्राप्त होता है ?
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org