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महाराष्ट्र
महाराष्ट्र कृष्णानदीसे नर्मदा नदी का क्षेत्र (म. पू. /प्र.४६/६. पन्नालाल ) ।
महारुद्र - १. एक ग्रह - दे० ग्रह । २ चतुर्थ नारद दे० शलाकापुरुष/६ ।
महालतांग कालका एक प्रमाण ३० गणित / I// महालताकाला एक प्रमाण ०/1/१/४
महावत्सा - १ पूर्व विदेहका एक क्षेत्र - दे० लोक ५/२१२. वैश्रवण वक्षारका एक कूट व देव - दे० लोक /५/४ 1
महावप्र - १. अपर विदेहका एक क्षेत्र - दे० लोक ५ / २ / २. सूर्यगिरि वक्षारका एक कूट व उसका रक्षक देव - दे० लोक /५/४ ।
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महावीर - १. प्रथम दृष्टिले भगवान् की आयु आदि घ. ६/४, १,४४ / १२० पण्णारहदिवसेहि अट्ठहि मासेहि य अहियं पचहत्त] रिवासावसेसेच ७५-८-१३ पुत्तरनिमाणो आसाद जोणपखट्ठीए महावीरो बाहान्तरिवासाठओ विषापहरो गम्भ मोहम्णो तस्य तीसवसाणि कुमारकालो, बारसरसाणि तस्स दुमत्यकाल के निकालो वि तीस वासाथि एदेसि तिण्ड काला समासो बाहत्तरिवासाणि । १५ दिन और ८ मास अधिक ७५ वर्ष चतुर्थ कालमें दीप रहनेपर पुष्पोत्तर विमानसे आषाढ शुक्रा षष्ठी दिन ७२ वर्ष प्रमाण आयुसे युक्त और तीन ज्ञानके धारक महावीर भगवान् गर्भ में अती हुए। इसमें ३० वर्ष कुमारकाल १२ वर्ष उनका छद्मस्थकाल और ३० वर्ष केवलिकाल इस प्रकार इन तीनों कालोका योग ७२ वर्ष होता है (कपा ९/११/६२६/
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७४/६)।
२. दिव्यध्वनि या शासनदिवसकी तिथि व स्थान
घ. १/१.१.१/गा. ५२-५०/६१-६३ पंचसेलापुरे सम्मे उपमे ...११२ महावीरेण कहियो भनियतोयस्स ... इम्मिस्से बसिप्पिणीए उत्थ- समयस्स पच्छिमे भाए । चोत्तोसवाससेसे किंचि विसेसून संते ॥२१॥ वासस्स पदमासे पढने पक्खहि साम बहुले । पाविदपुव्वदिवसे तित्थुप्पत्ती दु अभिजिहि ॥ ५६ ॥ सावण बहुलपडिव रुद्दमुहुते सुहोदर रविणो । अभिजिस्स पढमजोए जुगादी पथदशेतपुर में राजगृहमे) रमणीक, विपुल व उत्तम ऐसे विपुलाचल नामके पर्वतके ऊपर भगवान् महावीरने भव्य जीवोको उपदेश दिया । ५२| इस अवसर्पिणी कल्पकालके दुषमा सुषमा नामके चौथे कालके पिछले भाग में कुछ कम ३४ वर्ष बाकी रहनेपर, वर्ष के प्रथममास अर्थात् श्रवण मासमें प्रथम अर्थात् कृष्णपक्ष प्रतिपदा के दिन प्रात:कालके समय आकाशमै अभिजित नक्षत्रके उदित रहनेपर तीर्थकी उत्पत्ति हुई।२३-५८ भावणकृष्ण प्रतिपदा के दिन मुहूर्त में सूर्यका शुभ उदय होनेपर और अभिजित नक्षत्रके प्रथम योग में जब युगकी आदि हुई तभी तीर्थ की उत्पत्ति समझना चाहिए । (प. १/४.१.४४/ . २६/१२० ). (क. पा./१/१-१/६५६ / गा. २०/७४) ।
घ. ६/४.१.४४/१२०/१ वासदिदिवसावण केवलकालम्मि किम करिये। केवलगाणे समुत्पण्णे मि तत्थ तित्यापुष्पोदो-केहानकी उत्पत्ति हो जानेपर भी 4 दिन तक उनमे तीर्थ की उत्पत्ति नहीं हुई थी, इसलिए उनके केवलोकासमें ६६ दिन कम किये जाते हैं। क. पा. १/११/३५७/०३/२)।
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३. द्वि० दृष्टिसे भगवान्की आयु आदि
१ / ४.१.४४/ टीका व गा, ३०-४१/१२१-१२६ अण्गे के विकाइरिया पंचहि दिवसेहि अहि मासेहि व ऊगाणि माहतरि वासाणि त्ति माणजिनिदाउन पति ०१-३-२५ सिमहिपाएग गब्भत्थ कुमार छदुमत्थ- केवल - कालाण परूवणा करिदे । तं जहा•• (पृष्ठ १२९/५)। आसाजोगपणे बट्ठीए जोणिमुपाद । या १९ असारमासे अ य दिवसे चहससियण। तेरसिए रतीए जादुतरफग्गुगीर दुगा २२
स
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य मासे दिवसे य वारस गा ३४ आहिणिमोहिमयुद्ध होण यमग्गसीसमहुले दसमीप क्खितो सूरमहिदो शिवमणपुज्जो । गा. ३५ । गमइ छदुमत्यत्तं बारसवासाणि पंच मासे य । पणारसाणि दिण्णाणि य तिरयणसुद्धो महावीरो । गा. ३६ । वहसाजी इसमीए खनगरीबिगारूडी हंसू पाडकाम केल
समावण्णी । गा. ३८१ वासाणूणत्तीसं पचय मासे य बीसदिवसे य । । गा ३६ । पाच्छा पावाणयरे कत्तियमासे य किण्हचो. दसिए । सादीए रत्तीए सेसरयं छेत्तु णिव्वाओ। गा. ४० । परिणिधबुदे जिणिदे चउत्थकालस्स जं भवे सेसं । बासाणि तिणि मासा अट्ठ य दिवसा वि पण्णरसा । गा. ४१ । एद काल वड्ढमाणजिनिदाउअम्मि पतिते दसदिमसाहिय चहरिवासमेायसेसे चत्कालै सग्गादो माणमिनिवरस ओदिकालो होदि ।
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अन्य कितने ही आचार्य भगवान्को आयु ७१ वर्ष ३ मास २५ दिन बताते है । उनके अभिप्रायानुसार गर्भस्थ, कुमार, छद्मस्थ और केवलज्ञानके कालोकी प्ररूपणा करते है । वह इस प्रकार कि - गर्भावतार तिथि - आषाढ शु. ६: गर्भस्थकाल = मास-5 दिन, जन्म तिथि व समय चैत्र शु १३ की रात्रिने उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र, कुमारकाल = २८ वर्ष ७ मास १२ दिन; निष्क्रमण तिथिमगसिर कृ. १०, छद्मस्थकाल = १२ वर्ष ५ मास १५ दिन; केवलज्ञान तिथि वैशाख शु १०, केवलीकाल = २६ वर्ष ५ मास २० दिन, निर्वाण तिथि- कार्तिक कृ. १५ में स्वाति नक्षत्र । भगवान् के निर्वाण होनेक पश्चात् शेष बचा चौथा काल - ३ वर्ष ८ मास १५ दिन इस काफी वर्धमान जिनेन्द्रकी आयु मिला देनेपर चतुर्थकाल ७५ १० दिन शेष रहने पर भगवा स्ववतरण होनेका काल प्राप्त होता है . प ९/११/६०-६०/टीम गा. २१-११ / ७६-११) ।
महावीर
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४. भगवान्की आयु आदि सम्बन्धी दृष्टिभेदका समन्वय ध ६/४, १.४४ / १२६/५ दोसु वि उवएसेस को एत्थ समजसो, एत्थ ण बाहर जिम्भमेलाइरियवच्छओ; अलद्धोवदेसत्तादो दोण्ण मेक्कस्स वाहाभादो किंतु दोस एस्केप होणं तापिय मतव्य ।
उक्त दो उपदेशो मे कौन-सा उपदेश यथार्थ है. इस विषय मे एसाचार्य शिष्य (बीरसेन स्वामी) अपनी जीभ नहीं चलाता, क्योकि न तो इस विषयका कोई उपदेश प्राप्त है और न दोनो मेसे एक में कोई बाधा ही उत्पन्न होती है। किन्तु दोनोमेंसे एक ही सत्य होना चाहिए। उसे जानकर कहना उचित है। (क. पा./१/१-१/8 ६३/८१/१२ )
★ वीर निर्वाण संवत् सम्बन्धी - दे० इतिहास / २ |
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५. भगवान् के पूर्व मयका परिचय
म.पु. / ७४ / श्लोक नं. "दूरवर्ती पूर्वभव नं. १ में पुरुरवा भील थे । १४- १६० नं २ में सौधर्म स्वर्ग में देव हुए । २०-२२ नं. ३ में भरत का पुत्र मरीचि कुमार ४१-६६४ मे स्वर्णमे न. १ में जटिल
का पुत्र ६८ नं ६ में सौधर्म स्वर्ग देव ||
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