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महातपऋद्धि
महातप ऋद्धि दे०
महातमः प्रभा - १. स.सि./३/९/२०३/१ महातम प्रभासहचरिता भूमिमहातम प्रभा इति - जिसकी प्रभा गाढ अन्धकारके समान है। वह महातम प्रभाभूमि है । ( ति प / २ / २१) । (रा. वा / १/३/३/ १५६/११ ), ( विशेष दे० तम प्रभा ) । २. इसका अपर नाम माधवी है । इसका आकार अवस्थान आदि-दे० नरक / ५ /११६
महात्मा. सा. वा. बृ./१२/११६/१५ - मोक्षलक्षण महार्थ साथकत्वेन महात्मा मोक्षणा महाप्रयोजनको साधने के कारण श्रमणको महात्मा कहते हैं ।
महावेह - विशाच जातीय एक व्यर३० व्यन्तर
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महापद्म - १. महाहिमवान पर्वतका एक हृद जिसमेंसे रोहित व रोहितास्या ये दो नदियाँ निकलती है ही देवी इसकी अधिष्ठात्री है । दे० लोक / ३ / १ २, अगर विदेहका एक क्षेत्र । ३० लोकg/२। ३. विकृतवान् वक्षारका एक कूट- दे० लोक५/४ ४. कुण्डपर्वत के सुप्रभकूटका रक्षक एक नागेन्द्र देव - दे० लोक ५ / १२१५. कुरुव शकी वंशावलीके अनुसार यह एक चक्रवर्ती थे जिनका अपर नाम पद्म था- दे० पद्म । ६. भावी कालके प्रथम तीर्थंकर-दे० तीर्थंकर / ५ । ७. म. पु. ॥१५॥ श्लोक पूर्वी पृष्करार्धके पूर्व निदेहमें पुष्कतायत देशका राजा था ( २-३ ) | धनपद नामक पुत्रको राज्य दे दीक्षा धारण की। (१८-१९ ) । ग्यारह अंगधारी होकर तीर्थंकर प्रकृतिका बन्ध किया । समाधिमरणकर प्राणतस्वर्ग में देव हुआ। ( १६-२२)। यह सुविधिनाथ भगवादका पूर्वका भय नं २ हैं । दे० सुविधिनाथ। महापुंडरीक - १. द्वादशाग श्रुतका ज्ञान / III २ रुक्मि पर्वतपर स्थित रूपकूला में दो नदियों निकती है अधिष्ठात्री है० लोक /३/६ | महापुर-१, भरतक्षेत्रका एक नगर दे० मनुष्य / ४२ विजयार्थ की उत्तर श्रेणीका एक नगर-३० विद्याधर ।
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१३वाँ अग बाह्य- दे० श्रुतएक हद जिसमे मारी और बुद्धि नामक देवी उसकी
महापुराण का जिनसेन (ई. कृत कलापूर्ण संस्कृत काव्य जिसे इनकी मृत्यु के पश्चात् इनके शिष्य आ गुण भद्र ने ई. १८ में पूरा किया। जिनसेन वाले भाग का नाम आदि पुराण है। जिसमें भगवान् ऋषभ तथा भरत मामी का चरित्र चित्रित किया गया है। इसमें ४७ पर्व तथा १५००० श्लोक हैं। गुणभद्र वाले भाग का नाम उत्तर पुराण है जिसमें शेष २३ तीर्थंकरो का उल्लेख है । इसमें २६ पर्व और ८००० श्लोक है। दोनों मिलकर महापुराण कहलाता है। दे, आदि पुराण तथा उत्तर पुराण २, कवि पुष्पदन्त (ई. ६६५) कृत उपर्युक्त प्रकार दो खण्डों में विभक्त अपभ्रंश महाकाव्य । अपर नाम 'तीस ठि महापुरिगुणालंकार'। दोनों में ८०+४२ सन्धि और २०,००० श्लोक हैं। (ती./४/११०) २. मणि (ई. १०४०) कृत २००० श्लोक प्रमाण तेरसठ शलाका पुरुष चरित्र । (ती./३/१७४) । रचा था ।
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महापुरी - अपर विदेहके महापद्म क्षेत्रकी प्रधान नगरी ६० लोक/५/१२।
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महापुरुष - किपुरुष जातीय एक व्यन्तर- दे० किपुरुष । महाप्रभ -१ उत्तर घृतवर द्वीपका रक्षक देव-दे० व्यन्तर 181 २. घृतवर समुद्रका रक्षक देव - दे० व्यन्तर |४| ३. कुण्डल पर्वतका महाबंध - पण्डागम का अन्तिम खण्ड (दे०परिशिष्ट ) | महाबल १. असुर जातीय एक भवनवासी देव ( म. पू. / सर्ग / श्लोक ) - जा अतितका पुत्र था।
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दे० असुर । २. (४/१३३) ।
महाराजा
राज्य प्राप्त किया। ( ४/१५१ ) । जन्मोत्सव के अवसरपर अपने मन्त्री स्वयं बुद्ध द्वारा जीवके अस्तित्वकी सिद्धि सुनकर आस्तिक हुआ (५/८७ ) । स्वयं बुद्ध मन्त्रीको आदित्यगति नामक मुनिराजने बताया था कि ये दसवे भव भरतक्षेत्रके प्रथम तीर्थंकर होंगे। ( ५/२०० ) । मन्त्रीके मुखसे अपने स्वप्नोके फलमें अपनी आयुका निकटमें क्षय जानकर समाधि धारण की। (५/२२६,२३० ) । २२ दिनकी सल्लेखना - पूर्वक शरीर छोट (५/२४८-२५०) ईशान स्वर्गने खिलोग नामदेव (/२५३-२५४) यह ऋषभदेवका पूर्व भव नं. १
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है- दे. पदे १. पु/२० / श्लोक - मंगलावली देशका राजा था (२-३) विमलवाहन मुनि दीक्षा ले १९. अंगका पाठी हो तीर्थंकर प्रकृतिका बन्ध किया । ( १०-१२ ) । समाधिमरणपूर्वक विजय नामक अनुत्तर विमानमे अहमिन्द्र हुआ (११)। यह अभिनन्दनाथ भगवादका पूर्व भव न. २४ ( म. पू. / ६०/ (श्लोक) पूर्व विदेहके नन्दन नगरका राजा था । (५८) । दीक्षाधार | (६१) । संन्यास मरण पूर्वक सहसार स्वर्गमे देव हुआ । (६२) । यह सुप्रभ नामक बलभद्रका पूर्व भव नं. २ है । ५ नेमिनाथपुराण के रचयिता एक जैन कवि समय (ई. १२४२) (र/ प्र. २३/ पं, खुशालचन्द )
महाभारत - १. रामाकृष्णा द्वारा संशोधित 'इक्ष्वाकु वंशावली' में
महाभारत युद्धका काल ई. पू. १५५० बताया गया है। ( भारतीय इतिहास / ०१ / १ २०६) २. महाभारत युद्धान्त-देह पु. / सर्ग ४५-४६, सर्ग ४७ / १ - १६; तथा सर्ग ५४ ) । महाभिषेक
आशापरली (ई. १९०३-१९४३) कृत निय महोद्योत' पर आ. श्रुतसागर (ई. १४८१-१४६६) कृत महाभिषेक नामक एक टीका ग्रन्थ ।
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महाभीम -१ राक्षस जातीय एक व्यन्तर दे० राक्षस २ द्वि नारद - दे० १० शलाका पुरुष / ६ ।
महाभुजकुण्ड पर्वतके कनकप्रभ कूटका रक्षक एक नागेन्द्र देव - दे० लोक /७ |
ऋषभ
महाभूतत जातीय एक व्यन्तर ३० त महामंडलीक - राजाओ एक सी श्रेणी ३० राजा। महामति (म. पू. / सर्ग /श्लोक ) - महामत भगवाद देवका पूर्व भव नं. १ । (५/२००) । का मन्त्री था । मिध्यादृष्टि था। ( ४ / १११-११२ ) । इसने राजाके जन्मोत्सव के अवसरपर उसके मन्त्री स्वयं बुद्ध के साथ विवाद करते हुए चार्वाक मतका आलम्बन लेकर taaree सिद्धि दूषण दिया था। (५/२६-२८) । मरकर निगोदमें गया । ( १०/७ ) ।
महामत्स्य दे० संमूर्च्छन ।
महामह दे०पूजा
महामात्य त्रि. सा./टी./३८३ महामात्य कहिए सर्व राज्यकार्यका अधिकारी ।
महामानसी - १ भगवान् कुन्थनाथको शासक यक्षिणी-दे० तीर्थंकर /५/३ । २. एक विद्या - दे० विद्या ।
महायक्ष भगवान् अजितनाथका शासक यक्ष-३० तीर्थंकर २/३ | महायान एक भी सम्प्रदाय ३० दर्शन । महायोजन क्षेत्रका एक एक प्रमाण दे० गणित / I १ महाराजा
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राजाओगे एक श्रेणी-दे० राजा ।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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