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महावीर पुराण
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नं. ७ में पुष्यमित्र ब्राह्मणका पुत्र ७१| नं ८ में सौधर्म स्वर्ग में देव | ७२-७३ | न ६ में अग्निसह ब्राह्मणका पुत्र |७४ | न. १० में ७ सागरकी आयुवाला देव १७५ नं ११ में अग्निमित्र ब्राह्मणका पुत्र । ७६ । नं १२ में माहेन्द्र स्वर्ग में देव ॥ ७६ ॥ न. १३ में भारद्वाज ब्राह्मणका पुत्र ॥७७॥ न. १४ में माहेन्द्र स्वर्ग में देव ॥७८॥ तत्पश्चात् अनेकों त्रस स्थावर योनियो में असख्यातो वर्ष भ्रमण करके वर्तमानसे पहले पूर्वभव नं. १८ में स्थावर नामक ब्राह्मणका पुत्र हुआ पूर्वभवन, १० में महेन्द्र स्वर्ग में
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नं. १६ में विश्वमन्दी नामक राजपुत्र हुआ। ६-११०। पूर्वभवन १४ में महाशुक स्वर्ण देव ११० १२०० पूर्व नं. १४ में नारायण । १२० - १६७। पूर्वभव न. १३ में सप्तम नरकका नारकी १६७ पूर्वभवन १२ में सिह ॥ १६६॥ पूर्वभवन, ११ में प्रथम नरकका नारकी १०० पूर्व भव नं. १० में सिंह । १०१ २१६ पूर्व भव नं में सिहकेतु नामक देव २९ पूर्वभवन में कनोज्ज्वल नामक विद्याधर | २२० - २२ पूर्वभवनं ७ में सप्तम स्वर्ग में देव | २३० | पूर्वभव नं ६ में हरिषेण नामक राजपुत्र । २३२ - २३३ । पूर्वभव नं. ५ में महाशुक स्वर्ग में देव ॥२३४॥ पूर्वभवनं ४ में प्रियमित्र नामक राजपुत्र । २३४-२४०) पूर्वभव नं ३ में सहस्रार स्वर्ग में सूर्यप्रभ नामक देव | २४१ । पूर्वभव नं. २ में नन्दन नामक सज्जनपुत्र २४२-२२१ पूर्व १ में अच्युत स्वर्गने अहमिन्द्र २४६ वर्तमान भवने १४ वे तीर्थंकर महावीर हुए। २४१० ( युगपद सर्व भव - दे०म. पु./०६/५३४ ) ।
* भगवान् के कुल संघ आदिका विशेष परिचय - दे० तीर्थंकर / ५ ।
महावीर पुराण- १. आ. शुभचन्द्र ( १३९१६-१९६६) द्वारा
रचित संस्कृत छन्द -बद्ध एक ग्रन्थ । इसमें २० अध्याय है । २. आ. सकलकीर्ति (ई. १४०६-१४४२) को एक रचना । महावीराचार्य - आप राजा अमोघवर्ष प्रथमके परम मित्र थे । दोनो साथ -साथ रहते थे। पीछेसे आपने दीक्षा ले ली थी। कृतिगणितसार संग्रह । ज्योतिष, पटल । समय-अमोघवर्ष के अनुसार शक ७३० ( ई. ५००-८३० ) | ( ती / २/३४) ।
महाव्रत - दे० व्रत |
महाशंख- -लवण समुद्र में स्थित एक पर्वत - दे० लोक /५/६ । महाशिरा - कुण्डल' पर्वतके कनक कूटका रक्षक देव - दे० लोक५/१२ | महाशुक-१ स्वर्गी १० दे० स्वर्ग/३। २ शुक्र स्वर्गका एक पटल व इन्द्रक - दे. स्वर्ग / २०
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महाश्वेता - एक विद्या दे० विद्या महासंधिक एक बौद्ध सम्प्रदाय दर्शन । महासत्ता - सर्व पदार्थोका अस्तित्व सामान्य- दे० अस्तित्व । महासर्वतोभद्र - एक व्रत - दे० सर्वतोभद्र ।
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समय
महासेन - १. भोजक वृष्णिका पुत्र उग्रसेनका भाई - ( ह. पु / १८ / १६ ) । २. यादववंशी कृष्णका दसवाँ पुत्र- दे इतिहास / ७ /१० । २. गुलोचनाचरित्रके रचयिता एक दिगम्बराचार्य । ( ई० श०८ का अन्त का पूर्व), (ह पु. / / ७ / पं, पन्नालाल ) । महास्कन्ध-सर्व व्यापक गल द्रव्य सामान्य दे० स्कन्ध / १०१ महास्वरगन्धर्व जातीय एक व्यन्तर-३० गन्ध । महाहिमवान
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१. हैमवत क्षेत्रके उत्तर दिशामें स्थित पूर्वापर
महेंद्रिका
लम्बायमान वर्षधर पर्वत । अपरनाम पचशिखरी है । इसका नशा आदि- ३० लोक / ३.४/२ |
रा. वा/३/१२/३/१०२/२१ हिमाभिसन्धादिभिधानम् महांश्वासी हिममरिच महाहिमवानिति असष्यपि हिने हिमवदाख्या इन्द्रगोपवत् । हिमके सम्बन्धसे हिमवान् संज्ञा होती है। महान् अर्थात महा है और हिमवाद है, इसलिए महाहिमवाद कहलाता है। अपना हिसके अभाव में भी 'इन्द्रगोप' इस नामकी भाँति रूढि से इसे महाहिमवाद कहते है २ महाहिमवाद का एक म उसका स्थायी देव दे०/४२ कुण्डलप्रभकूटका स्वामी नागेन्द्र देव दे० सोक ७/१२
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महिमा - १. आन्ध्रदेश के अन्तर्गत वेणा नदीके किनारे पर एक प्राचीन नगर। आज वेण्या नामकी नदी बम्बई प्रान्तके सितारा जिलेमें है और उसी जिलेमें महिमानगड नामका एक गाँव भी है। सम्भवत यह महिमानगढ़ ही मह प्राचीन महिमा नगरी है, जहाँ कि अति आचार्यने यति सम्मेलन किया था और जहाँसे कि घरसेन आचार्य के पत्र के अनुसार पुष्पदन्त व भूतवती नामके दो साधु उनकी सेवामें गिरनार भेजे गये थे। इसका अपर नाम पुण्ड्र - वर्धन भी है। (ध. १/११ / HL Jam) २. भरत क्षेत्र पश्चिम कार्यखण्ड एक देश-दे० मनुष्य ४ ३. एक विक्रिया ऋद्धि -६० ऋि
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महिष -मध्य आर्यखण्डका एक देश - दे० मनुष्य / ४ । महिषग- दक्षिण देशका वर्तमान मैसूर प्रान्त ( म. पू. प्र. ५०/पं. पन्नालाल ) महिषमति नर्मदा नदी पर स्थित एक नगर-३० मनुष्य / ४ । महादेव -- मूल संघकी गुबली के अनुसार आप अकलंक भट्टके शिष्य थे। समय- (ई. १६५-००५) । ( ३० इतिहास / ०/१ ) | (सि. वि. / प्र.७ /०. महेन्द्र कुमार ) ।
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महोपाल - १. मपू./ ०३ / १लोक-महीपाल नगरका राजा तथा भगवा पार्श्वनाथका नाना था |६६ महादेवी के वियोग में पंचाग्नि तप तपता था। कुमार पार्श्वनाथ से योग्य विनय न पानेपर क्रुद्ध हुआ। कुमार द्वारा बताये जाने पर उनकी सत्यताकी परीक्षा करनेके लिए जलती हुई लकडीको कुल्हाडी से चीरा तो वास्तव में ही वहाँ सर्पका जोड़ा देखकर चकित हुआ। यह कमठका जीव था तथा भगवान् के जीवसे बैर रखता था । शक्यसहित मरणकर शम्बर नामक ज्योतिष देव बना, जिसने तप करते हुए भगवान्पर घोर उपसर्ग किया । ७-११७। यह कमठका आगेका आठवाँ भव है । २. प्रतिहार वंशका राजा था । बढवाण प्रान्तमें राज्य करता था । धरणी वराह इसका अपर नाम था। समय - (श. सं ८३६, वि. सं. ७१ (ई. ११४), (ह. पु. / प्र. ६ / प. पन्नालाल ) ।
महीर -
[-दक्षिण देशका वर्तमान मैसूर नगर (म. पू. ५०/प. पन्नालाल ) ।
महेंद्र - प.
प. पू /१५/१३-१६- महेन्द्रगिरिका राजा तथा हनुमान्की माता अंजनाका पिता था।
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महेंद्र देव तत्त्वानुशासनके रचयिता आ नागसेन (ई. १०४७) के शिक्षागुरु थे। नागसेनके ममयके अनुसार इनका समय - ( ई० श० १२ का पूर्व ) | ( त अन्/प्र २ / त्र श्री लाल ) - दे० नागसेन ।
महेंद्रिका - भरत क्षेत्रमें मध्य आर्यखण्डकी एक नदी । —दे०
मनुष्य / ४।
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