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भिक्षा
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भीमसेन
राजा कहते है। राजाके समान जो महद्धिके धारक अन्य धनाढ्य कथित) राजपिडके दोषीका सम्भव जहाँ होगा ऐसे राजाके घरमें व्यक्ति है, उसको भी राजा कहते है। ऐसोके यहाँ पिण्ड ग्रहण करना आहारका त्याग करना चाहिए। परन्तु जहाँ ऐसे दोषोकी सम्भावना राजपिण्ड है। राजपिण्डका तात्पर्य-उपरोक्त लोगोके हा आहार नही है वहाँ मुनिको आहार लेनेको मनाई नहीं है। गत्यन्तर न हो राजपिण्ड है। इसके तीन भेद है-आहार, अनाहार और उपधि । अथवा श्रुतज्ञानका नाश होनेका प्रसग हो तो उसका रक्षण करनेके अन्न, पान और खाद्य, स्वायके पदार्थोको आहार कहते है। तृण. लिए राजगृहमें आहार लेनेका निषेध नहीं है। ग्लान मुनि अर्थात फलक आसन वगैरहके पदार्थों को अनाहार कहते है। पिछी, वस्त्र, पात्र बोमार मुनिके लिए राजपिंड यह दुर्लभ द्रव्य है। बीमारी, श्रुतज्ञान आदिकी उपधि कहते है। राजपिण्ड ग्रहणमें परक्तदोष-राजपिण्ड का रक्षण ऐसे प्रसंगमें राजाके यहाँ आहार लेना निषिद्ध नहीं है। ग्रहण करने में क्या दोष है । इस प्रश्नका उत्तर ऐसा है-आत्मसमुत्थ __ म पु /२०/६६-८१ का भावार्थ-श्रेयान्सकुमारने भगवान ऋषभदेवको और परसमुत्य--ऐसे दोषोके दो भेद है। ये दोष मनुष्य और तिर्यचो. आहारदान दिया था। के द्वारा होते है। तिर्य चोके ग्राम्य और अरण्यवासी ऐसे दो भेद है। ये दोनो प्रकारके तिर्यच दुष्ट और भद्र ऐसे दो प्रकारके है। घोडा,
८. मध्यम दर्जेके लोगोंके घर आहार लेना चाहिए हाथी, भैसा, मेढा, कुत्ता इनको ग्राम्य पशु कहते है। सिह आदि पशु अरण्यवासी हैं। ये पशु राजाके घर में प्राय. होते है। तिर्यचकृत उपद्रव- भ, आ./वि./१२०६/१२०४/१० दरिद्रकुलानि उत्क्रमाढयकुलानि न यदि ये उपरोक्त पशु दुष्ट स्वभावके होगे तो उनसे मुनियोंको बाधा प्रविशेत् । ज्येष्ठाल्पमध्यानि सममेवाटेत् । -अतिशय दरिद्री लोगोके पहुँचती है । यदि वे भद्र हो तो वे स्वयं मुनिको देखकर भयसे भागकर घर तथा आचार विरुद्ध चलनेवाले श्रमन्त लोगोके गृहका त्याग करके दुखित होते है । स्वय गिर पडते है अथवा धक्का देकर मुनियोको मारते बडे छोटे व मध्यम ऐसे घरोमें प्रवेश करना चाहिए। है। इधर उधर कूदते है। बाघ, सिंह आदि मास भक्षी प्राणी, बानर दे, भिक्षा/३/१ दरिद्र व धनवान रूप मध्यम दर्जेके घरोकी पंक्ति में वे वगैरह प्राणी राजाके घरमे बन्धनसे यदि मुक्त हो गये होगे तो उनसे मुनि भ्रमण करते है। मुनिका घात होगा और यदि वे भद्र होगे तो उनके इधर-उधर
भिक्षु-(दे० साधु )। भागने पर भी मुनिको बाधा होनेकी सम्भावना है। मनुष्यकृत उपद्रव-मनुष्योसे भी राजाके घर में मुनियोको दुख भोगने पडते है।
भित्तिकर्म-दे० निक्षेप/४ । उनका वर्णन इस प्रकार है-राजाके घरमें तलवर (कोतवाल) म्लेच्छ, भिन्न-Fraction (ध.५/प्र. २८)। दास, दासी वगैरह लोक रहते है। इन लोगोसे राजगृह व्याप्त होनेसे
भिन्न अंकगणित-दे० गणित/II/१ । वहाँ प्रवेश होने में कठिनता पड़ती है। यदि मुनिने राजाके घर में प्रवेश किया तो वहाँ उन्मत्त दास वगैरह उनका उपहास करते है, भिन्नदश पूर्वी-दे० श्रुतकेवली/१ । । उनको निंद्य शब्द बोलते हैं, कोई उनको अन्दर प्रवेश करनेमें मनाई
भिन्न परिकर्माष्टक-दे० गणित/II/१/१० । करते है, कोई उनको उल्लंघन करते है। वहाँ अत्त पुरकी स्त्रियाँ
भिन्न मुहूर्त-कालका प्रमाण विशेष-दे० गणित।।१।४। यदि काम विकारसे पीडित हो गयीं अथवा पुत्रकी इच्छा उनको हो तो मुनिका जबरदस्तीसे उपभोगके लिए अपने घरमे प्रवेश करवाती
भिल्लक सघ-दे० इतिहास/६/६ । है। कोई व्यक्ति राजाके घरके सुवर्ण रत्नादिक चुराकर 'यहाँ मुनि
भीम-१. वर्तमान कालीन नारद थे-दे० शलाका पुरुष/६ । २. आया था उसने चोरी की है' ऐसा दोषारोपण करते है। यह राजा
राक्षस जातिके व्यन्तर देवों का एक भेद-दे० राक्षस । ३. राक्षसोंका मुनियोका भक्त है, ऐसा समझकर दुष्ट लोक मुनि वेष धारणकर
इन्द्र (दे०व्यन्तर/२/१)जिसने सगर चक्रवर्तीके शत्र पूर्ण घनके पुत्र राजाके यहाँ प्रवेश करते है, और वहाँ अनर्थ करते है, जिससे
मेघवाहनको अजितनाथ भगवानकीशरणमें आनेपर लंका दी थी जिससे असली मुनियोंको बाधा पहुँचनेको बहुत सम्भावना रहती है । अर्थात्
राक्षस-वंशकी उत्पत्ति हुई( प. पु/१/१६०) १४. पा. पु /सर्ग/श्लोकरोजा रुष्ट होकर अविवेकी बनकर मुनियोको दुख देता है । अथवा
पूर्वके दूसरे भवमें सोमिल ब्राह्मणके पुत्र थे ( २३/८१) पूर्वभवमें अविवेकी दुष्ट लोक मुनियोको दोष देते है, उनको मारते है। ऐसे
अच्युत स्वर्ग में देव हुए ( ३३/१०५) । वर्तमान भवमें पाण्डका कुन्ती इतर व्यक्तियोसे उत्पन्न हुए अर्थात परसमुत्थ दोषोका वर्णन
रानीसे पुत्र थे (८/१६७-२४/७५) ताऊ भीष्म तथा गुरुद्रोणाचार्य किया। आत्म समुत्थ दोष-अब राजाके घर में प्रवेश करनेसे मुनि
से शिक्षा प्राप्त की। (८/२०४-२१४)। लाथा गृह दहनके पश्चात् स्वयं कौनसे दोष करते है, ऐसे आत्म-समुत्थ दोषोका वर्णन करते
तुण्डी नामक देवीसे नदीमें युद्ध किया विजय प्राप्तकर नदीसे बाहर है-राजगृहमें जाकर आहार शुद्ध है या नहीं इसका शोध नहीं
आये (१२/३४३) फिर पिशाच विद्याधरको हराकर उसकी पुत्री करेगा, देख-भालकर न लाया हुआ आहार ही ग्रहण कर लेता है।
हिडम्बासे विवाह किया, जिससे घुटुक नामक पुत्र उत्पन्न हुआ विकार उत्पन्न करनेवाले पदार्थ सेवन करनेसे इ गाल नामक दोष
(१४/५१-६५)। फिर असुर राक्षस (१४/७५) मनुष्यभक्षी राजा उत्पन्न होता है, अर्थात ऐसे पदार्थ भक्षण करने में लम्पट हो जाता है।
बकको हराया (१४/१३१-१३४ )। कर्ण के मदमस्त हाथीको वशमें दुर्देवसे वहाँके रत्नादिक अमूल्य वस्तु चुरानेके भाव उत्पन्न होकर
किया ( १४/१६८) यक्ष द्वारा गदा प्राप्त की (१४/१०३ ) द्रौपदीपर उसको उठा लेगा। अपने योग्य स्त्रीको देखकर उसमे अनुरक्त होगा।
कीचकके मोहित होनेपर द्रौपदीके वेशमें कीचकको मार डाला राजाका वैभव उसका अन्त पुर, वेश्या वगैरहको देखकर निदान
(१७/२०८ ) फिर कृष्ण व जरासघके युद्ध में दुर्योधनके ६६ भाई तथा करेगा। ऐसे दोषो का सम्भव होगा ऐसे राजाके घर में आहारका त्याग
और भी अनेकोको मारा (२०/२६६ ) । अन्तमें नेमिनाथ भगवान्के करना चाहिए।
समवशरणमें अपने पूर्वभव सुनकर विरक्त हो दीक्षा धारण की दे० भिक्षा/२/६ में भ, आ पहरेदारोंसे युक्त गृहका त्याग करना चाहिए।
( २५/१२-) घोर तपकर अन्तमें दुर्योधनके भाजेकृत उपसर्गको ७. कदाचित् राजपिंडका भी ग्रहण
जीत मोक्ष प्राप्त किया । (२३४५२-१३३ ) । और भी-दे० पाण्डव ।
भीमरथी-भरत आर्य खण्डकी एक नदी-दे० मनुष्य /४। भ आ /वि./४२१/६१४/८ इति दोषसंभवो यत्र तत्र राजपिण्डग्रहणप्रतिषेधा न सर्वत्र प्रकल्प्यते। ग्लानार्थे राजपिण्डोऽपि दुर्लभद्रव्य । आगाढ- भीमसेन-१ पन्नाट संघकी गर्वावलीके अनुसार आप अभयसेन नं, कारणे वा श्रुतस्य व्यवच्छेदो माभूदिति । -(उपरोक्त शीर्षकमें २ के शिष्य तथा जिनसेनके गुरु थे।-दे० इतिहास/७/८ |
बैनेन्द्र सिदान्त कोश
भा०३-३०
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