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परमाणु
वस्तुत... परमाणुका वही प्रवेश आदि है वही मध्य, और नही प्रदेश अन्त है ।
२. परमाणु अविभागी व एकप्रदेशी होता है
त सू./५/११ नाणो । ११ = परमाणुके प्रदेश नहीं होते । ११ । प्र.सा./मू. १३७ •• अपदेसो परमाणू तेण पदेसुग्भवो भणिदो | १३७१ -परमाणु अप्रदेशी है, उसके द्वारा प्रदेशोद्भव कहा है । ( ति प /१/१८) पं.का./सू०० राख्ने सिधा जो तो संविधान परमाणु सो सस्सदो असो एक्को अविभागी मुत्तिभवो ॥७७॥ = सर्व स्कंधोंका अन्तिम भाग उसे परमाणु जानो । वह अविभागी, एक शाश्वत, मूर्तिभव और अशुद्ध है (नसा/२६) (वि.प./१/१८) (इ.पु १०/२२ )
पं.का./मू. ७५... परमाणू पेन अनिभानी 1981 विभागी वह सचमुच ७५ परमाणु है । (मु.आ./२३१); (वि.प./१/१५); ( ध.१३ / ५,१,१३ / गा. २/ १३) ।
३. अप्रदेशी या निरवयवपनेमें हेतु
स.सि./५/११/२७६/६ अणो' 'प्रदेशा न सन्ति ' इति वाक्यशेषः । कुतो न सन्तीति चेद प्रदेशमाप्रत्वात् यथा जाकाशप्रदेशस्यैकस्य प्रदेशभेदाभावादप्रदेशममेनमगोरपि प्रदेशमात्रत्वात देशभेदाभावः किंच ततोऽल्पपरिणामाभावात् । न ह्यणोररुपीयानन्योऽस्ति यतोऽस्य प्रदेशा भिद्यरत् । ( अत स्वयमेवाद्यन्तपरिणामत्वादप्रदेशोऽणु.... यदि ह्यणोरपि प्रदेशा' स्यु'; अणुत्वमस्य न स्यात् प्रदेशप्रचयरूपत्वास, प्रदेशानामेवात्वं प्रसज्येत (रा.बा.) - परमाणुके प्रदेश नहीं होते, यहाँ सन्ति यह मानव शेष है। प्रश्न-परमाणुके प्रदेश क्यों नहीं होते ? उत्तर-क्योंकि वह स्वयं एक प्रदेश मात्र है। जिस प्रकार एक आकाश प्रदेश में प्रदेशभेद न होनेसे वह अप्रदेशी माना गया है उसी प्रकार अणु स्वयं एक प्रदेश रूप है इसलिए उसमें प्रदेश भेद नहीं होता। दूसरे अणुसे अल्प परिमाण नहीं पाया जाता। ऐसी कोई अन्य वस्तु नहीं जो परमाणुसे छोटी हो जिससे इसके प्रदेश भेदको प्राप्त होवें । ( अतः स्वयमेव आदि और अन्त होनेसे परमाणु अप्रदेशी है । यदि अणुके भी प्रदेशप्रचय हो तो फिर वह अणु ही नहीं कहा जायेगा, किन्तु उसके प्रदेश अणु कहे जायेंगे। (राजा./५/११/ १-३/४/२९) ।
ह. पु /७/३४-३५ नाशङ्कयानार्थतत्त्वज्ञेर्न भोंशानां समन्ततः । षट्केन युगपद्योगात्परमाणो षडराता | १४ | स्वल्पाका षडंशाश्च परमाणुश्च संहता । सप्तांशाः स्यु' कुतस्तु स्यात्परमाणो षडं शता । ३५। - तत्त्वज्ञोंके द्वारा यह आशंका नहीं होनी चाहिए कि सब ओरसे आकाशके छह अंशोंके साथ सम्बन्ध होनेसे परमाणुमें षडराता है | ३४ | क्योंकि ऐसा माननेवर आकाशके छोटे-छोटे वह वंश और एक परमायु सभ मिलकर मादा हो जाते हैं। अब परमाणु पहुंशता कैसे हो सकती है |३५|
घ. १३/५.२.२२/२३/२ तास सावयवो परमाणुसद्दाहवादी पुत्रअवयवभादो उवलंभे या व सो परमा भिज्न माणभेदपरं ततादो । ण च अवयवी चेव अवयवो होदि, अण्णपदस्थेत विमा महम्बीहिसमासापुववन्तोदो मिनासंबंध णिबंधण इं- पश्चयाणुववत्तीदो वा । ण च परमाणुस्स उद्घाधीमन्मभागाश्वयवसमत्थि, रोहित पुचदपरमास्स ववयविसणिदस्स अभावादो । एदम्हि गए अवलंबिज्जमाणे सिद्धं परमाणुस्स णिरवयवतं । १. परमाणु सावयव तो हो नहीं सकता, क्योंकि परमाणु शब्दके वाच्यरूप उसके अवयव पृथक् पृथक् नहीं पाये जाते । २. यदि उसके पृथक् पृथक् अवयव माने जाते हैं तो वह परमाणु नहीं ठहरता क्योंकि जिसने भेद होने चाहिए उनके अन्तको
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२. परमाणु सावयव व निरवयवपनेकी सिद्धि
वह अभी प्राप्त नहीं हुआ है । ३. यदि कहा जाय कि अवयबीको ही हम अवयव मान लेगे । सो भी कहना ठीक नहीं है, क्योंकि एक तो बहुव्रीहि समास अन्यपदार्थ प्रधान होता है, कारण कि उसके बिना वह बन नही सकता। दूसरे सम्बन्ध के बिना सम्बन्धका कारणभूत 'णिनि' प्रत्यय भी नहीं बन सकता । ४ यदि कहा जाय कि परमाणु ऊर्ध्व भाग अधोभाग और मध्य भाग रूपसे अवयव बन जायेगे। सो भी बात नही है, क्योकि इन भागो के अतिरिक्त अवयवी सज्ञावाले परमाणुका अभाव है। इस प्रकार इस नयके अवलम्बन करनेपर परमाणु निरवयव है, यह बात सिद्ध होती है ।
ध. १४/५,६,७७/५६/१ ( परमाणु णिरवयवत्तादो ( जे जस्स कज्जस्स आरभया परमाणू ते तस्स अवयवा होंति । तदारद्धकज्ज पि अवयवी होदि । न च परमाणू अण्णेहितो णिष्पज्जदि, तस्स आरंभयाणमण्णेसिमभावादी भावे याण एसो परमाणुः एतो हुमाणमणीसि संभवादो। ण च एगसंखं कियम्मि परमाणुम्मि ' विदियादिसंखा अत्थि एक्कस्स तुग्भावविरोहादो। किं च जदि परमाणुस्स अवयवो अत्थि तो परमाणुणा अवयविणा अभावप्यसंगादो। पा च एवं, कारणाभावेण सललज्जाणं पि अभावप्पसंगादो। णच कप्पियसरूवा अवयवा होति, अव्यवस्थापसंगादो । तम्हा परमाणुणा निरवयवेण हो वियपरमाहिती सकस अप्पत्ती, णिरवयमाणं पि परमापूर्ण समय समागमेण धूलकज्जुपीए विरोड़ासिद्धीदो । ५. परमाणु निरवयव होता है। जो परमाणु जिस कार्य के आरम्भक होते है वे उसके अवयव है, उनके द्वारा आरम्भ किया गया कार्य अवयवी है । ६. परमाणु अन्यसे उत्पन्न होता है यह कहना ठीक नही है, क्योकि उसके आरम्भक अन्य पदार्थ नहीं पाये जाते । और यदि उसके आरम्भक अन्य पदार्थ होते है ऐसा माना जाता है। तो वह परमाणु नहीं ठहरता, क्योकि इस तरह इससे भी सूक्ष्म अन्य पदार्थोंका सद्भाव सिद्ध होता है। ७. एक सख्यावाले परमाणु द्वितीयादि संख्या होती है यह कहना ठीक नहीं है. क्योकि एकको दो रूप मानने में विरोध जाता है। यदि परमाणुके अनयन होते है ऐसा माना जाय तो परमाणुको अवयवी होना चाहिए। परन्तु ऐसा है नहीं, क्योकि अवयव विभाग द्वारा अवयव संयोगका विनाश होनेपर परमाणुका अभाव प्राप्त होता है। पर ऐसा है नहीं, क्योकि कारणका अभाव होनेसे सब स्थूल कार्योंका भी अभाव प्राप्त होता है । ६. परमाणुके कल्पित रूप अवयव होते है, यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि इस तरह माननेपर अव्यवस्था प्राप्त होती है। इसलिए परमाणुको निरवयव होना चाहिए। १०. निरवयव परमाणुओंसे स्थूल कार्योंकी उत्पत्ति नहीं बनेगी यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि निश्वयन परमाणुओंके सर्वात्मना समागमसे स्थूल कार्यकी उत्पत्ति होनेमें कोई विरोध नहीं आता ।
४. परमाणुका आकार
म.पु / २४/१४८ अणव परिमण्डला १९४८ होते हैं।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
= वे
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आचारसार/३/१२/२४ अणुश्च गतोऽभेद्यामयत्रः प्रचयशक्तिः । कायश्य स्कन्धभेदोत्थचतुरस्रस्त्वतीन्द्रियः | १३ | व्योमामूर्ते स्थितं नित्यं चतुर समन्धनम् भावारगाहहेतुश्चानन्तानन्तप्रवेशक ॥२४1अगल है, अमेध है, न है की जिसे युक्त होनेके कारण काया है, स्कन्धके भेवसे होता है। पौकोर और अतीन्द्रिय है | १३ | आकाश अमूर्त है, नित्य अवस्थित है, चौकोर अवगाह देने में हेतु है, और अनन्तानन्त प्रदेशी है | २४| ( तात्पर्य यह है कि सर्वत महान् आकाश और सर्वतः लघु परमाणु इन दोनोंका आकार चौकोर रूपसे समान है )
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'परमाणु गोल
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