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भाव निक्षेप
भाव निक्षेप दे० निक्षेप
भाव निर्जरा - दे० निर्जरा / १
भाव परमाणु - ३० परमाणु
भाव परिवर्तन रूप संसार - दे० संसार / २ ।
भाव पाहुड़ आ. कुन्दकुन्द (ई. १२०-१७९) कृत. जीवशुभ अशुभ व शुद्ध भाव प्ररूपक, १६५ प्राकृत गाथाओ में निबद्ध ग्रन्थ है । इसपर आ. श्रुतसागर (ई. १४८१-१४६६) कृत संस्कृत टोका और पं. जयचन्द छाबडा (ई. १८६७) कृत भाषा वचनिका उपलब्ध है। (eft./9/39)
भाव बंध२० बंधार
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भाव मल दे० मल । भाव मोक्ष दे० मो भाव लिंग/ भावलेयादे०/१
भाव शुद्धि दे० शुद्धि
भाव श्रुतज्ञान[०१.२
भाव संग्रह - १. आ. देवसेन द्वारा वि. १००५ में रचित ७०१ प्राकृत गाथा प्रमाण, मिथ्यात्व प्ररूपक ग्रन्थ (जे /१/४१७, ४२९); (ती /२/ ३६६ ) । २. वामदेव (वि. श. १४ उत्तरार्ध) कृत ७८२ संस्कृत श्लोक प्रमाण, उपयु युक्त नं १ को छाया मात्र (जै./१/४२६) ।
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भाव संवर
समर / १
भाव सत्य - दे० सत्य / १ । भावसिंह
व मानसिह दोनों सहयोगी थे कथाकोषकी रचना करते हुए अधूरा छोड़कर ही स्वर्ग सिधार गये । शेष भाग वि. १७६२ में जीवराजजीने पूरा किया था। समय - १७६२ (हिं. जैसा इ/१७८ कामता ) ।
भावसेन त्रैविध्य - मूल संघ सेनगण के नैयायिक विद्वान् आचार्य । कृतियें - प्रमाप्रमेय, कथाविचार, शाकटायन व्याकरण टीका, कातन्त्र रूपमाला, न्याय सूर्याबली, मुक्ति भुक्ति विचार, न्यायदीपिका, सिद्धान्तसार, सप्तपदार्थी टीका । समय ई. श. १३ का मध्य (ती /३/२५६, २५६) भावार्थ-आगम का अर्थ करने की विधि। (वे आगम ज्ञान / ३) । भावार्थ दीपिका - पं शिवजित (वि०१८१८) कृत भगवती आराधनाकी भाषा टीका-दे० भगवती आराधना । भावास्रव दे० आस्रव / ११
भावि नैगम नय दे० नव / 111/२ भावेंद्रिय - ३० इन्द्रिय
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भाव्य भावक भाव - दे० संबंध | भाषा साधारण बोलचालको भाषा कहते है । मनुष्योंकी भाषा साक्षरी तथा पशु पक्षियोकी निरक्षरी होती है। इसी प्रकार आमन्त्रणी आक्षेपिणी आदि के भेदसे भी उसके अनेक भेद है ।
१. भाषा सामान्यके भेद
स. सि. / ५ / २४/२६४/१२ शब्दों द्विविधा भाषालक्षणो विपरीतश्चेति । भाषालक्षणो द्विविध साक्षरोऽनक्षरश्चेति । =भाषा रूप शब्द और अभाषा शब्द इस प्रकार शब्दोके दो भेद है । भाषात्मक शब्द दो
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(रा. वा./४/२४/२/४०५/२३)
प्रकार है-साक्षर और अनक्षर (ध. १३/५.२.२६/२२९/९); (पं. काता, . ७६/१३४/२); (सं. टी./१६/१२/२ गो. जी जी प्र./३१५/६०३/२४) । ;; २. अक्षरात्मक भाषाके भेद व लक्षण
स. सि./५/२४/२६५/१ अक्षरीकृतः शास्त्राभिव्यञ्जकः संस्कृतविपरीत. भेदादार्यम्लेच्छव्यवहारहेतुः । - जिसमे शास्त्र रचे जाते है. जिसमें आर्य और म्लेच्छोंका व्यवहार चलता है ऐसे संस्कृत शब्द और इससे विपरीत शब्द ये सब साक्षर शब्द है । ( रा. वा /५/२४/३/४०८५ | २४) (पं.का./ता.वृ./७६/१३५/६ ) ।
भाषा
ध. १३/१.२.२६/२२१/९९ अक्खरगया अनुनादिसदिय पज्जतभासा । सा दुविहा - भासा कुभासा चेदि । तत्थ कुमासाओ कीरपार सिय- सिंघल वव्वरियादीण विणिग्गयाओ सत्तसयभेदभिण्णाओ | भासाओ पुण अट्ठारस हवंति तिकुरुक- तिलाढ तिमरहट्टतिमाल- तिगड- सिमानदभासभेदेण । उपपासे रहित इन्द्रियोंबाले संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवोकी भाषा अक्षरात्मक भाषा है। वह दो प्रकारकी है--भाषा और कुमाषा उनमें कुभाषाएँ काश्मीर देशवासी, पारसीक, सिहत और वर्बरिक आदि जनो के ( सुखसे) निकली हुई सात सौ भेदोंमें विभक्त है । परन्तु भाषाऍ तीन कुरुक ( कर्णाढ) भाषाओं, तीन लाढ भाषाओं, तीन मरहठा ( गुर्जर ) भाषाओं, तीन मालन भाषाओं, तीन गौड भाषाओं, और तीन भाग भाषाओंके भेदसे अठारह होती है (पं.का./ता.वृ./ मंगलाचरण / पृ. ४/५ ) ।
प्र. सेटी १६/५२/१ त्रध्यारामक संस्कृतप्राकृपशाचादिभाषाभेदेनार्थमनुष्यादिव्यवहारहेतुर्यहुधा अक्षरात्मक भाषा संस्कृत प्राकृत और उनके अपभ्रंश रूप पैशाची आदि भाषाओंके भेदसे आर्य व म्लेच्छ मनुष्योके व्यवहार के कारण अनेक प्रकारकी है।
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३. अनक्षरात्मक भाषाके भेद व लक्षण
स.सि / २४/२६५/२ अनक्षरात्मको होन्द्रियादीनामविज्ञानस्वरूपप्रतिपादन हेतु' | जिससे उनके सातिशयज्ञान का पता चलता है। ऐसे द्वि इन्द्रिय आदि जीवीके शब्द अनक्षरात्मक शब्द है । (रा. बा./५/२४/२/४०५/२२) ।
ध. १३/५,५,२६/२२१/१० तत्थ अणक्खरगया बीइंदिय पहुडि जान असणिपंचिदिया मुहसमुब्भुदा बालमृअसणिप चिदियभासा च । - द्वीन्द्रिय से लेकर असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवोके मुखसे उत्पन्न हुई भाषा तथा बालक और मुक संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवोकी भाषा भी अनक्षरात्मक भाषा है । पं.का./ता.वृ./७१/१२४/७ अनक्षरात्मको द्वन्द्रयादिशब्दरूपी दिव्यध्वनिरूपश्च । अनक्षरात्मक शब्द द्वीन्द्रियादिके शब्दरूप और दिव्यध्वनि रूप होते हैं ।
४. दुर्भाषाके भेद
ज्ञा./१८/६ पर उद्धृत - कर्कशा परुषा कवी निष्ठुरा परको पिनी । छेद्याहकुरा मध्यकुशातिमानिनी भयकरी भूतहिसाकरी चेति दुर्भा दशधा त्यजेत् । 121 = कर्कश, परुष, कटु, निष्ठुर, परकोपी, छेद्यकुरा, मध्यकृशा, अतिमानिनी, भयंकरी, और जीवो की हिसा करनेबाला है. इनको न. ५ /१/१६६-१६६)। ५. आमंत्रणी आदि भाषा निर्देश
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
भ. आ / मू. वि / १९१४-१९१६ / १११३ आमतणि आणवणी जायणि संपुच्छणीय पण्णवणी । पच्चक्खाणी भासा भासा इच्छालोमा य | ११६५ | संसयवयणी य तहा असच्चमोसा य अट्ठमी भागा। नवमी अण खरगदा असच्चमोसा हवदि णेया | ११६६ । टी० - आमतणी
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