________________
भवन
भावन लोक
असुरों के जातरिक नौ पकार भवन वासियों के ७३८ लाख भवन
तथा राक्षस के अतिरिक्त ७ प्रकार व्यन्तर देवों के भवन
११ चित्रा १००० येो०
वैय००० यो
लोहियाक १०००।
असार ल्लि १०००० गोदक १०००
सवाल ९००० योन
यो
Jain Education International
७ ज्योतिरस १०००
अजन १००००
जनमूल 100 यो०)
अंक
स्फटिक १००० यो० चन्दन
१३ वर्चगत
16. बहल
शैल १००० यो० पाषाण 100 असुरो के ३४००० भन तथा राधासोकभव
नरक के
ऊपर
दक्षिण
foco
उत्तर
4
२१०
४. भावन लोक
ति //१३१-१३३ का भावार्थ (शोक विनिश्चयके अनुसार कुटवर दीपके कुण्ड पर्वतपरकेर्यादाओमे १६ टोबर १६ नागेन्द्र रहते है ।१३१-१३३। )
याजन
१६००० योजन
१८०००० योजन
२. भवनवासी देवोंके निवास स्थानोंके भेद व लक्षण ति, प / ३ / २२-२३ भवणा भरणपुराणि आवासा अ सुराग होदि तिविहा णं रणपहार भवणा दीवसमुद्दाण उवरि भवणपुरा | २२ | दहसेलदुमादीणं रम्माण उवरि होति आवासा । णागादीण केसि तियणिलया भवणमेकमसुराणं |२३| भवनवासी देवोके निवास स्थान भवन, भवनपुर और आवासके भेदसे तीन प्रकार होते है। इनमें से रत्नप्रभा पृथिवीमे स्थित निवासस्थानोको भवन, द्वीप समुद्रोके ऊपर स्थित निवासस्थानोको भवनपुर, और तालाब, पर्वत और वृक्षादिके ऊपर स्थित निवासस्थानोको आवास कहते है। नागकुमारादिक देवोमेंसे किन्हींके तो भवन, भवनपुर और आवास तीनो ही तरहके निवास स्थान होते है, परन्तु असुरकुमारोके केवल एक भवन रूप ही निवासस्थान होते है ।
३. मध्य लोकमें मवनवासियोंका निवास पि./४/२०१२. २९२६ का भावार्थ (जम्बुद्वीपके मित्र देवकुरु व उत्तरकुरुमें स्थित दो प्रमक पर्वतोके उत्तर भागमे सीता नदीके दोनो ओर स्थित निषेध, देवकुरु, सूर, सुलस, विद्य ुत् इन पाँचो नामोके युगलोरूप १० द्रहोमे उन उन नामवाले नागकुमार देवोके निवासस्थान (आवास) है । २०६२-२१२६ । )
ति ५/४/२७८०-२७८२ का भावार्थ ( मानुषोत्तर पर्वतवर ईशान दिशा के नाभि पर हनुमा नामक देव और भकूट धा भवनेन्द्र रहता है | २७ १० वायव्य दिशाके वेलम्ब नामक और नैऋत्य दिशा के सर्वशन पर भारी रहता है २००२ अग्नि दिशाके तपनीय नामक कूटपर स्वातिदेव और रत्नकूटपर वेणु नामक भवनेन्द्र रहता है | २७० )
४. खर पंक भागमें स्थित भवनोंकी संख्या
ति प /३/११-१२, २०-२१), ( रा. वा /४/१०/८/२१६/२६ ); (ज प / ११ / १२४ - १२७ ) ।
ल लाख
देवोका नाम
असुरकुमार
नागकुमार सुपर्णकुमार
झीपकुमार
उदधिकुमार
स्तनित कुमार विद्य ुत कुमार
दिस्कुमार
अग्निकुमार
वायुकुमार
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
उत्तरेन्द्र
For Private & Personal Use Only
३४ ल
४४ ल
३८ ल
४० ल
५० ल
भवनोकी सख्या
दक्षिणे
३० ल
४० ल
३४ ल ३६ ल
59
४६ ल
कुल योग
***
६४ ल
८४ ल
७२ ल ७६ ल
५. भवनोंकी बनावट व विस्तार आदि
ति. प /३/२५-६१ का भावार्थ ( ये सब देवो व इन्द्रोके भवन समचतुकोण तथा वज्रमय द्वारोसे शोभायमान है | २५| ये भवन बाहल्य में ३०० योजन और विस्तार में संख्यात व असख्यात योजन प्रमाण है १२६-२७| भवनोकी चारो दिशाओ में उपदिष्ट योजन प्रमाण जाकर एक-एक दिव्यवेदी ( परकोट ) है |२८| इन वेदियोकी ऊँचाई दो कोस और विस्तार ५०० धनुष प्रमाण है |२| गोपुर द्वारोसे युक्त और उपरिम भागमें जिनमन्दिरोसे सहित के वेदियों हैं |३०| वेदियोके बाह्य भागो में चैत्य वृक्षोसे सहित और अपने नाना वृक्षीसे युक्त पवित्र अशोकवन, सप्तच्छदवन, चंपकवन और आम्रवन स्थित है । ३१ । इन वेदियो के भागमें सर्वत्र १०० योजन ऊँचे वेत्रासन के आकार बहुमध्य रत्नमय महाकूट स्थित है |४०| प्रत्येक कूटपर एक-एक जिन भवन है | ४३ | कूटोके चारों तरफ भवनवासी देवीके प्रासाद है । ५६ । सब भवन सात, आठ, नौ व दश इत्यादि भूमियों (मजिलो ) से भूषित• • जनता भूषणाला मैथुनाला जगाला (परिगृह और यन्त्रशाला ( सहित ) -सामान्यगृह, गर्भगृह, कदलीगृह, चित्रगृह, आसनगृह, नादगृह, और लतागृह इत्यादि गृहविशेषो से सहित.. पुष्करिणी, वापी और कूप इनके समूह से युक्त गवाक्ष और कपाटों से सुशोभित नाना प्रकारकी पुत्तलिकाओसे सहित अनादिनिधन
१५७ ६ १६
4. प्रत्येक भवन में देवों को वस्ती
वि. २६२७
भदेव सतिस २६ संखातीदा सेयं छत्तीससुरा य होदि संखेज्जा । 1२७ = सख्यात योजन विस्तारवाले भवनो मे और शेष असंख्यात योजन विस्तारवाले भवन में असंख्यात भवनवासी देव रहते है ।
: : : : : &
६६ ल
७७२ ल
www.jainelibrary.org