________________
ब्रह्मचर्य
१९२
३. अब्रह्मका निषेध व ब्रह्मचर्यको प्रधानता
यह एक पुरुषके सामने कहती है कि तुम्हे छोडकर तुम्हारे सिवाय मेरा स्वामी कोई नही है। इसी प्रकार वह अन्यसे भी कहती है और अनेक खुशामदी बाते करती है ।१०। मानी, कुलीन, और शूरवीर भी मनुष्य वेश्यामें आसक्त होनेसे नीच पुरुषोंकी दासताको करता । है, और इस प्रकार वह कामान्ध होकर वेश्याके द्वारा किये गये अपमानोको सहता है।६१। जो दोष मद्य-मांसके सेवन में होते हैं, वे सब दोष वेश्यागमन में भी होते है। इसलिए वह मद्य और मास सेवनके पापको तो प्राप्त होता ही है, किन्तु वेश्या-सेवनके विशेष अधर्मको भी नियमसे प्राप्त होता है ।१२। वेश्या सेवन जनित पापसे यह जीव घोर ससार सागरमे भयानक दुखौंको प्राप्त होता है, इसलिए मन, बचन और कायसे वेश्याका सर्वथा त्याग करना चाहिए ।६३। न्ला स./२/१२६-१३२ पण्यस्त्री तु प्रसिद्धा या वित्तार्थ सेवते नरम् ।
तन्नाम दारिका दासी वेश्या पत्तननायिका 1१२६॥ तत्त्याग सर्वत श्रेयात् श्रेयोऽर्थ यता नृणाम् । मद्य-मासादि दोषान्वै नि शेषान् त्यवतुमिच्छताम् ।१३०। आस्ता तत्सङ्गमे दोषो दुर्गती पतनं नृणाम् । इहैव नरकं नूनं वेश्यासक्तचेतसाम् ।१३१। उक्तं च या. खादन्ति पल पिबन्ति च सुरा, जल्पन्ति मिथ्यावच । स्निह्यन्ति द्रविणार्थमेव विदधत्यर्थ प्रतिष्ठाक्षतिम् । नीचानामपि दूरवक्रमनसः पापारिमका. कुर्वते, लालापानमनिशं न नरकं वेश्या विहायापरम् । रजकशिलासहशीभि कुक्कुरकर्षरसमानचरिताभि । वेश्याभिर्यदि संग कृतमिव परलोकवार्ताभि । प्रसिद्ध बहुभिस्तस्या प्राप्ता दुःखपरंपराः। श्रेष्ठिना चारुदत्तेन विख्यातेन यथा परा. ॥ ..जो स्त्री केवल धनके लिए पुरुषका सेवन करती है, उसको वेश्या कहते है, ऐसी वेश्याएँ ससारमें प्रसिद्ध हैं, उन वेश्याओंको दारिका, दामी, वेश्या वा नगरनायिका आदि नामोंसे पुकारते है ।१२६। जो मनुष्य मद्य, मास आदिके दोषोको त्यागकर अपने आत्माका कल्याण करना चाहते है, उनको वेश्या सेवनका त्याग करना चाहिए ।१३०॥ वेश्या सेवनसे नरकादिक दुर्गतियोमें पडना पड़ता है। और इस लोकमें भी नरकके सदृश यातनाएँ व दुख भोगने पड़ते है ।१३१। कहा भी है-यह पापिनी वेश्या मांस खाती है, शराब पीती है, झूठ बोलती है, धनके 'लिए प्रेम करती है, अपने धन और प्रतिष्ठाका नाश करती है और कुटिन मनसे वा बिना मनके नीच लोगोंकी लारको रात-दिन चाटती है, इसलिए वेश्याको छोडकर ससारमें कोई नरक नहीं है। वेश्या तो धोबीको शिलाके सदृश है, जिसपर आकर ऊँच-नीच अनेक पुरुषों के घृणितसे घृणित और अत्यन्त निन्दनीय ऐसे वीर्य वा लार आदि मन आकर बहते है, अथवा वह वेश्या कुत्ते के मुंहमे लगे हुए हडके खप्परके समान आचरण करती है ऐसी वेश्याके साथ जो पुरुष समागम करते है, के साथ-साथ परलोककी बातचीत भी अवश्य कर लेते हैं अर्थात् वह नरक अवश्य जाते है। इस वेश्या सेवनमे आसक्त जाबोने बहुत दु.ख जन्म-जन्मान्तर तक पाये है। जैसे अत्यन्त प्रसिद्ध सेठ चारुदत्तने इस वेश्या सेवनसे ही अनेक दुख पाये थे।१३२१
२. परस्त्री निषेध कुरल/१५/१० परमन्यत्कृत पापमपराधोऽपि वा घरम् । पर न साध्वी स्वसले कांक्षिता प्रतिवे शनी ।१०। - तुम कोई भी अपराध और दूसरा केसा भी पाप क्यो न क्रो पर तुम्हारे पक्षमें यही श्रेयस्कर है
कि तुम पडोसोको स्त्र से सदा दूर रहो। वसु श्रा /गा, न णिस्ससइ रुयइ गायइणियब सिर हणइ मयिले पड़द । परमहिलमलभमाणो असप्पलाव पि जंपेहा ।११३।अह भुजइ परमहिल अणियमाण बलाधरेऊण । ।११८। अह का वि पाव बहुला असई णिण्णासिऊग णियसीलं । सयमेव पच्छियाओ उवरोहवसेण अप्पाण ।११। जइ देड जह वि तत्थ सुण्णहर वंडदेउनयमझम्मि। सच्चित्ते भपभोओ साकव कि तत्थ पाउणइ ।१२० सोऊण कि पि सह सहसा
परिवेवमाणसव्वंगो। तहुक्कड़ पलाइ पखलई चउद्दिस णियइ भयभीओ।१२१॥ जछ पुणकेण वि दीसइ णिज्जइ तो बधिऊण णिवगेहं। चोरस्स णिग्गहं सो तत्थ वि पाउणइ सविसेसं ।१२२। परलोयम्मि अणंत दुक्रव पाउणइ इह भव समुद्दम्मि। परयारा परमहिला तम्हा तिविहेण व जिज्जा ।१२४। -पर स्त्री लम्पट पुरुष जब अभिलषित परमहिलाको नहीं पाता है, तब वह दीर्घ निश्वास छोडता है, रोता है, कभी गाता है, कभी सिरको फोडता है और कभी भूतल पर गिरता है और असत्प्रलाप भी करता है ।११३। नहीं चाहनेवाली किसी पर-महिलाको जबर्दस्ती पकडकर भोगता है। ।१९। यदि कोई पापिनी दुराचारिणी अपने शीलको नाश करके उपरोधके वशसे कामी पुरुषके पास स्वय उपस्थित भी हो जाय, और अपने आपको सौप भी देवे ।११६। तो भी उस शून्य गृह या खंडित देवकुलके भीतर रमण करता हुआ वह अपने चित्तमें भयभीत होनेसे वहाँपर क्या मुख पा सकता है ।१२०। बहॉपर कुछ भी जरा-सा शब्द सुनकर सहसा थर-थर काँपता हुआ इधर-उधर छिपता है, भागता है, गिरता है और भयभीत हो चारों दिशाओंको देखता है ।१२। इसपर यदि कोई देख लेता है तो वह बाँधकर राजदरबारमें ले जाया जाता है और वहाँपर वह चोरसे भी अधिक दण्डको पाता है ।१२२॥ पर स्त्री-लम्पटी परलोकमें इस ससार समुद्रके भीतर अनन्त दुखको पाता है। इसलिए परिगृहीत या अपरिगृहीत परस्त्रियोको मन, वचन कायमे त्याग करना चाहिए।१२४। ला. सं./२/२०७ एतत्सर्व परिज्ञाय स्वानुभूमिसमक्षत । पराङ्गनाम्म नादेया बुद्धि(धनशालिभि. ।२०७१ - अपने अनुभव और प्रत्यक्षसे इन सब स्त्रियोके भेदोंको (दे० स्त्री) समझकर बुद्धिमान पुरुषों को परस्त्रियों के सेवन करने में अपनी बुद्धि कभी नहीं लगानी चाहिए ।२०७१ (ला सं 11/६०)।
३. दुराचारिणी स्त्रीका निषेध सा ध/३/१० भजन मद्यादि भाज* स्त्री-स्तारशे सह ससृजन् । भुक्त्यादौ चैति साकोर्ति मद्यादि विरतिक्षतिम् ।१०। मद्य, मांस आदिको खानेवाली स्त्रियोको सेवन करनेवाला और भोजनादिमें मद्यादिके सेवन करनेवाले पुरुषों के साथ ससर्ग करनेवाला बतधारी पुरुष निन्दा सहित मद्य-त्याग आदि मूलगुणोकी हानिको प्राप्त होता है ।१०।
४. स्त्रीके लिए परपुरुषादिका निषेध भ आ./मू /EM४ जह सोलरक्वयाण पुरिसाणं णिदिदाओ महिलाओ।
तह सोलरक्वयाणं महिलाण णिदिदापुरिसा।६६४! == शीलका रक्षण करनेवाले पुरुषको स्त्री जैसे निन्दनीय अर्थात् त्याग करने योग्य है, वैसे शीनका रक्षण करनेवाली स्त्रियोको भी पुरुष निन्दनीय अर्थात त्याज्य है।
५. अब्रह्म सेवनमें दोष भ आ /मू /१२२ अवि य वहो जीवाणं मेहूणसेवाए होइ बहुगाणं । तिलणालीए तत्ता सलायवेसो य जोणीए।१२२॥ -मैथुन सेवन करनेसे वह अनेक जीव का वध करता है। जैसे तिलकी फल्ली में अग्निसे तपी हुई सलई प्रविष्ट होनेसे सब तिन जलकर खाक होते है वैसे मैथुन सेवन करते समय योनिमें उत्पन्न हुए जीवोका नाश होता है ।२२। (विशेष विस्तार दे० भ आ./मू /८६०-१११७), (पु.सि /उ./१०८) । स्या मं/२३/२७६/२५ र उद्धृत मेहुण सणारूतो णवलक्ख हणेइ मुहमजीबाण । केवलिणा पण्णत्ता सहहि अव्वा सया काल ।३। इत्थीजणीए संभवति बेइ दिया उजे जीवा। इको व दो व तिण्णि व लबखपत्त उ उक्कोस ।४। पुरिमेण सह गयाए तेसि जीवाण होइ उद्दयण । वेणुगदिट्ठ तेण तत्तायसन्लागणाएण ।। पचि दिया मणुस्सा
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org