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बिबसार
वृहत्त्रयम
राग है, और कर्मकै क्षयका कारण है, हाट है ऐसी दीक्षा और दिक्षा यो सा अ14/८२ बुद्धिमक्षाश्रया । -जो इन्द्रियोंके अवलम्बनसे हो देता है। ऐसा जिनबिम्ब अदि जिनेन्द्र भगवानका प्रतिविम्ब वह बुद्धि है। स्वरूप आचार्य का स्वरूप है।
स म /1८८/३० बुद्धिशब्देन ज्ञानमुच्यते । बुद्धिका अर्थ ज्ञान है । निवसार-मगधराज श्रेणिकका अपर नाम। समय-ई.पू. ६०१. न्या. सू./मू /१/१/१५/२० बुद्धिरुपल धिनिमित्यनयान्तरम् । = बुद्धि, १५२ । (दे. इतिहास/३/४) ।
___ उपलब्धि और ज्ञान इनका एक ही अर्थ है । केवल नामका भेद है। बिल-नारकियोंके जन्म स्थान । दे० नरक ५/३ ।
बुद्धिऋद्धि-दे० ऋद्धि/२। बाज-१ श्रीजरूप बनस्पतिके भेद व लक्षण-दे० वनरपति/१ । बुद्धिकीति-अपरनाम महात्मा बुद्ध था-दे० बुद्ध । (द सा./मू । २ श्रीजोधा भक्ष्य भक्ष्य विचार-दे०सचित्त/५। ३. श्रीज में जीबका
___७.८), (द स /प्रशस्ति २६/नाथूराम)। जन्म होने सम्बन्धी नियम--दे० जन्म/२।
बुद्धिकूट-रुक्मि पर्वतस्थ एक कूट-दे० लोक/७ । बीजगणित--AIKOI (ज प/प्र.१०७), (ध./५/प्र २८)। बुद्धिदेवी-रुक्मि पर्वतस्थ महापुण्डरीक हद व बुद्धिकूट की स्वामिनी बीजपद--दे० पद।
देवी-दे० लोक/3/8,५/४। बीजबुद्धिऋद्धि--- दे० ऋद्धि/२॥
बुद्धिल-दे० बुद्धिलिग। बीजमानप्रमाण-दे० प्रमाण/५ ।
बुद्धिलिंग-भूतावतारकी पट्टाबली के अनुसार अपका अपरनाम बोजसम्यक्त्व-दे० सम्यग्दर्शन/1१।
बुद्विल था। आप भद्रबाहु श्रुतकेवलीके पश्चात नवे ११ अगव १०
पूर्वधारी हुए है । समय - वो. नि. २६५-३१५ । ई पू २३२-२१२)बीजा-आर्यखण्ड की नदी-दे० मनुष्य/४।
दृष्टि नं. ३ के अनुसार बी नि. ३५५-३७ ।-दे० इतिहास/४/४ । बीजाक्षर-दे० अक्षर ।
बुद्धेशभवनव्याख्यान-आ विद्यानन्दि ( ई ७८५-८४०) कृत बीथी--Orbit ( ज ५/प्र.१०७ ) ।
सस्कृत भाषाबद्ध न्याय विषयक ग्रन्थ । बोसाय-ल.सा./भाषा/२२८/२०५/७ जिन (कर्मनि) की बोस बुध--१ एक ग्रह-दे० 'ग्रह , २ बुध ग्रहका लोक्य अवस्थान-दे० कोडाकोडी (सागर ) उत्कृष्ट स्थिति है, ऐसे नाम गोत्र तिनि । ज्योतिष/२।३ स्या म/२-/२५८/२६ बुध्यन्ते यथावरियत वस्तुबोसिय कहिए।
तन्वं सारेतरजिषमविभागविचारणया इति बुधा । -प्रथावस्थित
वस्तु तत्त्वको सार व असारके विषय विभागकी विचारणाके द्वारा जो बुद्ध-१. बुद्ध सामान्य का लक्षण
जानते है, वे बुध है। प. प्र/टी/१/१६/२१/५ बुद्धोऽनन्तज्ञानादिचतुष्टयसहित इति । केवल
बुधजन आप जयपुर निवासो खण्डेलवाल जैन पण्डित थे। असली ज्ञानादि अनन्त चतुष्टय महित होनेसे अन्मा बुद्ध है। (द्र.स /
नाम वृद्धिचन्द । अपर नाम बुधजन, विधिचन्द । कृतियें-तत्त्वार्थ चूलिका/२८/८०१)। भा पा/टी/१४६/२६३/१४ बुद्धचत सर्व जातोति बुद्ध । -बुद्धिके
बोध (वि. १८७१), बुधजन सतसई (वि १८७६); पञ्चास्तिकाय
भाषा (वि. १८११) बुधजन विलास (वि. १८९२); योगसार भाषा; द्वारा सब कुछ जानता है, इसलिए बुद्ध है ।
पदसंग्रह । समय-वि. १८७१-१८१२ (ई. १८१४-१८३५) । २ प्रत्येकबुद्ध व बोधितबुद्ध के लक्षण
(ती./४/२६८)। स. मि /१०/१/७२/8 स्वशक्तिपरोपदेशनिमित्तज्ञानभेदात् प्रत्येकबुद्ध- बुधजनविलास-बुधजन द्वारा (ई. १८३५ ) मे रचित भाषा बाधितविकासपा । अपनी शक्तिरूप निमित्तसे होनेवाले ज्ञानके भेद- पदस ग्रह । (ती./४/२६८)। से प्रत्येक बुद होते है। और परापदेशरूप निमित्तसे होनेवाले ज्ञानके
बुधजनसतसई-प. बुधजन द्वारा (३,१८२२) में रचित भाषा भेदसे बाधित बुद्ध हाते है । (रा वा/१०/8/८/६४७/११)।
पदसग्रह । (ती //REE) ति, प./४/१०२२ कम्माण उपसमेण य गुरूवदेस विणा वि पावेदि ।
बुलाकीदास-आगरे निवासी गोयलगोत्री अग्रवाल दिगम्बर जैन सणाणसवप्पगम जोए पत्तंयबुद्रा सा १०२२। जिसके द्वारा गुरु उपदेश के बिना ही कर्मो के उपशमसे सम्यग्ज्ञान और तपके विषयमे हिन्दी कवि। इनकी माता जेनी पण्डित हेमचन्दकी पुत्री थी। पिताका प्रगति होती है, वह प्रत्प्रेकबुद्धि ऋद्धि कहलाती है । (रा वा /2/३६ / नाम नन्दलाल था। आपने भारत भाषामें पीण्डर पुराणकी रचना की ३/२०२/२४ ), ( भ आ /वि/३४/१२/११) ।
थी। समय - वि १७५४ (ती०४/२६३) । १७० कामता)। * स्वय बुद्धका लक्षण दे० स्वयंभू ।
बूचीराज-१, शभचन्द्र सिद्धान्तिक के शिष्य एक गृहस्थ । समय
शक १०१५-१०३७ (ई०१०६३-१११५) । (ध०२/१२)। २. अपभ्र श बुद्धगुप्त-ई.श ५ में एक बौद्ध मतानुसारी राजा था, इसने नालन्दा
कवि । कृतियें-मयणजुज्झ (मदनयुद्ध); सन्तोष तिलक जयमाल, के मठ बनवाये थे।
चेतनपुद्गल धमाल, टंडाणागीत इत्यादि । समय-वि. १५८६ बुद्धस्वामो-ई.श ८ में हतुकथा श्लोक सग्रहके रचयिता एक जैन (ई०१५३२) । (ती/४/२३०)। कवि थे। ( जीवधरचम्पू/प्र १८/A. N. Up.)।
बृहत् कथा-बृहत कथाकोष, बृहत् कथा मञ्जरी, बृहत कथा सरिद बुद्धि
सागर-दे० कथा कोष । ष. व १३/५,५/सू ४०/२४३ आवायो ववसायो बुद्धी विण्णाणी आउडी। ब्रहत् क्षेत्र समास-त्रिलोकप्रज्ञप्ति के समक्षक, पांच अधिकार पञ्चाउडी।३६. ऊहितोऽथो बुद्धयते अवगम्यते अनया इति बुद्धि । तथा ६५६ प्राकृत गाथाबद्ध, त्रिलोक प्ररूपक, श्वेताम्बर ग्रन्थ । -अवाय, व्यवसाय, बुद्धि, विज्ञप्ति. आमुण्डा और प्रत्यामुण्डा ये रचयिता जिनभद्र गणी क्षमाश्रमण (वि ६२०) जै./२/६२। पर्याय नाम है।३६. जिसके द्वारा ऊहित अर्थ 'बुद्धयते' अर्थात बृहत् त्रयम-अकलक भट्ट रचित सस्कृत भाषानद्ध न्याय विषयक जाना जाता है वह बुद्धि है।
ग्रन्थ (द अकलंक भट्ट)।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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