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बारह बिजोरा व्रत
१२ मुंगके आहार, १२ मोठके आहार, १२ चोलाके आहार, १२ चनाके २. बालीकी दीक्षा सम्बन्धी दृष्टिभेद आहार, १२ में मात्र जल, १२ घृत रहित आहार । इस प्रकार क्रमोमें
प. पु./8/के अनुसार सुग्रीव के भाई बालीने दीक्षा धारण कर ली थी। बारह-मारह दिनका अन्तराय चलकर मौन सहित भोजन करे। तथा
परन्तु म. पु/६८/१६४ के अनुसार बाली लक्ष्मणके हाथों मारा नमस्कार मन्त्रका त्रिकाल जाप्य करना। इस प्रकार कुल १४४ दिनमें
गया था। व्रत समाप्त होता है। (बतविधान सं./पृ.११५); (किशनसिंह
बालुकाप्रभा-स.सि./३/१/२०३/८ बालुकाप्रभासहचरिता भूमिक्रियाकोष)।
लुकाप्रभा।-जिसकी प्रभा बालुकाकी प्रभाके समान है, वह बारह बिजोरा व्रत-एक वर्षको २४ द्वादशियोंके २४ उपवास
बालुका प्रभा है। (इसका नाम सार्थक है); (ति, प./२/२१); करे तथा नमस्कार मन्त्रका त्रिकाल जाप्य करे (व्रतविधान संग्रह।
(रा. वा./३/१/३/१५८/१८)। पृ. ६) (बर्द्धमान पुराण )।
* वालुका प्रमा पृथिवीका आकार व अवस्थान बारह वशमी वत-यह व्रत श्वेताम्बर आम्मायमें प्रचलित है।
बारा दशमी महारी लेय, बाराबारा वश घर देय।' (बत विधान -० नरक/५/११ । संग्रह । पृ. १३१) ( नवलसाहकृत बर्द्धमान पु.)।
बासी भोजन-बासी भोजनका निषेध-दे० भक्ष्याभक्ष्य/२। बाल-रा. वा./६/१२/७/१२२/२८ यथार्थ प्रतिपत्यभावादज्ञानिनो
बाहुबली-१. मागकुमार चरित के रचयिता एक कन्नड़ कवि। बाला मिथ्यादृष्टयादयः । यथार्थ प्रतिपत्तिका अभाव होनेसे
समय-ई० १९६०। (ती./४/३११)२.म. पु./सर्ग/श्लोक म. अपने पूर्व मिथ्यावृष्टि आदिको अज्ञानी अथवा बाल कहते हैं।
भव नं.७ में पूर्व विदेह बत्सकावती देशके राजा प्रीतिवर्धनके मन्त्री बालक्रिया-दे० क्रिया/३/३ ।
थे (८/२११) फिर छठे भवमें उत्तरकुरुमें भोग भूमिज हुए (/२१२), बालचंद्र-१. ई० ७०० के एक दिगम्बराचार्य (वे. बलचन्द्र) ।
पाँचवें भवमें कनकाभदेव (८/२१३) चौथे भवमें वनजंघ ( आदिनाथ २. समयसार, प्रवचनसार, पञ्चास्तिकाय, तत्त्वार्थ सूत्र व परमात्म
भगवानका पूर्व भव) के 'आनन्द' नाम पुरोहित हुए (८/२१७ ) प्रकाश के कन्नड़ टीकाकार । समय-वि. श. १२ का अन्त (ई. श.
तीसरे भवमें अधोग बेयकमें अहमिन्द्र हूर (६/१०) दूसरे भवमें १३ पूर्व) । (ज./२/१९४)। ३. अभयचन्द्र के शिष्य, श्रुतमुनि के
बज्रसेनके पुत्र महाबाहु हुए ( ११/१२) पूर्व भव में अहमिन्द्र हुए शिक्षा गुरु। भावत्रिभंगी तथा द्रव्य संग्रह की टीका के कर्ता।
(४७/३६५-३६६) वर्तमान भव में ऋषभ भगवान के पुत्र बाहुबली हुए
(१५/4) बड़ा होनेपर पोदनपुरका राज्य प्राप्त किया (१७/७७)। समय-शक ११६६-१२३३ (ई० १२७३-१३११) । (जै /२/५६. ३७८)।
स्वाभिमानी होनेपर भरतको नमस्कार न कर उनको जल, मल्लब बालतप-दे० धर्म/२/६/1
दृष्टि युद्ध में हटा दिया (३६/६०) भरलने कुन होकर इनपर चक्र बालनंदि-नन्दिसंघ देशीयगण के अनुसार आप वीरनन्दि नं.३
चला दिया, परन्तु उसका इनपर कुछ प्रभावमआ (३६/३६)। के शिष्य तथा जम्बूदीवपण्णत्तिके कर्ता पद्मनन्दि नं. ४ (ई. इससे विरक्त हो इन्होंने दीक्षा ले ली (३६/१०४)। एक वर्षका ६६३-१०४३ ) के गुरु थे। पद्मनन्दिनं. ४ के अनुसार इनका समय प्रतिमा योग धारण किया (३६/१०६ ) एक वर्ष पश्चात भरतने ई. १६८-१०२३ आता है।-दे० इतिहास/9/५ (पं.सं./प्र.३६/A.N.
आकर भक्तिपूर्वक इनकी पूजा की तभी इनको केवनलब्धिकी प्राप्ति Up.); (प.वि./प्र./१२/A.N.Up.);(ज.प./प्र.१३/AN Up);
हो गयी (१६/१८५) । अन्त में मुक्ति प्राप्त की । ३. बाहुबलीजी के एक (व, सु, श्रा./प्र./१८/पं, गजाधरलाल)।
भी शष्य न थी-२० शल्य ४। बाइब नीजीकी प्रतिमा सम्बन्धी बाल मरण-दे० मरण/१।
दृष्भेिद-दे० पूजा/३/१०।।
बाहुल्य-१. Hight. (त्रि, सा./टो./१७०) २. Width (ज.प./ बालवत-दे० चारित्र/३/१० ।
प्र./१०७)। बालाग्र क्षेत्रका प्रमाण विशेष/अपरनाम केशाग्र-दे० गणित/I/१।। बाह्य--१. स. सि./8/११/४३६/३ बाह्यद्रव्यापेक्षरवाल्पर प्रत्यक्षवाच बालाचार्य-दे० आचार्य/३।
बाह्यत्वर । - बाह्य द्रव्य के आलम्बनसे होता है, और दूसरों के देखने में
आता है, इसलिए इसे बाह्य ( तप) कहते है। २. परमार्थ बाह्य-३० बालाबित्य-ई.श.में एक औद्धमतानुयायी राजा था। परमार्थ । इसने नालन्दाके मठ बनवाये थे।
बाह्य उपकरण इन्द्रिय-दे० रिद्रय/१ । बालाविश्य-कबेर देशका राजा था। एक बार मलेच्छों द्वारा बाह्यकारण-दे० कारण/11/१ ।
पकड़ा गया। इसकी अनुपस्थितिमें इसकी पुत्रीने पुरुषके वेश में राज्य किया। बहुत समय पीछे बनवासी रामने इसे मुक्त कराया।
बाह्यतप-दे० षह वह नाम । (पपु/३४/३६-१७)।
बाह्मनिवृति इन्द्रिय-दे० इन्द्रिय/१ । बालिस्त-क्षेत्रका प्रमाण विशेष, अपरनाम वितस्ति-दे०
बाह्य परिग्रह आदि-दे बह वह विपश्य । गणित/11१।
बाह्य वर्गणा-दे० वर्गणा। बाली--प. पु.// श्लोक नं. किष्किन्धपुर के राजा सूर्य रजका पुत्र बिदुसार-मगध सम्राट् अशाकका पिता था। समय- जैन के
था (१) राम ब रावणके युद्ध होनेपर विरक्त हो दीक्षा धारण कर अनुसार ई.पू. ३०२-२७७ लोक इतिहासाके अनुसार ई.पू. २६८-२७३ ली (१०)। एक समय रावणने क्रुद्ध हो तपश्चरण करते समय इनको
-देहातहास/३/४। पर्वत सहित उठा लिया। तम मुनि बालीने जिन मन्दिरकी रक्षार्थ बिब-१. Disc. (ज.प./प्र.१०७) । २.बी.पा./मू./१६ जिण भिवं पैरका अंगूठा दबाकर पर्वतको स्थिर किया (१२) अन्त में इन्होंने णाणमय सजमसुदध सुवीयराय च। जं देई दिनरन सिकाया कम्मरवयनिर्वाण प्राप्त किया (२२१)।
कारणे सुद्धा १६ - जो ज्ञानमयो है, संयममे शुद्ध है, अतिशय बीतबैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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