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बहिर्यानक्रिया
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बारह तप व्रत
बहुश्रुत-ध.८/३.४१/८६/७ बारसंगपारयाबहुसुदाणाम। जो बारह
अंगों के पारगामी हैं वे बहुश्रुत कहे जाते हैं। बहुश्रुत भक्ति-दे० भक्ति/२॥ बाकी-Substraction (ध.५/प्र. २८) । बाण-१. Hght ofa segment (ज.प./प्र. १०७) २. बाण
निकालनेकी प्रक्रिया-दे० गणित/11/७/३ | बाणभट्ट-१. इन्होंने कादम्बरी व हर्ष चरितकी रचना की थी।
समय-वि०६६७-७०७ (क्षत्र चूडामणि/प्र./प्रेमी)। बाणा-भरतक्षेत्रस्थ आर्य खण्डकी एक नदी-दे० मनुष्य/४ । बावर-दे० सूक्ष्म । सहनानी -दे० गणित/I/२/। बादरायण-एक अज्ञानवादी थे-दे० अज्ञानवाद । वेदान्तके सर्व ___ प्रधान ब्रह्मसूत्रों के ई० ४०० में कर्ता हुए हैं-दे० वेदान्त । वादाल-(पणही) २ = ४२६४६६७२६५-३० गणित//१/१ । बाधित-1. बाधित विषयके भेद
प.मु/१/१५ बाधितः प्रत्यक्षानुमानागमलोकस्ववचनैः ॥१५॥ - प्रत्यक्ष,
अनुमान, आगम, लोक एवं स्ववचन बाधितके भेदसे षधित पाँच प्रकार है ।१५। ( न्या. दी./३/६६३/१०२/१४)। २. बाधितके भेदोंके लक्षण
ज्ञानसार/३० मदमोहमानसहित' रागद्वेषैनित्यसंतप्तः। विषयेषु तथा
शुद्ध' बहिरात्म। भण्यते सैष. ।३०। - जो मद, मोह व मान सहित है, राग-द्वेषसे नित्य संतप्त रहता है, विषयों में अति आसक्त है, उसे बहिरात्मा कहते है ।३० का./अ./मू./१६३ मिच्छत्त-परिण दप्पा तिब्ध-कसारण सुट्छ आविट्ठो। जीवं देह एक्क मण्णं तो होदि बहिरप्पा १६३। - जो जीव मिथ्यात्व कर्मके उदय रूप परिणत हो, तीव्र कषाय में अच्छी तरह आविष्ट हो,
और जीव तथा देहको एक मानता हो, वह बहिरात्मा है ।१६।। प्र. सा./ता, बृ./२३८/३२६/१२ मिथ्यात्वरागादिरूपा अहिरामावस्था।
-मिथ्यारव व राग-द्वेषादि कषायों से मलीन आत्माकी अवस्थाको अहिरात्मा कहते हैं। द्र, सं./टी./१४/४६/८ स्वशुद्धात्मसं वित्तिसमुत्पन्नबास्तवसुरवारप्रतिपक्ष
भूतेनेन्द्रिगसुखेनासक्ती बहिरात्मा.. अथवा देहरहितनिजशुद्धात्मदयभावनालक्षणभेदज्ञानरहितत्वेन देहादिपरद्रव्येवेकरवभावनापरिणतो बहिरात्मा,...अथवा हेयोपादेयविचारकचित्तं निर्दोषपरमात्मनो भिन्ना रागादयो दोषा., शुद्धचैतन्यलक्षण आत्मा, इत्युक्तलक्षणेषु नितदोषारमासु त्रिषु वीतरागसर्वज्ञप्रणीतेषु अन्येषु वा पदार्थेषु यस्य परस्परसापेक्षनयविभागेन श्रद्धानं ज्ञानं च नास्ति स बहिरात्मा। -१. निज शुद्धात्माके अनुभबसे उत्पन्न यथार्थ सबसे विरुद्ध जो इन्द्रिय सुख उसमें आसक्त सो बाहिरात्मा है। २. अथवा देह रहित निज शुद्धात्म व्यकी भावना रूप भेदविज्ञानसे रहित होने के कारण देहादि अन्य द्रव्यों में जो एकत्व भावनासे परिणत यानी-देहको ही आत्मा समझता है सो बहिरात्मा है। ३. अथवा हेयोपादेयका विचार करनेवाला जो 'चित्त' तथा निर्दोष परमात्मासे भिन्न रागादि 'दोष' और शुद्ध चैतन्य लक्षण का धारक 'आत्मा' इन (चित्त, दोष व आत्मा) तीनोंमें अथवा सर्वज्ञ कथित अन्य पदार्थों में जिसके परस्पर सापेक्ष नयों द्वारा श्रद्धान और ज्ञान नहीं है वह अहिरामा है।
२. बहिरात्मा विशेष का. अ./टी./१६३ उत्कृष्टा बहिरात्मा गुणस्थानादिमे स्थिताः। द्वितीये मध्यमा, मिश्रे गुणस्थाने जघन्यका इति। -प्रथम मिथ्यात्व गुणस्थानमें जीव उत्कृष्ट बहिरात्मा है, दूसरे सासादन गुणस्थान में स्थित मध्यम बहिरात्मा है, और तीसरे गुणस्थान वाले जघन्य बाहि
रात्मा है। बहिर्यानक्रिया-दे०संस्कार/२ । बहु-मतिज्ञानका एक भेद-दे० मतिज्ञान/४ । बहुकेतु-विजया की दक्षिण श्रेणीका एक नगर-दे० विषाधर । बहुजनपुच्छा दोष-दे० आलोचना/४ । बहुमान - मू आ./२८३ सुत्तस्थ जपं तो वार्यतो चाचि णिज्ज
राहेतु' । आसादणं ण कुज्जा तेण किई होदि बहुमाणे ।२८३ ऑगपूर्वादिका सम्मक अर्थ उच्चारण करता वा पढ़ता, पढ़ाता हुआ जो भव्य कर्म निर्जराके लिए अन्य आचार्जका वा शास्त्रों का अपमान नहीं करता है वही बहुमान गुणको पालता है। भ, आ./बि १४६/२६१/३ बहुमाणे सन्मान | शुचेः कृताञ्जलिपुटस्य अनाक्षिप्तमनसः सादरमध्ययनम् । पवित्रतासे, हाथ जोड़कर, मनको एकाग्र करके बड़े आदरमे अध्ययन करना बहुमान बिनय है। बहुमुखी--विजया की दक्षिण श्रेणीका एक नगर-दे० 'विद्याधर'। बहुरूपिणी--भगवान नेमीनाशकी यक्षिणी-दे० तीर्थ कर ।।३ । बटुबत्रा-भरत क्षेत्रस्य आर्य रखण्डकी एक नवी-दे० मनुष्य/४।। बहुविध-मतिज्ञानका एक भेड-दे० मतिज्ञान/४ ।
प. मु./६/१६-२० तत्र प्रत्यक्षबाधितो 'यथा-अनुष्णोऽग्निद्रव्यत्वाजलवत।१६। अपरिणामी शब्दः कृतकस्वाद घटवत ।१७। प्रेक्ष्यासुखप्रदो धर्मः पुरुषाश्रितस्वादधर्मवत १८। शुचि नरशिरः कपाल प्राण्यगत्वाचघुक्तिवत ।१६। माता मे बन्ध्या पुरुषसंयोगेऽप्यगर्भववारप्रसिद्धबन्ध्यावतु ।२०-१. अग्नि ठण्डी है क्योंकि द्रव्य है जैसे जल । यह प्रत्यक्ष बाधितका उदाहरण है। क्योंकि स्पर्शन प्रत्यक्षसे अग्निकी शीतलता बाधित है ।१६ शब्द अपरिणामी है, क्योंकि वह किया जाता है जैसे 'घट', यह अनुमानबाधितका उदाहरण है ।१७। धर्म परभवमें दुःख वेनेवाला है क्योंकि वह पुरुषके अधीन है जैसे अधर्म। यह आगम बाधितका उदाहरण है, क्योंकि यहाँ उदाहरण रूप 'धर्म' तो परभव में सुख देनेवाला है ।१८। मनुष्यके मस्तककी खोपड़ी पवित्र है क्योंकि वह प्राणीका अंग है. जिस प्रकार शेख, सीप प्राणीके अग होनेसे पवित्र गिने जाते हैं, यह लोकबाधितका उदाहरण है ।११। मेरी माँ बाँझ है क्योंकि पुरुषके संयोग होनेपर भी उसके गर्भ नहीं रहता। जैसे प्रसिद्ध बंध्या स्त्रीके पुरुषके संयोग रहनेपर भी गर्भ नहीं रहता। यह स्ववचनबाधितका उदाहरण है, क्योंकि मेरी माँ और बाँझ ये बाधित वचन है ।२०/( न्या. दी./३/६/१०२/१४ )।
बानमुक्त-भरत क्षेत्रमें दक्षिण आर्यस्खण्डका एक वेश-३० मनुष्य/४॥ बानर-मातर मनुष्य नहीं तिर्यच्च होते हैं ( म. पु./८/२३०) । बारस अणुवेक्खा -आ. कुन्दकुन्द (ई० १२७-१७६) कृत वैराग्य विषयक प्राकृत गाथाओं में निबद्ध ग्रन्थ है। इस प्रथम बारह वैराग्य भावनाओका कथन है। इसपर कोई टीका उपलब्ध नही है। (ली./२/११४)। बारह तप वत-शुक्ल पक्षकी किसी तिथि को प्रारम्भ करके प्रथम १२ दिनमें १२ उपवास, आगे १२ एकाशन, १२ काजिक ( जल व भातका आहार), १२ निगोरस (गोरसरहित भाजन), १२ अल्पाहार. १२ एक लठाना (एक स्थापर मौन सहित भोजन),
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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