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बंधन
8.1/8.1-1/2-2/6
छद्मस्थ
पथिक
शान्त कषाय
तद्वयतिरिक्त नोआगम द्रव्यनिक्षेप
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कर्म
। साम्परायिक
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केवली सूक्ष्म साम्परायिक
1
क्षीण कषाष असाम्प्रायादिक
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असाम्प्रायादिक
उपशामक
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सचित्त अचित्त मिश्र
क्षपक
नोकर्म
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सूक्ष्म साम्प्रायादिक
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अनिवृत्तिकरण अनादि अनन्त
बादर साम्परायिक
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साम्प्रायादिक
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अनादि
बादर
साम्प्रा
यादिक
क्षपक उपशामक
अनादि सान्त
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पूर्व करण
२. बन्धकके भेदोंके लक्षण
घ. ७/२.१.२/५/१ र सचिणोकप्रबंधया जहा हरी बधया, अस्सा बंधया इच्चेस्मादि । अचित्तणोकम्मदव्य बंधया तहा कट्ठाणं बंधया, सुप्पाणं बंधया कड्याणं बधया इच्चेवमादि । मिस्समोकदम्बमया जहा साहरगाण हत्थी बंधा इच्चेवमादि (४ / ८ ) । -- तत्थ जे बचपाहुडजाणया उवजुत्ता आगमभावबंधया णाम । पोआगमभावया जहा को माग-माय सोमाई बनावार करे ता (४/१९ ) । -सचिनो कर्म जैसे हाथी बाँधनेवाले, घोडे बाँधनेवाले इत्यादि। अचित्तनो कर्मद्रव्यबन्धक जैसे लकड़ी बाँधनेवाले सूपा बाँधनेवाले कट चटाई मांधनेवाले इत्यादि । मिश्र नोकर्म द्रव्य बन्धक जैसे- आभरणो सहित हाथियो के बाँधनेबाले इत्यादि । (2/-) उनमें भूके जानकार और उसमें उपयोग रखनेवाले आगमभाव बन्धक है। नो आगम भावबन्धक जैसे - क्रोध, मान, माया, लोभ व प्रेमको आत्मसात् करनेवाले | नोट - इनके अतिरिक्त शेष भेदोके लक्षण- दे० निक्षेप ।
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बंधन - १ बन्धन नामकर्मका लक्षण
स.सि./८/१२/२०६ / १२ शरीरनामस्मदयनशापान ढगा नामग्योन्यप्रदेशसंश्लेषण यतो भवति तद्बन्धननाम (तस्याभावे शरीरप्रदेशानां दारुनिचयवत् असपर्क स्यात् ग वा० ) । =शरीर नामकर्म के उदयसे प्राप्त हुए पुङ्खगतोका अन्योन्य प्रदेश सश्लेष जिसके निमित्तसे होता है, वह बन्धन नामकर्म है। इसके अभाव में शरीर सकडियो हेर जैसा हो जाता है। रामा) (राया /८/१९/६/२०६/२४) (१३/५.२.१०१/२६४/१) (मोकजी प्र./३३/२१/१)।
घ. ६/१,६-१,२८/५२/११ सरीरट्ठमागयाण पोग्गलक्खधाण जीव संबद्धाण जेहि पोग्यते हि जीवस हि पचोदहि परोपर कीरह तेसि पोला सरीखपणा करणे यादो क्सारसादा सरोरवणाम् जीवस्थ होज्ज सो बालुवाका पुरिससरीर व सरीर होज्न परमाणुणमणो
मघा
बकुश
भावा ।
- शरीरके लिए आये हुए जीव सम्बद्ध पुद्गल स्कन्धों का जिन जीव सम्बद्ध और उदय प्राप्त पुद्गलोके साथ परस्पर बन्ध किया जाता है उन पुद्गल स्कन्धोंको शरीर बन्धन संज्ञा कारणमें कार्यके उपचारसे, अथवा कर्तृ' निर्देशमे है । यदि शरीर बन्धन नामकर्म जीवके न हो, तो बालुका द्वारा बनाये पुरुष शरीर के समान जीवका शरीर होगा, क्योकि परमाणुओका परस्परमे बन्ध नहीं है।
२. बन्धन नाककर्मके भेद
. . ६/१.१९/१२/०० तं शरीरमपणामकम्म च ओरालिमसरोर] भ्रणणाम वेडमिसरीरघणणाम आहारसरीरबंधणणामं तेजासरीरबंधणणाम कम्मइयसरीरबंधणणामं चेदि |३२| -जो शरीर बन्धन नामकर्म है यह पाँच प्रकारका है- औदारिक शरीर बन्धन नामकर्म, वैक्रियिक शरीर बन्धन नामकर्म, आहारक दशरीर बन्धननामकर्म, जसवारीर बन्धननामकर्म और कार्मणशरीर मन्धन नामकर्म ( ११/५२ / ९०२/२६०), (पं.सं./प्र/ १९), (प.से.प्रा./२/४/५ ४०१, ६) (म.मं./१/६/२६).
(गो, फ / जी प्र / १३ / २६/१)
★ बन्धन नामकर्मकी बम्ध उदय सत्य प्ररूपणाएँ तथा तत्सम्वन्धी नियम शंकादि - दे० वह वह नाम ।
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बंधन बद्धत्व - रा. वा./२/७/१३/११२/२७ अनादिसंततिबन्धनबद्धत्वमपि साधारणम् । कस्मात् । सर्वद्रव्याणां स्वात्मीयसंतानबन्धनमद्धवं प्रत्यनादित्वादणि हि प्रयाणि जीवधर्माधर्माकालाख्यानि प्रतिनियतानि पारिणामिकचैतन्योपयोग गतिस्थिव्ययकाशदान वर्तनापरिणाम वर्ग-गंध-रस-पादपर्याय - संतानबन्धनानि कमोंदवाद्यपेक्षाभावादपि पारिणामिन्स् । यदस्यानादितिबन्धन तदसाधारणमपि सन्न पारिशानिक कर्मोदयनिमित्य -अनादि भन्न म भी साधारण गुण है। सभी द्रव्य अपने अनादिकालीन स्वभाव सन्ततिसे बद्ध है, सभीके अपने-अपने स्वभाव अनादि अनन्त है । अर्थात् जीव, धर्म, अधर्म, आकाश, काल और पुद्गल नामके द्रव्य क्रमश. पारिणामि चैतन्य उपयोग गरियान स्थितिदान अवकाशदान, दर्शनापरिणाम, और वर्ग-गन्ध-रस और स्पर्शादि पर्याय सन्तानके मन्धनसे मद है। इस भावमे कर्मोदय आदिकी अपेक्षा न होनेसे पारिणामिक है। और जो यह अनादिकालीन कर्मबन्धन ता जीवमें पायी जाती है, वह पारिणामिक नही है, किन्तु कर्मोदय निमित्तक है ।
बंध विधान
१४/२६.९/२/२ - द्विदिअशुभाग-पवेसमेद भिण्णा बंधवियप्पा बधविहाण णाम । = प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश भवभेदको 918 हुए अन्धके मेदोको मन्ध विधान कहते हैं।
बंधसमुत्पत्तिक स्थान दे० अनुभाग १ |
बंध स्थान - स. सा / / ५३ ५५ यानि प्रतिविशिष्टप्रकृति परिपागलक्षणानि मन्यस्थानानि भिन्न-भिन्न प्रकृतियोंके परिणाम जिनका लक्षण है ऐसे जो बन्ध स्थान |
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बंध स्पर्श दे० स्पर्श । बंधावलि - दे० आवली ।
बकुश -
स.सि ६/४/४६० मध्ये प्रतिस्थिता अडिरामा शरीरोपकरण विभूषानुवर्तिनोऽविविक्तपरिवारा मोहबतयुक्ता बकुशा । शबलपर्यायवाची बकुश । - जो निर्ग्रन्थ होते है, व्रतोंका अखण्ड
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