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बडा नगर
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बप्पदेव
रूपसे पालन करते है, शरीर और उपकरणोकी शोभा बढ़ाने में लगे मनोविकारमकुर्व तो मम पुराकतदुष्कर्मफलमिदमिमे वराका कि रहते है, परिकारसे घिरे रहते है ( ऋद्धि और यशकी कामना रखते कुर्वन्ति, शरीरमिद जल बुद्धबुद्वद्विशरणस्वभावं व्यसनकारणमेतैहै, सात और गौरत्र के आधार है ( रा. वा.) और विविध प्रकारके र्बाध्यते, सज्ञानदर्शनचारित्राणि मम न केनचिदुपहन्यते इति चिन्तमोहसे युक्त है, वे बकुश कहलाते है। यहाँ पर बकुश शब्द 'शबल' यतो बासिलक्षणचन्दनानुलेपनसमदर्शिनो बधपरिषहक्षमा मन्यते। (चित्र-विचित्र ) शब्द का पर्यायवाची है। (ग. वा./8/४६/२/६३६/- - तीक्ष्ण तलवार, मूसर और मुद्गर आदि अस्त्रोके द्वारा ताडन २१) (चा सा /१०१/२ )।
और पीडन आदिसे जिसका शरीर तोडा मरोडा जा रहा है तथापि
मारने वालोपर जो लेशमात्र भी मन में विकार नहीं लाता, यह मेरे २. बकुश साधुके भेद
पहले किये गये दुष्कर्मका फल है, ये बेचारे क्या कर सक्ते है, यह स. सि./8/४७/४६९/१२ बकुशो द्विविध - उपकरण-बधुश शरीरबकुश- शरीर जल के बुलबुले के समान विशरण स्वभाव है, दुरव के कारणको
श्चेति। तत्रोपकरणबकुशो बहुविशेषयुक्तोपकरणाकाभी। शरीर- ही ये अतिशय बाधा पहुंचाते है, मेरे सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सस्कारसेवी शरीरबकुश | - बकुश दो प्रकार के होते है,-उपकरण सम्यक चारित्रको कोई नष्ट नहीं कर सक्ता इस प्रकार जो विचार बकुश और शरीरबकुश। उनमेसे अनेक प्रकार की विशेषताओको करता है वह वसूलीसे छीलने और चन्दनसे लेप करने में समदर्शी लिये हुए उपकरणोको चाहनेवाला उपकरण बकुश होता है, तथा होता है, इसलिए उसके बध परीषह जय माना जाता है। (रा.बा./ शरीरका संस्कार करनेवाला शरीर-बकुश है।
६/६/१८/६११/४), (चा सा./१२६/३)। रा वा/8/४७/४/६३८/५ वकुशो द्विविध --उपकरणबश शरीर
बध वचन-दे० वचन । बकुशश्चेति । तत्र उपकरणाभिवक्तचित्तो विविधविचित्रपरिग्रहयुक्त.
बध्यघातक विरोध-दे० विरोध । बहुविशेषयुक्तोपकरणकाक्षी तत्संस्कारप्रतीकारसेवी भिक्षुरुपकरणबकुशो भवति । शरीरमस्कारसेवी शरीरबकुश । - बकुश दो प्रकार
बध्यमान आयु-दे० आयु । के है-उपकरण-बकुश और शरीर-बकुश । उपकरणो में जिसका चित्त आसक्त है, जो विचित्र परिग्रह युक्त है, जो सुन्दर सजे हुए
बध्यमान कम-ध. १२/४, २,१०,२/३०३/४ मिथ्यात्वाविरतिउपकरणोकी आकांक्षा करते है तथा इन सस्कारोके प्रतीकारकी सेवा
प्रमादकषाय-योगै कर्मरूपतामापाद्यमान कार्मणपुद्गलस्कन्धो करनेवाले भिक्षु उपकरण बकुश है। शरीर सस्कारसेवी शरीर
बध्यमान । मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, पाय और योगके बकुश है। (चा सा/१०४/१)।
द्वारा कर्म स्वरूपको प्राप्त होने वाला कार्मण पुद्गल स्कन्ध बध्यमान भ. आ./वि./१६५०/१७२२/८ रात्रौ यथेष्ट शेले, सस्तर च यथाकाम
कहा जाता है। बहुतरं करोति, उपकरणबकुशो। देहबकुश दिवसे वा शेते च य
बनवारी लाल मावनपुरके निवासी जैन पण्डित थे। खतौलीके पार्श्वस्थ । -जो रातमे सोते है, अपनी इच्छाके अनुसार बिछौना
चैत्यालय में वि. १६६६ मे भविष्यदत्तचरित्र रचा जो कि कवि धनभी बडा बनाते है. उपकरणोका संग्रह करते है, उनको उपकरण
पालके अपभ्रश ग्रन्थका पद्यानुवाद है। (हि.जे. सा. इ./१०५ बकुश कहते है। जो दिनमे सोता है उसको देहवकुश कहते है।
कामता)। * बकुश साधु सम्बन्धी विषय-दे० साधु ।
बनारसोदास-आगरा निवासी श्रीमान वैश्य थे। इनका जन्म बड़ा नगर-राजस्थानमे कोटाका प्रदेश। (जेन साहित्य इति- जौनपुर में रखरगसेनके घर माघ शु ११ वि १६४३में हुआ था। पहिले हास । पृ २५६/प्रेमी जी)।
आप श्वेताम्बर आम्नायमे थे बादमे दिगम्बर हो गये। कुछ समय तक जवाहरातका व्यापार भी क्यिा । वेदान्ती विचारोके कारण अध्यात्मी
कहलाते थे। महाकवि गोस्वामी तुलसीदासके समकालीन थे। बद्ध-प ध /1/६६ मोहकर्मावृतो बन्न । - मोहनी व कर्म से आवृत
आपकी निम्न कृति में प्रसिद्ध है-१ नवरस पद्यावली (यह एक ज्ञानको बद वहते है ।
शृगार रसपूर्ण रचना थी जो पीहो विवेक जागृत होने पर इन्होंने
जमुनामे फेक दी।) २ नाममाला, ३ नाटक समयसार (घि १६९३) बधस सि./६/११/३२६/२ - आयुरिन्द्रियबलप्राण वियोगकारण
। बनारसी विलास (यि १७०१), ५ कर्म प्रकृति विधान (वि १७००); वध ।
है. अर्थ कथन (बि १६१८)। समय-वि १६५३-१७००(ई १५८७स. सि /9/२५/२६६/२ दण्डकठावेत्रादिभिरभिघात प्राणिना वध , १६५४) । (जै./२/२०३)। (ती/४/२४८) । न प्राणव्य पर पणम्, तत प्रागेत्राम्य विनिवृत्तत्वात्। -१ आयु, इन्द्रिय और श्वासोवासका जुदा कर देना बप है। (ग गा- बनारसी विलास- बनारसीदास (ई०१७०१ द्वारा रचित ११/५/५१६/२८), ( प टी /२/१२७): २ डडा, चाबुक और
आध्यात्मिक भाषा पद स ग्रह । (ती/४/२५४) । बेंत आदिसे प्राणियो को मारना वध है। यह बध का अर्थ प्राणोका वियोग करना नहीं लिया गया है. क्योकि अतिचारके पहले ही बप्पदव-उत्कालका ग्रामके समीप 'मणल्ली' ग्राममे आपने हिसाका त्याग कर दिया जाता है । ( रा वा /9/२५/२५५/१८) । आचार्य शुभन द ब रविनन्दिसे ज्ञान व उपदेश प्राप्त करके षट् खण्डप प्र/टी/२/१२७/२/-18 निश्चयेन मिथ्यात्वविषयक्षाय परिणाम
के प्रथम ५ खण्डोपर ६०००० श्लोक प्रमाण व्याख्या प्रज्ञप्ति नामकी रूपवध वकीय । - निश्चयकर मिथ्यात्व विषय पाय परिणाम
टोका तथा कषाय पाहुड की भी एक उच्चारणा नामकी संक्षिप्त टीका रूप निजघात ।
लिखी। पीछे वाटग्राम (बडौदा) के जिनालय में इस टीका के दर्शन बध परिषह-"स सि/8/8/2318 निशितग्शसनमुगलमुगरा
करके श्री बीरसेनस्वामीने षट्खण्डके पॉच खण्डोपर धवला, नामकी द्रिप्रहरणताइन पीडनादिभिापाद्यमान शरीरस्य व्यापदकेषु मनागपि टोका रची थी । समय-ई० श०१(विशेष दे. परिशिष्ट)।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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