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बंध
१. बन्ध सामान्य निर्देश
जो सो थप्पो सादियविस्ससाबंधो णाम तस्स इमो णिसो-वेमादा णिद्धदा वेमादा ल्हुक्रवदा बधो (३२/३०)। से त बधणपरिणाम पप्प से अम्भाणवा मेहाण वा सज्माणं वा विज्जणं वा उकाण वा कणयाणं बा दिसादाहणं वा धूमकेदूणं वा इंदाउहाणं वा से खेत्तं पप्प कालं पप्प उड्ड पप्प अयणं पप्प पोग्गलं पप्प जे चामपणे एवमादिया अमंगलप्पडडीणि बंधणपरिणामेण परिणमति सो सम्वो सादियविस्ससाबंधो गाम (३०/३४) - अनादि वैस सिक बन्ध तीन प्रकारका है-धर्म, अधर्म तथा आकाश ( ३०/२१)। इनके अतिरिक्त इनके भी तीन-तीन प्रकार है-सामान्य, देश व प्रदेशमें परस्पर बन्ध । स्निग्ध रूक्ष गुणके कारण पुद्गल परमाणुमें बंध सादि वै नसिक है (३२/३०) वे पुदगल बन्धनको प्राप्त होकर विविध प्रकारके अभ्ररूपसे,मेष, सन्ध्या , बिजली, उल्का, कनक, दिशादाह, धूमकेतु, इन्द्रधनुष रूपसे, तथा क्षेत्र, काल, ऋतु, अयन और पुद्गल के अनुसार जो बन्धन परिणामरूपसे परिणत होते हैं, तथा इनको लेकर अन्य जो अमंगलप्रभृति बन्धन परिणाम रूपसे परिणत होते हैं, वह सब सादि वित्रसाबन्ध हैं । ( ३७/३४ ), (रा. वा./५/२४/७/४८७/१६) । रा. वा./५/२४/७/४८७/२५ कालाणूनामपि सतत परस्परविश्लेषाभावात अनादिः। - इसी प्रकार काल, द्रव्य आदि में भी बन्ध अनादि है।
णाम सो दुबिहो-सादियसरीरिबंधो वेब अणादियसरी रिबंधो चेव ।६श जो सो मादिग्रसरी रिबंधो णाम सो जहा सरीरबंधो तहा णेदव्यो ।६। जो अणादियसरी रिबंधो णाम यथा अण्णं जीवमझपदेसाण अण्णोण्णपदेसबधो भवदि सो सब्बो अणादियसरी रिबधो णाम ६३। ( इतरेषां प्रदेशानां कर्मनिमित्तसंहरण विसर्पणरवभावस्वादादिभात् । रा.वा.)। -१. जो आलापनबन्ध है उसका यह निर्देश है--जो शकटो का, यानो का, युगोंका, गड्डियोंका, गिल्लियोका, रथो, स्यन्दनो, शिविकाओ, गृहों, प्रासादो, गोपुरों, और तोरणोका काष्ठसे, लोह, रस्सी, चमडेकी रस्सी और दर्भमे जो बन्ध होता है तथा इनसे लेकर अन्य द्रव्योसे आलापित अन्य द्रव्योंका जो बन्ध होता है वह सब आलापनबन्ध है।४१। २. जो अल्लीवणबन्ध है उसका यह निर्देश है--कटकोंका, कुण्डों, गोबरपीड़ों, प्राकारों और शाटिकाओका तथा इनसे लेकर और जो दूसरे पदार्थ हैं उनका जो बन्ध होता है अर्थात अन्य द्रव्यसे सम्बन्धको प्राप्त हुए अन्य द्रव्यका जो बन्ध होता है वह सब अल्लीवणबन्ध है ।४। ३. जो संश्लेषबन्ध है उसका यह निर्देश है-जैसे परस्पर संश्लेषको प्राप्त हुए काष्ठ और लाखका बन्ध होता है वह सब संश्लेषबन्ध है ।४।-विशेष दे० श्लेष। ४. जो शरीरबन्ध है वह पाँच प्रकारका है-औदारिक, बै क्रियिक, आहारक, तैजस और कार्मण शरीरबन्ध ४४ औदारिक
औदारिक शरीरबन्ध ।४। औदारिक-तेजसशरीरबन्ध ।४६। औदारिक-कार्मण शरीरबन्ध ।४७१ औदारिक-तैजस कार्मण शरीरबन्ध 1४८। वै कियिक-बैक्रियिक शरीरबन्ध ।४।। क्रियिक-तैजस शरीरबन्ध ।५०। वे क्रियिक-कार्मण शरीरबन्ध ।११। वै क्रियिक-ौ जस कार्मण शरीरबन्ध ।५२। आहारक-आहारक शरीरबन्ध ।।३। आहारकतजस शरीरबन्ध ।५४। आहारक-कामेण शरीरबन्ध । आहारकतैजस-कार्मण शरीरबन्ध ५६। तै जस-तैजस शरीरबन्ध ।।७। सैजसकार्मण शरीरबन्ध ५८। कार्मण-कार्मण शरीरबन्ध ५६। वह सब शरीरबन्ध है ।६०। ५. जो शरीरिबन्ध है वह दो प्रकारका है-सादि शरीरिवन्ध और अनादि शरिरिबन्ध ।६। जो सादि शरीरिवन्ध है-बह शरीरबन्धके समान जानना चाहिए ।२। जो अनादि शरीरिबन्ध है। यथा-जीवके आठ मध्यप्रदेशोका परस्पर प्रवेशबन्ध होता है यह सत्र अनादि शरीरिबन्ध है ।६३। (जीवके इतर प्रदेशोंका बन्ध सादि शरीरिबन्ध है रा.बा.), (रा. वा./५/२४ ६/ ४८८/३६)। ५. जीव व अजीयबन्धके क्षण
१. कर्म व नोकर्मबन्धके लक्षण १. कर्म व नोकर्म सामान्य रा, वा./५/२६//४८७/३४ कर्मबन्धो ज्ञानावरणादिरष्टतयो वक्ष्यमाणः । नोकर्मबन्धः औदारिकादिविषय.। - ज्ञानावरणादि कर्मबन्ध हैविशेष दे० -प्रकृतिबन्ध । और औदारिकादि न कर्मबन्ध है-विशेष दे० शरीर। रा. वा.//भूमिका/५६१/५ मातापितृपुत्रस्नेहसंबन्ध. नोकर्मबन्धः ।
-माता, पिता पुत्र आदिका स्नेह सम्बन्ध नोकर्म बन्ध है। 20 आगे बध.२/५/३ ( जोव व पुद्गल उभयबन्ध भी कर्मबन्ध कह
लाता है।) २. आलापन आदि नोकर्म बन्ध प.व. १४/५.६/सू. ४१-६३/३८-४६ जो सो आलावणव धो णाम तस्स इमो णिसो-सेस गहाग वा जाणाणं वा जुगाण' बा गड्डीण बा गिल्लीण वा रहाणं वा संदणाणं वा सिवियाणं वा गिहाणं वा पासादाणं वा गोधुराणं वा तोरणाणं वा से कट्टण या लोहेण वा रज्जुणा वा बभेण वा दम्भेण बा जे चामण्णे एबमादिया अण्णदब्याणमण्णदव्वे हि आलावियाण बंधोहोदि सो सम्बो आलावणबंधो जाम ।४१। जो सो अल्लीवणबंधो णाम तस्स इमो णिहसो से कडयाण' वा कुड्डाणं वा गोवरपीडाणं वा पागाराणं बा साडियाणं वा जे चामण्णे एवमादिया अण्णदबाणमण्णदब्वेहि अल्लोविदाणं बंधो होदि सो सब्बी अल्लोवणबंधोणाम ४२ जो सो स सिलेसबंधो णाम तस्स इमो णि सो-जहा कट्ठ-जवण अण्णोण्णसं सिलेंसिदाण बधो संभवदि सो सव्यो संसिलेसबंधो णाम ।४। जो सा सरीरमधी णाम सोपंचबिही-ओरालियसरीरबधो वेउव्वियसरीरबंधो आहारसरीरबंधो तेयासरीरबंधो कम्मश्यसरीरबंधी चेदि ४४ ओरालिय-ओरालियसरीरबंधो ।४५ ओरालिय-तेयासरीरबंधो।४६ ओरालिय-कम्मइयसरीरब नौ ।४७ ओरालिय-तेयाकम्मइयसरीरबंधो।४८ बेउब्धियवेउब्धियसरीरबधो ।४। बेउयिय-तैयासरीरबंधी।५०। बेउठिवयकम्मइयसरीरबधो ५१। बेउविषय-तेया-कम्मइयसरीरबंधो ।२। आहार-आहारनरीरबंधो । १३. आहार-तेयासरीरबंधो।५४। आहारकम्मश्यसरीरबंधो५५॥ आहार-तेया-कम्मइयसरीरबंधी ॥५६॥ तेयातैयासरीरबंपो।५७५ तेया-कम्मश्यसरीरबधो।५८ कम्मइय-कम्मइयसरीरबंधो ५६। सो सम्बो सरीरबंधो णाम ।६। जो सो सरीरिबंधो
१. जीवबन्ध सामान्य ध.१३/११.८२/३४७/८,११ एगसरोरठिदाणमण ताणताणं णिगोदजीवाण अण्णोपणबंधो सो' (तथा) जेण कम्मेण जीवा पण ताणता एकम्मि सरीरे अच्छति तं कम जीवबंधो णाम । =एक शरीरमें स्थित अनन्तानन्त निगोद जीव तथा जिस कर्मके कारणसे वे इस प्रकार रहते हैं, वह कर्म भी जीवबन्ध है।
२. भावबन्ध रूप जीवबन्ध प्र. सा /मू/१७५ उबओगमओं जीवो मुज्झदि रज्जेदि वा पदुस्सेदि ।
पप्पा बिविधे विसये जी हि पुणो तेहिं सबंधो ।१७। जो उपयोगमय जीव विविध विषयों को प्राप्त करके मोह-राग-द्वेष करता है, वह जीव उनके द्वारा अन्धरूप है। रा.वा./२/१०/२/१२४/२४ क्रोधादिपरिणामवशीकृतो, भावबन्धः ।
-क्रोधादि परिणाम भानबन्ध है। भ.आ./वि./३०/१३४/१६ मध्यन्ते अस्वतन्त्रीक्रियन्ते कार्मण द्रव्याणि येन परिणामेन आत्मनः स अन्ध' । कर्मको परतन्त्र करनेवाले आत्मपरिणामोका नाम बन्ध-भावबन्ध है।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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