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प्रत्यय
गुण स्थान
-
8/1
६ /
/ui
F/iv
2/v
६/v1
E/vii
१०
११
१२
१३
१४
नं०
हास्यादि
नपुं०
स्त्री वेद
पुरुष वेद
व्युच्छित्ति
सं० क्रोध
सं० मान
सं० माया
बादर लोभ सूक्ष्म सोभ
X
असत्य व उ० मन
व वचन सत्य, अनु० मन वचन | औ०वि० कार्मण
X
१ गति
१ नरक
२ तिच
३ मनुष्य ४ देव
२ इन्द्रिय
१ एकेन्द्रिय
गुण
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४
५
१४
४
२
२ वीडिय
३ त्रीन्द्रिय
२
४ चतुरिन्द्रिय २
१४
अनुदय
पुन उदय
२
help
balk hea v w x x x x a & a wa
२२ १६
१५
१४
३. प्रत्ययों की उदय व्युच्छित्ति आदेश प्ररूपणा
पं. सं. / प्रा/४/८४-१०० कुल उदय योग्य प्रत्यय =:
५७
१३
१२/
X
११
१०
नोट- यहाँ प्रत्येक मार्गाने केवल उदय योग्य प्रत्ययोके निर्देश रूप सामान्य प्ररूपणा की गयी है। गुणस्थानोकी अपेक्षा उनकी प्ररूपणा तथा यथा योग्य ओघ प्ररूपणाके आधारपर जानी जा सकती है।
१०
औ०मि० ५ कार्मण
पुन उदय
उदय
औ० द्वि, आ० द्विक, स्त्री, पुरुष वेद
बै० द्वि, आ० द्वि० २० डिस
औ० द्विक, आ०वि० नपुं०
२२ ६ १६
१६ १ १५
१५ १ ९४
१४ १ १३
१३ १ १२
१२ १ ११
११ १ १०
१० १०
१० १
ह
obsahe
६ ४
२ ७ ७
उदयके अयोग्य प्रत्ययोके नाम
बै० द्वि०, आ० द्विक०, बच०४, मन०४, स्पर्शसे अतिरिक्त अविरति, स्त्री, पुरुष वेद - १६ उपरोक्त ११- रसनेन्द्रिय+ अनु० वचन उपरोक्त १० मानेन्द्रिय -१६ उपरोक्तरिन्द्रिय-१५
६
&
उदय योग्य
६ ५९
=8 ५३
=२
५५
५२
३८
= १७ ४० ४१
४२
५७
१२८
m
मार्गणा
३ काय
१. स्थावर
२. त्रस
४ योग
५
वेद
१. पुरुष २. स्त्री
३. नपुंसक
६ कषाय
ज्ञान
१. कुमति व कुभुत २ विभंग
कुल कषाय १६ ह
५. केवलज्ञानी
गुण स्थान
१ आहारक द्विक १-१३ स्वस्व उदय योग्यके बिना के बिना शेष शेष १४ = १४ (विशेष दे. १३ योग
उदय )
२. आहारक द्विक ६
८ संयम
१
१ सामायिक व छेदोपस्थापना
१४
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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२. प्रत्यय विषयक प्ररूपणाएँ
उदयके अयोग्य प्रत्ययो के नाम
२
बै० द्वि० आ० द्वि०, मन ४, बच०४, स्पर्श रहित ५. अविरति स्त्री. पुरुष
१६
X
आ० द्वि०
ओ०मि०, २०मि० कार्मन, आ० द्वि०
३. मति अवधि
४-१२ मिध्याख पंचक, अनसा चतु० အင် ४. मन पय ६-१२ मि० पंचक, अविरति ११.
संज्व० चतुके बिना १२ कषाय, स्त्री व नपु० वेद, बौ० मिश्र, आ० द्वि०, बै० द्वि०, कार्मण ५+१२+११+२+६-३७
१३, १४ मि० पंचक, १२ अविरति, १३ कषाय, वै० ० द्विक, आ० द्विक, असत्य व अनु० मन व वचन ४ ५+१२+२५+४+४=५०
५ मिथ्यात्व १२ अविरति [सं०] चतु अतिरिक्त १२ काय. स्त्री व नपुं० वेद, आ० द्विकके मिना १४ योग (दे० सद) =५+१२+१२+२+१४४५
२
स्त्री व नपुं० वेद आहारक द्विक, स्त्री व नपुं०
४ =४
अनन्तानु० क्रोधादि कषायों में अपने अपने चार के शेष १२
बिना =१३
-२
६-१ मि० पंचक १२ अविरति सं० चतुके बिना १२ कपाय, औ० मि०, बै० द्वि०, कार्मण ५+१२+१२+१+२+१३३
२. परिहार वि० ६-७ उपरोक्त ३३, स्त्री व नपुं०,
आ० द्वि०
३७
उदय
योग्य
३८
१७
४३
१२
烧
५३
५३
४५
x
५२
४८
२०
७
२४
२०
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