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प्रत्यय
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२. प्रत्यय विषयक प्ररूपणाएँ
विकथा, कषाय, इन्द्रिय, निद्रा और प्रणय ये पन्द्रह प्रमादस्थान देखे जाते है, अतः प्रमाद और अविरति पृथक-पृथक् है ।
२. प्रत्ययोंकी उदय व्युच्छित्ति ओघ'प्ररूपणा
६. कषाय व अविरतिमें अन्तर
१. सामान्य ४ वा ५ प्रत्ययोंकी अपेक्षा कुल बन्ध योग्य प्रत्ययः-१ स सि /८/९/३७६/५ मिथ्यात्व, अविरति,
प्रमाद, कषाय और योग-। २. पं स प्रा/४/७८-७६ मिथ्यात्व, अविरति. कषाय और योग-४. (घ.८३ ६/गा. २०-२१/२४); (पं. सं./सं/४/१८-२१) (गो क./मू. (७८७-७८८ ) ।
गुण स्थान
पाँच प्रत्ययोंकी अपेक्षा चार प्रत्ययोंकी अपेक्षा (सं. सि.)
(पं.सं.) व्युच्छित्ति कुल व्यु शेष व्युच्छित्ति कुल व्यु. शेष
बन्ध । । प्र० बन्ध
प्र०
१ मिथ्यात्व ५
रा, वा/८/१/३३/५६५/७ स्यादेतव-कषायाविरत्योर्नास्ति भेद' उभयोरपि हिसादिपरिणामरूपत्वादितिः तन्न, कि कारणम् । कार्यकारणभेदोपपत्ते । कारणभूता हि कषाया कार्यात्मिकाया हिंसाद्यविरतेरान्तरभूता इति । यस प्रश्न-हिंसा परिणाम रूप होनेके कारण कषाय और अविरतिमें कोई भेद नही है । उत्तर-ऐसा नहीं है, क्योकि इनमे कार्य कारणकी दृष्टिसे भेद है। कषाय कारण है और हिंसादि अविरति कार्य। ध, ७/२,१,७/१३/७ असजमो जदि क्साएसु चेव पददि तो पुध तदुवदेसो किमळं कीरदे । ण एस दोसो, ववहारणयं पडुच्च तदुवदेसादो। -प्रश्न -यदि असंयम कषायोमें ही अन्तर्भूत होता है तो फिर उसका पृथक् उपदेश किस लिए किया जाता है। उत्तर-यह कोई दोष नहीं, क्योंकि व्यवहार नयको अपेक्षासे उसका पृथक् उपदेश किया गया है। दे. प्रत्यय/४ (प्राणातिपातादि अन्तर ग प्रत्ययों का क्रोधादि प्रत्ययोंसे कथंचित् भेद है)।
१४ मिथ्यात्व | ४ x ४ बस अविरति ३
سه سه
१३ | अविरति
अविरति
| प्रमाद |७-१० कषाय ११-१३ योग १४ - ४
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कषाप योग
ل س مي xX
२. विशेष ५७ प्रत्ययोंकी अपेक्षा
प्रमाण-(पं. सं./प्रा /८०-८३); (ध ८/३,६/२२-२४/१); (गो. क./मू./
७८६-७६०/६५२) कुल बन्ध योग्य प्रत्यय--मिथ्यात्व ५; अविरति १२, कषाय २५, योग १५-५७ ।
व्युच्छित्ति
अनुदय
बच०
| गुणस्थान
पुन उदय
शेष उदय योग्य
कुल उदय योग्य
अनुदय पुनः उदय
उदय 6 xxव्युच्छित्ति
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२. प्रत्यय विषयक प्ररूपणाएँ १. सारणीमें प्रयुक्त संकेतोंका अर्थ अनं० चतु० अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ अनु० मन० वच० अनुभय मन, व अनुभय वचन
भय वचन अधिक
अविरति आ० द्वि०
आहारक व आहारक मिश्र आकमि०
आहारक मिश्र औ० द्वि० औदारिक व औदारिक मिश्र उ० मन० बच० उभय मन व वचन नपुं०
नपुसक वेद
पुरुषवेद प्रत्या० चतु० प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ मन०४
सत्य, असत्य, उभय व अनुभय मनोयोग मि० पचक पाचो प्रकारका मिथ्यात्व वच०४
चार प्रकारका वचनयोग वैद्वि०
वैक्रियक व वैक्रियक मिश्र स क्रोध संज्वलन क्रोध हास्यादि६ हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा
م
س
मिपंचक आकद्वि० अनन्ता० चतु० .
औ००मि०
व कार्मण ४ अप्रत्या० चतु०
औ० बै०४३ | ३ सहिंसा, वै० । द्वि०-७
कार्मण
४६/७३६
प्रत्या० चतु० औ० मि० शेष ११ अवि- | कार्मण
- रति-१५ ६ | आ० द्वि०
आद्वि०२२
२२४ २२२
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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