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प्रत्यय
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२. प्रत्यय विषयक प्ररूपणाएँ
गुण
उदय
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मार्गणा
उदयके अयोग्य प्रत्ययों के नाम
स्थान
योग्य
३ सूक्ष्म सा० १० बाँ
मि० पचक, १२ अविरति, कषाय २५ सूक्ष्म लोभ २४, औ० मि०, वै० द्वि०, आ० द्विक, कार्मण ५+१२+२४+१+२+२,१ ।
-४७ ४ यथाख्यात ११-१४ मि०पंचक, अविरति, २५ कषाय,
वै० द्वि०, आ० द्वि० -४६ ५. असयमी १-४ | आ० द्वि० ६. देशसंयमी अनन्ता व अप्रत्या० चतु०, मि०
पचक, वै० द्वि०, औ० मि०, आ० द्वि०, कार्मण
८+५+२+१+२+१-२० दर्शन- । १. चक्षु व अचक्षु १२ | २. अवधि द० | ४-१२ मिथ्यात्व पंचक, अनन्तानु०
४. प्रत्यय स्थान व मंग प्ररूपणा १. एक समय उदय आने योग्य प्रत्ययों सम्बन्धी सामान्य नियम
१. पाँच मिथ्यात्वोमेंसे एक काल अन्यतम एक ही मिथ्यात्वका उदय सम्भव है। २. छ इन्द्रियोकी अविरतिमें से एक काल कोई एक ही इन्द्रियका उदय सम्भव है। छ' कायको अविरतिमें से एक काल एकका, दोका,तीनका,चारका,पाँचका या छहोका युगपत् उदय सम्भव है। ३. कषायों में क्रोध, मान माया, व लोभमेसे एक काल किसी एक कषायका ही उदय सम्भव है। अनन्तानुबन्धी अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन इन चारोमें गुणस्थानों के अनुसार एक काल अनन्ता० आदि चारोका अथवा अप्रत्या० आदि तीनका, अथवा प्रत्या० व संज्वलन दो का अथवा केवल संज्वलन एकका उदय सम्भव है। हास्य-रति अथवा शोक-अरति इन दोनो युगलोमेसे एक काल एक युगलका ही उदय सम्भव है। भय व जुगुप्सामें एक काल दोनोंका अथवा किसी एकका अथवा दोनोका ही नहीं, ऐसे तीन प्रकार उदय सम्भव है। ४ पन्द्रह योगोंमें गुणस्थानानुसार किसी एकका ही उदय सम्भव है। २. उक्त नियमके अनुसार प्रत्ययोंके सामान्य भंग
नोट - घटामें दर्शाया गया ऊपरका अंक एक काल उदय आने योग्य प्रत्ययोकी गणना और नीचे वाला अक उस विकल्प सम्बन्धी भगोकी गणना सूचित करता है।
एक विवरण
कालिक भंग प्रत्यय
प्रत्यय
चतु०
३. केवलदर्शन १३-१४ | मि० पंचक, १२ अविरति,
२५ कषाय, वै० द्वि०, आ० द्वि० असत्य व अनु० मन वच०४-५०
संकेत
१०.
लेश्या१ कृष्णादि ३ २. पीतादि ३
१-४
आ० द्वि०
भव्य१ भव्य २३ अभव्य
आ०वि०
सम्यक्त्व१. उपशम
४६
अनन्तानु० चतु०, मिथ्यात्व पचक, आ० द्वि० ११ मिथ्या० पचक, अनन्तानु०
२. वेदक, क्षायिक
चतु
३ सासादन २रा । मिथ्या० पंचक, आ० द्वि० -७ ४. मिथ्यादर्शन १ आ० द्वि० ५. मिश्र३रा मिथ्या० पंचक, अनन्तानु०,
चतु०, आ० द्वि०, औ० मि० वै० मि०, कार्मण =१४
मिथ्या० मि १५ पाँचो मिथ्यात्वोमे से अन्यतम एक
का उदय छहो इन्द्रियोको अविरतिमेंसे १
अन्यतम एकका उदय का ११ पृथ्वी काय सम्बन्धी अविरति का २/१ पृथ्वी व अप काय सम्बन्धी अविरति २ का ३/१ । पृथ्वी, अप व तेज काय सम्बन्धी
। अविरति का ४/१ | पृथ्वी, अप, तेज व वायु काय | ४
| सम्बन्धी अविरति का ४१ पाँचों स्थावर काय सम्बन्धी
अविरति का ६/१ छहो काय सम्बन्धी अविरति कषाय अनन्त ४/४. अनन्तानु० आदि चारो सम्बन्धी
| क्रोध या, मान, या माया, या लोभ अना. ३/४ अप्रत्याख्यान आदि तीनो सम्बन्धी
। क्रोध, या मान, या माया, या लोभ प्रत्या २/४ प्रत्याख्यान व सज्वलन सम्बन्धी
क्रोध, या मान, या माया, या लोभ सं०१/४ संज्वलन क्रोध, या मान, या माया,
या लोभ यु०२/२ हास्य-रति, या शोक अरति, इन २
दोनों युगलों में से किसी एक युगल
का उदय वै० १/३
तीनों वेदों में से किसी एक का उदय भय १/२ भय व जुगुप्सामें से किसी एकका उदय १ भय २/१
भय व जुगुप्सा दोनोका उदय २
asी
२
१३ संशी
१. असज्ञी
। २
५
।
मन सम्बन्धी अविरति, ४ मन०, अनुय यके बिना ३ वचन०, वै. द्वि०, आ० द्वि०
१+४+३+२+२=१२
२ संज्ञी
१४ आहारक
१ आहारक २ अनाहारक
कार्मण कुल योग १५- कार्मण -१४
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जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
भा०३-१७
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