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प्रतिसेवना कुशील साधु
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प्रत्यक्ष
देश व सकल प्रत्यक्षके लक्षण । देश प्रत्यक्ष ज्ञानकी विशेषताएँ--
दे० अवधि व मन पर्यय । सकल प्रत्यक्ष शानकी विशेषताएँ- दे० केवलज्ञान । प्रत्यक्षाभासका लक्षण।
प्रतिसेवना कुशील साधु-दे० कुशील । प्रतिसेवी अनुमती-दे० अनुमति । प्रतिहरण-स.सा/ता वृ./३०६/३८८/१० प्रतिहरणं मिथ्यात्वरागादिदोषेषु निवारणं ।-मिथ्यात्व रागादि दोषोका निवारण करना प्रतिहरण कहलाता है। प्रतींद्र-दे० इंद्र। प्रतीक-Symbol (ज.प./प्र./१०६) । प्रतीच्छना-ध.६/४,१,५५/२६२/८ आइरियभडाइएहि परुविज्जमाणत्थावहरणं पडिच्छणा णाम । =आचार्य भट्टारकों द्वारा कहे जाने वाले अर्थ के निश्चय करनेका नाम प्रतीच्छना है। ध.१४/५.६.१२/8/४ आइरिएहि कहिज्जमाणत्थाणं सुणणं पडिच्छण णाम । -आचार्य जिन अर्थोंका कथन कर रहे हों उनका सुमना प्रतीच्छना है। प्रतीच्य-पश्चिम दिशा। प्रतीति-ध.१/१,१,११/१६६/७ दृष्टि श्रद्धा रुचिः प्रत्यय इति यावत ।- दृष्टि, श्रद्धा, रुचि और प्रत्यय (प्रतीति ) ये पर्यायवाची नाम है। पं.ध./उ./४१२ प्रतीतिस्तु तथेति स्यात्स्वीकार....४१२।- तत्त्वार्थका स्वरूप जिस प्रकार है, वह उसी प्रकार है, ऐसा स्वीकार करना प्रतीति कहलाती है। प्रतीत्य सत्य-दे० सत्य/१। प्रत्यक-पश्चिम दिशा। प्रत्यक्ष-विशद ज्ञानको प्रत्यक्ष कहते हैं। वह दो प्रकारका हैसांव्यवहारिक व पारमार्थिक । इन्द्रिय ज्ञान साव्यवहारिक प्रत्यक्ष है, और इन्द्रिय आदि पर पदार्थोसे निरपेक्ष केवल आत्मामें उत्पन्न होने वाला ज्ञान पारमार्थिक प्रत्यक्ष है । यद्यपि न्यायके क्षेत्रमें सांव्यबहारिक ज्ञानको प्रत्यक्ष मान लिया गया है, पर परमार्थसे जैन दर्शनकार उसे परोक्ष ही मानते है। पारमार्थिक प्रत्यक्ष भी दो प्रकारका है-सकल व विकल । सर्वज्ञ भगवान्का त्रिलोक व त्रिकालवी केवलज्ञान सकल प्रत्यक्ष है, और सीमित द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव विषयक अवधि व मन'पर्ययज्ञान विकल या देश प्रत्यक्ष है।
प्रत्यक्ष ज्ञान निर्देश तथा शंका समाधान प्रत्यक्षशानमें सकल्पादि नहीं होते। स्वसंवेदन प्रत्यक्ष ज्ञानकी विशेषताएँ- दे० अनुभव । मति व श्रुतशानमें भी कथंचित् प्रत्यक्षता परोक्षता
दे० शुतज्ञान 1/41 अवधि व मन.पर्ययकी कथंचित् प्रत्यक्षता परोक्षता
दे० अवधिज्ञान/३। | अवधि व मतिशानकी प्रत्यक्षतामें अन्तर
दे० अवधिज्ञान/३। केवलशानको सकल प्रत्यक्ष और अवधिज्ञानको विकल प्रत्यक्ष क्यों कहते है। सकल व विकल दोनों ही प्रत्यक्ष पारमार्थिक हैं। सांव्यवहारिक प्रत्यक्षकी पारमार्थिक परोक्षता
दे० श्रुतज्ञान/I/ ४ | इन्द्रियोंके बिना भी ज्ञान कैसे सम्भव है।
इन्द्रिय निमित्तिक ज्ञान प्रत्यक्ष और उससे विपरीत परोक्ष होना चाहिए- दे० श्रुतज्ञान/I/५ । सम्यग्दर्शनको प्रत्यक्षता परोक्षता-दे० सम्यग् /I/३ ।
भेद व लक्षण
प्रत्यक्ष शान सामान्यका लक्षण१.आमाके अर्थमे; २. विशद ज्ञानके अर्थ में; ३. परापेक्ष रहितके अर्थ में। प्रत्यक्ष शानके भेद१. सांव्यवहारिक व पारमार्थिक, २. दैवी, पदार्थ व |
आत्म प्रत्यक्ष। प्रत्यक्ष शानके उत्तर भेद१. साव्यवहारिक प्रत्यक्ष के भेदः २. पारमार्थिक प्रत्यक्षके भेद: ३. सकल व विकल प्रत्यक्षके भेद । सांव्यवहारिक व पारमाथिक प्रत्यक्षके लक्षण। साव्यवहारिक प्रत्यक्ष शानकी विशेषताएँ
दे० मतिज्ञान।
१.भेद व लक्षण १. प्रत्यक्ष ज्ञान सामान्यका लक्षण १. आत्माके अर्थमें प्र. सा./भू /५८ जदि केवलेण णादं हवदि हि जीवेण पच्चक्खं 11८1
यदि मात्र जीवके ( आरमाके) द्वारा ही जाना जाये तो वह ज्ञान प्रत्यक्ष है। स सि./१/१२/१०३/१ अक्ष्णोति व्याप्नोति जानातीत्यक्ष आत्मा। तमेव प्रतिनियतं प्रत्यक्षम् । - अक्ष, ज्ञा और व्याप् धातुएं एकार्थवाची होती हैं, इसलिए अक्षका अर्थ आत्मा होता है ।...केवल आत्मासे होता है वह प्रत्यक्षज्ञान कहलाता है। (रा. वा/१/१२/२/ ५३/११/) (ध.१/४,१,४५/४५/४) (प्र.सा./त. प्र./५७) (स सा./ आ./१३/ क ८ के पश्चात् ) ( स म./२८/३२१/८) (न्या. दी./२/8 १६/३६/१) (गो जी./जी. प्र./३६९/७६६/७)। प्र. सा./त. प्र./२१ सवेदनालम्बनभूता सर्वद्रव्यपर्याया प्रत्यक्षा एव
भवन्ति ।-संवेदनकी (प्रत्यक्ष ज्ञानकी) आलम्बनभूत समस्त द्रव्य पर्याये प्रत्यक्ष ही है। प्र. सा./त प्र./५८ यत्पुनरन्तकरणमिन्द्रिय परोपदेश...आदिकं वा समस्तमपि परद्रव्यमनपेक्ष्यात्मस्वभावमेव के कारणत्वेनोपादाय सर्वद्रव्यपर्यायजातमेकपद एवाभिव्याप्य प्रवर्तमान परिच्छेदनं तद केवलादेवात्मन' संभूतत्वात् प्रत्यक्षमित्यालक्ष्यते। -मन, इन्द्रिय, परोपदेश आदिक सर्व परद्रव्योकी अपेक्षा रखे बिना एकमात्र आत्मस्वभावको ही कारणरूपसे ग्रहण करके सर्व द्रव्य पर्यायोके
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
भा०३-१६
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