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प्रकृति बंध
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७. प्रकृतिबन्ध विषयक प्ररूपणाएं
|
स्थानमें | कुल
कुल
प्रत्येक भंगमें प्रकृतियों व स्वामियों का विवरण प्रकुतियोंका विवरण
स्वामियोका विवरण
। प्रकृतियाँ
स्वामी नं०
भग
1v१७-२४
| उपरोक्त २५-सूक्ष्म, साधारण + बादर, प्रत्येक - २५ | बादर पर्याप्त प्रत्येक वनस्पति ( उद्योत (स्थिर, शुभ, यश इन तीन युगलोंसे ८ भंग) | रहित )
| V
२५-४८
४६-५६
१-5
| ध्र ,स, अप०,बादर,प्रत्येक, दुर्भग, अनादेय,
स्थिर,शुभ व यश इन तीन युगलों में अन्यतम -८ | तिर्य द्वय, २-५ इन्द्रिय (8) में अन्यतम, आ० अप०, द्वी, त्री, चतुरेन्द्रिय ( उद्योतरहित ) द्वय सृपाटिका, हुंडक (३२ भंग) =२५ संज्ञी, असंज्ञी, पंचेन्द्रियके बन्धक -५ उपरोक्त २५-तिर्य० द्वय + मनुष्य द्वय =८ भंग | अप० मनुष्यके बन्धक ( उपरोक्त ) बा०प० पृ० की २५ + आतप - बा०प० पृथिवी ( आतप युत) -१
(उसी व ८ भंग) ( उपरोक्त ) बा०प० पृ० की २५+ उद्योत बा०प० पृ० अप, बनस्पति (उद्योत युत)-३
(उसी वव ८ भंग) विकलत्रय अप० की २५ (उसीवत् ३२ भंग)=२६ बा०द्वी० त्री० चतुरेन्द्रिय उद्योत सहित)
४ असज्ञी पंचे० ( ,) =४ ध्र व/,त्रस, आदर, पर्याप्त, प्रत्येक, सुभग, देवगतिके बन्धक आदेय स्थिर,शुभ व यश इन तीन युगलोंमें अन्यतम ३ से ( ८ भंग), देवद्वय, पंचेन्द्रिय, वैक्रि० द्वय, समचतुरस्त्र, सुस्वर व प्रशस्त विहायो०, उच्छ्वास, परवात (८भंग) =२८
१७-४८
नरक गतिके बन्धक
५.६,त्रस, नादर, पर्याप्त, प्रत्येक, दुर्भग, अनादेय अस्थिर, अशुभ, अयश, नारद्वय, वैक्रि० द्वय, पंचे०, हुंडक, दुस्वर, अप्रशस्तविहायो०, उछवास, परघात
६
।।
१-३२
२६१२४८० ७
६२८८
ध्रु./६,स, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक दुर्भग, अना- बा०प०वी० त्री० चतुरेन्द्रिय तथाअसंज्ञी देय स्थिर शुभ व यश इन तोन युगलों में | पंचेन्द्रियका बन्धक ( उद्योत रहित ).-४ अन्यतम ३ से भंग),तिर्य द्वय, औ० वय, २-५ इन्द्रिय, इन ४ में अन्यतमसे (४ भंग) हुंडक, सृपाटिका, दुस्वर अप्रशस्त विहायो, उच्छवास, परघात (८४४-३२ भंग) =२६/
| प० संज्ञी पंचेन्द्रियका बन्धक
11]३३-६४०//६,प्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक सभग.
आदेय, स्थिर, शुभ, यश इन पाँच युगलोंमें अन्यतम से (३२ भंग)-तिर्य० द्वय, औ० द्वय, पंचेन्द्रिय, ६ संस्थानों में अन्यतम १से (६भंग),६संहननमें अन्यतम १से(६ भंग), स्वर द्वय व, विहायोगति द्वय इन दो युगलोंमें अन्यतम २ से (४भंग),उच्छ्वास, परघात
(३२x६x६x४-४६०८ भंग)
11४६४१-११८० उपरोक्त २१-तिर्य द्वय+मनुष्य द्वय, (उसी
वत् ४६०८ भंग)
प० मनुष्यका बन्धक नारकी
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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